इजराइल में नई सरकार की तैयारी: एक्सपर्ट बोले- गठबंधन लंबा चलना मुश्किल

तेल अवीव। इजराइल 2 साल में पांचवें चुनाव की तरफ जाने से फिलहाल बच गया है। 12 साल प्रधानमंत्री रहे बेंजामिन नेतन्याहू अब प्रधानमंत्री नहीं रहे। उनका स्थान गठबंधन सरकार के मुखिया नेफ्टाली बेनेट लेंगे, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसका दिलचस्प पहलू ये है कि बेनेट 26 अगस्त 2023 तक ही कुर्सी पर रहेंगे। इसके बाद येश एटिड पार्टी के चीफ येर लेपिड प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन, एक्सपर्ट मानते हैं कि इस गठबंधन सरकार का लंबा चलना मुश्किल है। इनमें विचारधारा का टकराव रहेगा। यहां इजराइल की सियासत और ताजा घटनाक्रम से जुड़ी अहम बातों को समझते हैं।

कैसा है नया गठबंधन
इजराइल में भारत की तरह कई राजनीतिक दल हैं। यानी बहुदलीय व्यवस्था है। इनकी विचारधारा भी अलग-अलग है। ऐसे ताजा घटनाक्रम से ही समझ लीजिए। नेफ्टाली बेनेट जिस यामिना पार्टी के नेता हैं, उसे आप राइट विंगर, दक्षिण पंथी या बहुत सामान्य तौर पर कट्टरपंथी पार्टी कह सकते हैं। 8 दलों के गठबंधन में येश एटिड पार्टी और राम पार्टी भी है। मजे की बात ये है कि येश मध्यमार्गी या सेंट्रिस्ट विचारधारा वाली पार्टी है।

वो ज्यादा कट्टरपंथी भी नहीं और ज्यादा नर्म भी नहीं है। अरब-मुस्लिमों की राम पार्टी भी कोएलिशन का हिस्सा है। ये इजराइल में रह रहे अरब मूल के मुस्लिमों की कई पार्टियों में से एक है, और उनके ही हक-हकूक को तवज्जो देती है।

इजराइल में सरकार बदली क्यों
दो साल में चार चुनावों के बाद भी किसी पार्टी को अकेले के दम पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सांसद चाहिए। लेकिन, मल्टी पार्टी सिस्टम है और छोटी पार्टियां भी कुछ सीटें जीत जाती हैं। इसी वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता। नेतन्याहू के साथ भी यही हुआ।

‘टाइम्स ऑफ इजराइल’की मार्च में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के पास 30 सांसद हैं। समर्थकों के साथ यह संख्या 52 हो जाती है। फिर भी बहुमत से 9 सीटें कम हैं। दूसरी तरफ, बेनेट की यामिना के पास महज 7 और राम पार्टी के पास 5 सांसद हैं। समर्थकों के साथ आंकड़ा 56 हो जाता है। नेतन्याहू के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं, हो सकता है उन्हें सजा भी हो जाए। इसलिए, उनके विरोधी एकजुट हो गए।

सिर्फ नेतन्याहू को हटाना मकसद था
डिफेंस और फॉरेन पॉलिसी एक्सपर्ट हर्ष पंत इजराइल के मामलों पर पैनी नजर रखते हैं। ताजा घटनाक्रम पर पंत कहते हैं- इजराइल ने दो साल में चार चुनाव देख लिए। लेकिन, किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। नेतन्याहू सबसे बड़े दल लिकुड पार्टी के नेता हैं, लेकिन उनके पास भी बहुमत नहीं था। विपक्षी दलों के गठबंधन का मकसद ही नेतन्याहू को कुर्सी से हटाना था। नए गठबंधन में सभी पार्टियों की अलग-अलग सोच है।

प्रधानमंत्री भी रोटेटिंग पॉलिसी पर होगा। राम पार्टी पहली बार किसी सरकार का हिस्सा बन रही है। दूसरी अरब मुस्लिम समर्थक पार्टियां इस कोएलिशन में शामिल नहीं हुईं। हालांकि, राम पार्टी के सत्ता में होने से अरब मूल के लोगों को फायदा हो सकता है।

कितनी चलेगी गठबंधन सरकार
पंत कहते हैं- ये सरकार ज्यादा अंतरमुखी होगी। गठबंधन में शामिल पार्टियों की विचारधारा और उनके एजेंडे पर नजर डालें तो मुझे नहीं लगता कि इनके पास कुछ ज्यादा करने की गुंजाइश होगी। कुछ बड़ी दिक्कतें आनी तय लग रही हैं, और इसी वजह से मुझे नहीं लगता कि यह गठबंधन सरकार ज्यादा दिन चलेगी। दो-ढाई साल में इजराइल पांचवें चुनाव की तरफ बढ़ रहा है।

फोटो राम पार्टी (Ra’am party) के चीफ मंसूर अब्बास की है। ये अरब-मुस्लिमों की पार्टी है। माना जा रहा है कि अब्बास को मंत्री भी बनाया जा सकता है। (फाइल)

सबसे ज्यादा नजर कहां
राम पार्टी (Ra’am party)मूल रूप से अरब मुस्लिमों की पार्टी है। 70 साल में पहली बार कोई अरब पार्टी सत्ताधारी गठबंधन में शामिल होगी। इसके चीफ हैं मंसूर अब्बास। वे कहते हैं- हम हालात बदलने जा रहे हैं। अरब-इजराइल सोसायटी के लिए अलग बजट रखे जाने पर सहमति बनी है।

इस तबके की सुरक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। हाल ही में यहूदी और अरब लोगों के बीच दंगे हुए थे। राम पार्टी ने एक बयान में कहा- अरब सोसायटी के डेवलपमेंट पर करीब 16 करोड़ डॉलर खर्च होंगे। इनमें हाउसिंग और दूसरी चीजें शामिल रहेंगी। हमें दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं माना जाना चाहिए।

1950 में पहली बार एक एक अरब-इजराइली सांसद चुना गया था। 1990 में जब यित्जाक रेबिन की सरकार गिरने वाली थी, तब फ्लोर टेस्ट के दौरान अरब पार्टी के दो सांसदों ने उनके पक्ष में वोटिंग करके सरकार बचा ली थी।

भारत, दुनिया और फिलीस्तीन मुद्दे पर क्या असर होगा
पंत कहते हैं- हाल ही में जब इजराइल और हमास के बीच जंग हुई, तो पूरा विपक्ष और पूरा देश नेतन्याहू के साथ खड़ा था। दरअसल, इजराइल में नेशनल सिक्योरिटी सबसे अहम और प्रभावी मुद्दा है। कोई भी सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती। इस पर सब साथ हैं। गठबंधन सरकार भी खुद को नेतन्याहू की तरह मजबूत दिखाना चाहेगी। नेफ्टाली बेनेट तो 2 स्टेट सॉल्यूशन भी नहीं चाहते। लेकिन, इस मुद्दे पर उन्हें दूसरी पार्टियों से सहयोग चाहिए होगा।

भारत के साथ रिश्तों में बदलाव के सवाल पर पंत कहते हैं- इसमें बदलाव नहीं होगा, रिश्तों में कंटीन्यूटी बनी रहेगी। इसकी वजह यह है कि दोनों देशों की नीतियां पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर हैं। हां, अरब मुद्दे पर दिक्कत हो सकती है। क्योंकि, गठबंधन में शामिल पार्टियां इस पर भी अलग राय रखती हैं।

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