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आपदा में मुनाफाखोरी : रैपिड टेस्ट किट में लिया गया 145% का फायदा

नई दिल्ली। कोरोना महामारी से जूझ रहे भारत को इस संकट से उबारने के लिए अमीर हो या गरीब, सभी सरकार को आर्थिक मदद दे रहे हैं वहीं इस संकट की घड़ी में कुछ लोग मुनाफाखोरी में लगे हुए हैं। वइ वैश्विक महामारी ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया तो वहीं कुछ मुनाफाखोर कुछ करोड़ रुपए के लिए मानवता को ताक पर रख दिए हैं।

भारत में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए टेस्ट के लिए चीन से पांच लाख कोविड-19 रैपिड टेस्ट किट किट मंगाई गई थी। इस किट को मंगाने में खूब धांधली हुई है। यह खुलासा तब हुआ जब इसके वितरक और आयातक के बीच मुकदमेबाजी हो गई और दोनों दिल्ली हाई कोर्ट चले गए थे।

इस मुकदमेबाजी से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) को बेची गई इस किट में बहुत मोटा मुनाफा कमाया गया है।

दरअसल इस किट की भारत में आयात लागत 245 रुपये ही है, लेकिन इसे ICMR  को 600 रुपये प्रति किट बेचा गया है, यानी करीब 145 फीसदी के मोटे मुनाफे के साथ। दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नाजमी वजीरी की सिंगल बेंच ने इसका दाम 33 फीसदी घटाकर इसे प्रति टेस्ट किट 400 रुपये में बेचने का आदेश दिया है। इस कीमत पर भी वितरक को 61 फीसदी का मुनाफा मिलता है। हाईकोर्ट ने इसे पर्याप्त बताया है।

असल में इस रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट के एकमात्र डिस्ट्रीब्यूटर रेयर मेटाबोलिक्स ने आयातक मैट्रिक्स लैब्स के खिलाफ एक याचिका दाखिल की थी। मैट्रिक्स लैब्स ने इस किट को चीन के वोंडफो बायोटेक से आयात किया था। यह वही किट है जिसको लेकर पिछले दिनों राजस्थान में विवाद हुआ था कि टेस्ट रिपोर्ट सही नहीं आ रहा है। इसके बाद आईसीएमआर ने टेस्ट पर रोक लगा दी थी।

दरअसल विवाद इस बात पर था कि आयातक बाकी बची 2.24 लाख किट आईसीएमआर को नहीं भेज रहा। आयातक मैट्रिक्स लैब्स ने ऐसी 5 लाख किट आयात की थीं, लेकिन उसका कहना है कि उसे 21 करोड़ रुपये (20 करोड़ प्लस जीएसटी) में से अभी सिर्फ 12.75 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया है।

अनुबंध के अनुसार आयातक को पहले बाकी बचे 8.25 करोड़ रुपये के भुगतान करने थे, लेकिन रेयर मेटाबोलिक्स ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर यह अनुरोध किया कि उसे बाकी बची 2.24 लाख किट दिलाई जाएं, ताकि वह आईसीएमआर को आपूर्ति करने का अपना एग्रीमेंट पूरा कर सके।

कोर्ट ने इस किट का रेट घटाने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि त्रिपक्षीय समझौते के मुताबिक भारत में कोई और कंपनी इसका वितरण नहीं कर सकती। कंपनी ने कहा कि उसने 12.75 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है जिसमें 5 लाख किट का फ्रेट चार्ज भी शामिल है। वहीं रेयर मेटाबोलिक्स ने कहा कि बाकी माल मिलते ही वह पूरे पैसे का भुगतान कर देगी।

घटिया है चीनी किट!

असल में आईसीएमआर ने भी इसके लिए फंड रोक लिया है। आईसीएमआर को 2.76 लाख किट सप्लाई किए गए हैं, लेकिन याचिकाकर्ता के मुताबिक उसे अभी इसका पैसा नहीं मिला है। टेस्ट किट आईसीएमआर के मानक पर खरा न होने की वजह से इससे रैपिड टेस्ट नहीं किया जा रहा। दूसरी तरफ, निर्माता कंपनी वोंडफो का दावा है कि उसकी किट में कोई भी खामी नहीं है।

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