जयपुर। राजस्थान की कांग्रेस सरकार में एक बार फिर सियासी संकट की आहट सुनाई दे रही है। पिछले साल पूर्व उपमुख्यमंत्र सचिन पायलट खेमे की बगावत से अशोक गहलोत सरकार एक बार संकट में आ गई थी, लेकिन सीएम के राजनीतिक कौशल से बच गई। अब फिर दोनों खेमे आमने-सामने हैं। एक-दूसरे के विधायकों को अपने-अपने खेमे में शामिल करने को लेकर कसरत तेज हो गई है। पायलट समर्थक एक दलित विधायक का कहना है कि अगले महीने तक कुछ बड़ा हो सकता है।
इस विधायक ने गहलोत खेमे के 4 और बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले 2 विधायकों के पायलट खेमे में शामिल होने का दावा करते हुए कहा कि पार्टी आलाकमान को हमारी ताकत की जानकारी है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने पिछले दिनों में पायलट से मुलाकात कर संबंध सुधारने की कोशिश की है। दोनों पहले पायलट के खास थे, लेकिन बाद में गहलोत खेमे में शामिल हो गए। आलाकमान पंजाब के बाद राजस्थान के बारे में फैसला करेगा। जिस तरह से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों में पायलट समर्थकों को महत्व मिला उसी तरह मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में उन्हे प्राथमिकता मिलेगी।
वहीं, सीएम गहलोत कुर्सी और विश्वस्त विधायकोें की संख्या को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। गहलोत खेमा पायलट समर्थकों में टूट का दावा कर रहा है। गहलोत समर्थक एक केबिनेट मंत्री ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पायलट खेमे के तीन विधायक भंवरलाल शर्मा, विश्वेंद्र सिंह और पी.आर.मीणा ने मुख्यमंत्री में आस्था जताई है। इन विधायकों ने राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन तक भी अपना संदेश पहुंचा दिया कि वे गहलोत के साथ हैं।
लंबे समय तक पायलट के विश्वस्त रह कर सीएम पर हमला बोलने वाले विधायक पी.आर.मीणा ने जिस तरह से एक दिन पहले मुख्यमंत्री के कामकाज की तारीफ करने वाला बयान दिया, उससे साफ नजर आता है कि आगामी दिनों में कांग्रेस में कुछ बड़ा हो सकता है। विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने सरकार में दलित विधायकों को तवज्जो नहीं देने को लेकर सीएम पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा गहलोत सरकार में दलितों व अल्पसंख्यकों को कम महत्व दिया जा रहा है।
सरकार से बाहर रहकर पायलट खेमे परेशान है। वहीं गहलोत अपने विश्वस्तों को राजनीतिक नियुक्तियों के माध्यम से उपकृत करने में जुटे हैं। गहलोत ने विभिन्न बोर्ड एवं निगमों में कई निदेशक और सदस्य बनाने के साथ ही एक-दो जगह चेयरमैन भी बनाए हैं। जिला कलेक्टरों को गहलोत खेमे के नेताओं को प्राथमिकता देकर पायलट समर्थकों की उपेक्षा करने का संदेश पहले से ही दिया हुआ है।
पायलट पूर्वी राजस्थान में गुर्जर, मीणा वोट बैंक मजबूत करने में जुटे हैं। वे दलित समााज को भी इस गठजोड़ में शामिल करना चाहते हैं। इसी रणनीति के तहत पायलट ने पिछले एक माह में दौसा, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, अलवर, टोंक, जयपुर और अजमेर जिलों के कांग्रेस कार्यकर्ताओं व जातिगत संगठनों के पदाधिकारियों से बात की है। पायलट लॉकडाउन खत्म होने के बाद राजसमंद, झालावाड़, कोटा जिलों का दौरा करने की तैयारी कर रहे हैं।
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