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जितिन प्रसाद को जॉइनिंग में TPS Rawat के मुक़ाबले तोला भर भी तवज्जो नहीं!

चेतन गुरुंग

कथित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर नजर मारी तो हैरानी हुई। जबर्दस्त भौकाल मचा हुआ था स्क्रीन पर। जितिन प्रसाद काँग्रेस छोड़ के BJP आ रहे। फिर थोड़ी देर बाद न्यूज़ आई कि आ गए। Breaking News का प्रस्तुतिकरण ऐसा मानो देश की सबसे बड़ी खबर वही हो।

काँग्रेस से खुद राहुल गांधी या प्रियंका गांधी बीजेपी में शामिल हो गई हों। फिर फुटेज सामने आए। विनम्र-बेहद आह्लादित दिख रहे केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल और बीजेपी के मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी के सामने हाथ जोड़ के आभार प्रकट करते जितिन को देखा।

जी सिर्फ पीयूष ही थे। बीजेपी की तरफ से सबसे बड़े नेता। न राष्ट्रीय अध्यक्ष JP नड्डा न ही कोई अन्य बड़ा नाम। एक किस्म से जितिन को बीजेपी में शामिल कराने की खानापूर्ति भर कहा जा सकता है इसको। इसलिए कि जब साल 2007 में लेफ्टिनेंट जनरल (वेट) TPS Rawat ने हालातों से मजबूर हो के जब Congress छोड़ BJP जॉइन किया था तो आलम देखने लायक था। दिल्ली में उनका खैर मकदम करने आज के रक्षा मंत्री और उस वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह खुद मौजूद थे। ये कोई मामूली बात नहीं थी।

राजनाथ के साथ केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और तमाम छोटे-बड़े बीजेपी नेताओं की फौज थीं। साथ ही उस वक्त के BJP के उत्तराखंड के सह प्रभारी अनिल जैन-CM BC खंडूड़ी और मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी थे।

TPS नैतिकतावादी थे और नेता विधायक दल के तौर पर डॉ. हरक सिंह रावत को चुने जाने के काँग्रेस के फैसले से कतई नाखुश थे। उनको लगता था कि जिस शख्स पर पौड़ी के पटवारी भर्ती घोटाले और जैनी सेक्स स्कैंडल से जुड़े आरोप लगे हों, वह इतनी अहम ज़िम्मेदारी के लिए कहीं से भी सही चयन नहीं है। वे किस मुंह से सरकार और विपक्षी दलों से सवाल कर सकेंगे। ये भी गज़ब का संयोग है कि उसी दौरान MP से सीधे मुख्यमंत्री बनाए गए BCK को विधानसभा उपचुनाव लड़ने के लिए वाजिब सीट नहीं मिल रही थी।

वक्त गुजरता जा रहा था। कोई भी विधायक खुशी-खुशी अपनी सीट खंडूड़ी के लिए कुर्बान करने को राजी नहीं था। जबरन खाली कराने पर पार्टी को शक था कि कहीं चुनाव जीतने के लाले न पड़ जाए। फिर भी जब वक्त करीब आ गया तो उस वक्त निर्दलीय विधायक राजेंद्र भण्डारी को नंदप्रयाग सीट (वह बीजेपी को समर्थन देने के एवज में कैबिनेट मंत्री थे) और कर्णप्रयाग विधायक अनिल नौटियाल को साफ ईशारा कर दिया गया था कि मुख्यमंत्री के लिए विधायकी को तिलांजलि देने के लिए तैयार रहें।

इस बीच BCK मंत्रिमंडल के अहम सदस्य डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने BCK के लिए सीट का बंदोबस्त बीजेपी से इतर काँग्रेस से करने का बीड़ा उठाया। इस मिशन को इस कदर गोपनीय रखा गया कि खुद खंडूड़ी को भी इसकी भनक नहीं लग रही थी कि क्या चल रहा। फिर TPS से संपर्क साधा गया। उनकी हर शर्त मानी गई।

काँग्रेस में हरक के कारण खुद को विचलित पा रहे जनरल ने आखिरकार कमल के फूल पर सवार होने का निश्चय कर ही लिया। जब सब कुछ फाइनल हो गया तब मुख्यमंत्री को भी पता चला कि उनके लिए सेना में रैंक के लिहाज से उनसे ऊपर TPS ने उनके लिए धुमाकोट सीट छोड़ दी है।

खंडूड़ी को इस बारे में किस कदर अंजान रखा गया था इसकी मिसाल ये कही जा सकती है कि वह देहरादून में TPS की जॉइनिंग की बात कर रहे थे, जबकि दिल्ली से निशंक और अनिल जैन हेलिकॉप्टर ले के ONGC के टपकेश्वर मंदिर क्षेत्र स्थित हेलीपैड पर पहुँचने वाले थे। GTC (आज का DSOI) हेलीपैड पर इसलिए चॉपर नहीं उतारा गया कि कहीं मिशन लीक न हो जाए। TPS को उनके Defence Colony स्थित घर से ले के सीधे रास्ते में स्थित विधानसभा में निशंक-जैन पहुंचे।

आनन-फानन स्पीकर (तब हरबंस कपूर) को बुलाया गया था। जिन्हें समझ नहीं आया होगा कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो उनको अचानक तैयार रहने के लिए कहा गया। बिना  कुछ बताए। TPS का विधानसभा से इस्तीफा कपूर को थमा के तीनों हेलीपैड रवाना हो गए। वहीं पर खुद मुख्यमंत्री खंडूड़ी भी पहुंचे। चारों जब हाथ हिला के टा-टा करते हुए दिल्ली दोपहर बाद ही जब रवाना हो गए तो सबसे पहले जनरल के मोबाइल फोन के स्विच ऑफ किए गए थे। इसलिए कि कहीं काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इसकी भनक लग गई तो वह खुद न कॉल कर दें।

सोनिया जनरल को उस वक्त बहुत मानती थीं। दिल्ली में TPS की BJP में जॉइनिंग कराने के लिए कोई मामूली ओहदेदार मौजूद नहीं था। राजनाथ का नाम तब आज से भी ज्यादा था। उनकी तूती बोला करती थी। पूरी बीजेपी और बड़े नेता जनरल की बीजेपी जॉइनिंग से बेहद शुक्रगुजार वाले भाव में थे।

TPS को इसके बाद पौड़ी लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ाया गया। वह जीत के संसद भी पहुंचे। उनकी तकदीर ने धोखा तब दिया जब बीजेपी में खंडूड़ी के खिलाफ पार्टी विधायकों ने ही बगावत का बिगुल फूँक डाला। उन्होंने देखा कि खंडूड़ी को कुर्सी से हटाना मुमकिन नहीं है।

साल 2009 के लोकसभा चुनाव हुए। बागियों ने मौका देखा। उनकी मेहरबानी से पार्टी को पांचों सीटों पर शिकस्त खानी पड़ी। इसका ठीकरा खंडूड़ी के सिर ही फूटना था। वे तो चलता कर दिए गए, लेकिन TPS को भी कुछ महीनों पहले तक तय दिख रही फतह से लोकसभा चुनाव में हाथ धोना पड़ा। ये भी गज़ब संयोग है कि जिस हरक को नाकाबिले बर्दाश्त मान के TPS ने काँग्रेस छोड़ी थी, वह बाद में बीजेपी से नाखुश हो के फिर काँग्रेस लौट आए।

जिस हरक को काँग्रेस ने सरकार होते वक्त हमेशा मंत्री बनाया और विपक्ष में रहने के दौरान नेता विधायक दल बनाया, वह बीजेपी चले गए। आज भी वह पहले त्रिवेन्द्र और अब तीरथ सरकार में दमदार मंत्री हैं। TPS की तुलना में जितिन प्रसाद की बीजेपी जॉइनिंग को देखिए। ऐसा लगा मानो औपचारिकता भर पूरी की गई।

बीजेपी आला कमान चतुर-शातिर है। उसको पता है कि किसको कितना भाव देना है। जितिन दो लोकसभा चुनाव हारे हुए हैं। विधानसभा चुनाव में जमानत जब्त कराए बैठे हैं। हो सकता है कि UP के CM योगी आदित्यनाथ को बैलेंस करने के लिए ब्राह्मण वोटरों को रिझाने के नाम पर बीजेपी में लाया गया हो।

इससे पहले केंद्र सरकार में सचिव अरविंद शर्मा को VRS करा के लखनऊ भेजा गया। डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चाओं के साथ। MLC बने टहल रहे हैं। वह भी मोदी-शाह के खसमखास माने जाते हैं। आजकल योगी कुछ मनमौजी अंदाज में काम कर रहे हैं। आला कमान से वैसे नहीं दबते, जैसा बाकी बीजेपी राज्यों के CM सहमे दिखाई देते हैं।

जितिन को तो सही माने में देखा जाए तो सतपाल महाराज के बराबर भी तवज्जो नहीं मिली। महाराज ने भी काँग्रेस छोड़ राजनाथ सिंह के सामने बीजेपी जॉइन की थी। बीजेपी की परंपरा कहें या संस्कृति, इंसान-विरोधी दल के नेताओं की कदर बीजेपी में आने से पहले तक ही होती है।

जिस विजय बहुगुणा ने विधायकों के प्लाटून के साथ काँग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम के उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार गिरा दी थी, वह आज गुमनामी के अंधेरे में गायब हो चुके हैं। सोचा जा रहा था कि बीजेपी की सरकार आने पर उनको CM बनाया जा सकता है। नहीं तो किसी राज्य की गवर्नरी कहीं नहीं गई।

उनको राज्यसभा के लायक भी नहीं समझा जा रहा। यशपाल आर्य-हरक सिंह मंत्री रहते और सतपाल महाराज-सुबोध उनियाल काँग्रेस में होने के दौरान हरीश सरकार का धुआँ निकाले रहते थे। आज कल अनुशासन की डोर से सख्ती से बंधे दिखते हैं। शायद ये फर्क है काँग्रेस-बीजेपी का। भले इसके लिए काँग्रेस आंतरिक लोकतन्त्र और बीजेपी आंतरिक अनुशासन का नाम दे।

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