लखनऊ। लॉकडाउन में इस बार खुदा की इबादत का माह रमजान है। नमाज, इबादत और दुआ सब घर के भीतर हो रही है। भले ही होटल-रेस्तरां बंद हों, लेकिन इसके बाद भी इफ्तारी में चार चांद लग रहे हैं। हर दिन की इफ्तारी को खास बनाने के लिए महिलाएं दोपहर से ही रसोई की कमान संभाल लेती हैं।
रमजान वैसे तो सब्र, संयम और इबादत का माह होता है, लेकिन इसमें खानपान को लेकर भी लोगों में उत्साह बना रहता है। इफ्तार के वक्त मुस्लिम इलाकों खान-पान की दुकानें पर रौनक रहती थी। भीड़ लगी रहती थी, लेकिन लॉकडाउन में सब बंद है।
इसलिए रमजान के पाक महीने को घर में रहकर काम करने के साथ इन महिलाओं का रूटीन भी बदल गया है। इस लॉकडाउन में घर की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है। सुबह 3 बजे से उठ कर वो घर के काम के साथ इबादत करती हैं।
रमज़ान बरकत और नेकी कमाने वाला महीना है। महिलाएं इबादत के साथ- साथ घर का काम भी उसी उत्साह के साथ करती है। मैं भी सुबह से इबादत के बाद गरीबों को राशन बांटा। उसके बाद अफ्तारी बनाया। पूरा दिन कैसे गुजार गया, पता ही नहीं चला।
रमजान का महीना हमें बहुत सारी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है। अमन व सलामती, मोहब्बत, भाईचारे और दुखी इंसानियत की जरूरत पूरी करने का मौका देता है। काफी साल से रोजा रखती हूं। रोजे रखने से रुहानी ताकत महसूस करती हूं।
रमजान साल में एक बार ही आता है। ऐसे में मगफिरत करने, तरावीह पढ़ने से समय का पता नहीं चलता। अलसुबह उठकर सहरी तैयार करना। इबादत करना तो दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। इसके लिए वक्त निकालने जैसी कोई बात नहीं है।
रमज़ान में घर में काम करने के साथ रोजे रखना, इबादत करना रुटीन में शामिल हो जाता है। सुबह तीन बजे उठकर रोजा रखने के लिए सहरी का इंतजाम करना सब इस महीने की बरकत से हो आसानी से हो जाता है। सभी लोग घर पर रहकर लॉकडाउन का पालन कर रहे है।
इस बार रमज़ान में महिलाओं के साथ पुरुष भी ज्यादा इबादत कर रहे है। घर के सारे आदमी अलग नमाज़ पढ़ते है, वहीं सारी महिलाएं अलग इबादत करते है। घर का काम करने के साथ दुआ करते हैं। अल्लाह से अपने लिए और दूसरे इंसानों के लिए दुआ मांगते है।
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