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पिछले 27 साल में हजारों आवारा कुत्तों की जान बचा चुके हैं भिक्षु जिझियांग

शंघाई। बौद्ध भिक्षु जिझियांग अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी आवारा कुत्तों को बचाने और पालने में लगा चुके हैं। 53 वर्षीय जिझियांग बायोइन मंदिर के मुख्य भिक्षु हैं लेकिन 1994 से अब तक वह हजारों कुत्तों की जान बचा चुके हैं। उनके पास आठ हजार के करीब कुत्ते और सैंकड़ों बिल्लियां, मुर्गे, हंस और मोर भी हैं। उनका पूरा दिन इनकी देखभाल करने में गुजर जाता है।

पिछले 27 साल से आवारा जानवरों की देखभाल करने के चलते उन्हें जानवरों की हर दवा की भी जानकारी है। यह जानना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बीमार होने पर जानवरों को डॉक्टर के पास ले जाना काफी महंगा पड़ता। जिझियांग ने कुछ साल पहले से ही अपनी देखभाल में आए जानवरों के लिए लोगों से डोनेशन लेनी शुरू की है।

कहते हैं-बुद्ध ने सिखाया है कि सभी जानें बराबर हैं, चाहे इनसान हो या जानवर

जिझियांग 1994 में एक बार हाई-वे से गुजर रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक एक्सीडेंट में घायल हुई बिल्ली को देखा। बिल्ली की सांसें तो चल रही थीं लेकिन वह गंभीर रूप से घायल थी और चल-फिर नहीं सकती थी। बस उसी दिन से उन्होंने आवारा जानवरों को बचाना शुरू कर दिया।

शुरू में जिझियांग के पास सिर्फ बिल्लियां थीं लेकिन 2006 में बायोइन मंदिर आने के बाद उन्होंने अपना ध्यान कुत्तों की ओर देना शुरू कर दिया। यहां जिझियांग कुत्तों का इलाज करके उन्हें पुडोंग छोड़ आते हैं। यहां उन्होंने एक शेल्टर होम किराए पर लिया जहां करीब पांच हजार कुत्ते रहते हैं। इनकी देखभाल के लिए सात लोगों का स्टाफ है जो रोज एक टन खाना इन्हें खिलाता है।

जिझियांग कहते है, पुडोंग शेल्टर होम से कुछ कुत्ते अमेरिका या यूरोप भेज दिए जाएंग। मैं सिर्फ उनकी बेहतर जिंदगी की उम्मीद करता हूं। कई लोग सिर्फ इसलिए एक पालतू चाहते हैं ताकि वह उनके घर की देखभाल कर सके। मैं ऐसे ही किसी इनसान को कोई कुत्ता गोद नहीं देता हूं जिसकी रेपुटेशन खराब हो। मैंने 2017 से पहले तक किसी से भी डोनेशन नहीं ली। कुत्तों की संख्या बढ़ते ही मैं समझ गया कि इतने सारे कुत्तों की देखभाल करना आसान नहीं रहेगा। इसलिए डोनेशन्स लेनी शुरू कीं।

चीन में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या पर जिझियांग कहते हैं, मेरे ख्याल से यह समस्या सरकार से ज्यादा लोगों की है क्योंकि लोग आवारा कुत्तों को खाना तो खिलाते हैं लेकिन उन्हें स्टरलाइज नहीं करवाना चाहते। इससे उनकी संख्या बढ़ेगी ही और लोगों को भी दिक्कत होगी। बहुत से लोगों को मेरा आवारा जानवरों की देखभाल करना पसंद नहीं।

उन्हें लगता है कि एक भिक्षु का काम सिर्फ मंदिर में बैठना ही है लेकिन बुद्ध ने हमें दूसरों की जान बचाने को कहा है और बताया है कि सभी जानें बराबर हैं चाहे इनसान हों या जानवर। मैं रिटायरमेंट तक तो यहां आवारा जानवरों को बचाना नहीं छोड़ूंगा, उसके बाद क्या होगा, यह तो ऊपरवाला ही जाने।

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