Categories: Article

जो काम सरकारें नहीं कर पाई थीं उसे कोरोना ने कर दिखाया

जो काम सरकारें नहीं कर सकीं वह काम कोरोना वायरस ने कर दिखाया है। कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन का एक सकारात्मक पहलू सामने आया है। उत्तर भारत में जो हवा पिछले 20 साल के प्रयास के बाद भी साफ नहीं हुई वह देश में लॉकडाउन की वजह हो गई। अब सवाल उठ रहा है कि पर्यावरण को बचाने के लिए लॉकडाउन जैसे विकल्प पर ध्यान देने की जरूरत है।

भारत, 25 मार्च से लॉकडाउन है। पहले लॉकडाउन की अवधि 14 अप्रैल तक था, लेकिन बाद में सरकार ने इसमें 19 दिन का विस्तार दे दिया। अब & मई तक देश लॉकडाउन है। सरकार ने लॉकडाउन का फैसला कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए किया था लेकिन इस के चलते देश की हवा साफ हो गई।

नासा द्वारा जारी उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि उत्तर भारत में एयरोसोल का स्तर पिछले 20 सालों के सबसे न्यूनतम स्तर पर आ गया है। जिसके पीछे लॉकडाउन एक बड़ी वजह है, क्योंकि इसी के चलते देश में फैक्ट्री, कार, बस, ट्रक, विमान और अन्य सेवाएं बंद कर दी गयी थी। उत्तर भारत में प्रदूषण में जिस तरह की कमी देखी गई है उस पर वैज्ञानिक भी विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। यह अविश्वसनीय है।

नासा की यूनिवर्सिटीज स्पेस रिसर्च एसोसिएशन के वैज्ञानिक पवन गुप्ता ने बताया कि, “हमें यह तो पता था कि लॉकडाउन के चलते कई जगह पर प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी, लेकिन वर्ष के इस समय में यह उत्तर भारत में इतनी हो जाएगी, इसकी उम्मीद नहीं थी।

वह कहते हैं, “लॉकडाउन के तुरंत बाद से प्रदूषण में आ रही गिरावट को मापना कठिन था। हालांकि हमने लॉकडाउन के पहले हफ्ते में ही प्रदूषण में गिरावट दर्ज की थी पर वो लॉकडाउन और बारिश के सामिलित प्रभाव के कारण हुआ था। 27 मार्च को उत्तर भारत में भरी बारिश हुई थी जिसके चलते प्रदूषण में गिरावट आ गई थी। हालांकि मुझे यह जानकर हैरानी हुई की प्रदूषण में आ रही यह गिरावट बारिश के बाद भी जारी रही थी।”

हाल ही में उससे जुडी कुछ तस्वीरें भी नासा ने साझा कि हैं जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि तालाबंदी के बाद से हवा में मौजूद एयरोसोल कि मात्रा में रिकॉर्ड कमी आयी है। आमतौर पर साल के इस समय 31 मार्च से 5 अप्रैल के बीच एयरोसोल का स्तर ज्यादा रहता है। पर इस साल 2020 के दौरान इसमें कमी देखने को मिली है।

नासा द्वारा जारी इन 6 नक्शों के लिए डेटा को टेरा उपग्रह पर मॉडरेट रिजॉल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोमाडोमीटर द्वारा प्राप्त किया गया है। इन 6 में से पहले 6 नक्शे 2016 से 2020 के बीच एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) को दिखाते हैं, जबकि अंतिम मैप 2016 से 2020 के बीच विसंगति को दर्शाता है।

गौरतलब है कि एओडी की मदद से यह मापा जा सकता है कि एयरोसोल प्रकाश को अवशोषित या प्रतिबिंबित कैसे करतें हैं। जब एयरोसोल सतह के पास होते हैं तब एओडी की माप 1 या उससे ऊपर होती है। जिसका अर्थ होता है वायु धुंधली है जो कि प्रदूषण को दिखाती है। वहीं जब ऑप्टिकल डेप्थ वातावरण में ऊर्ध्वाधर रूप से 0.1 या उससे कम गहरी होती है तो हवा को साफ माना जाता है।

जब 2020 में एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ को देखा गया तो लॉकडाउन के दिन यानि 25 मार्च को यह उत्तर भारत में 0.3 थी, जोकि 1 अप्रैल को 0.2 और 5 अप्रैल तक 0.1 पर पहुंच गयी थी। जिसका मतलब साफ है कि इस दौरान हवा साफ हो रही थी।

लॉकडाउन से पहले देश में प्रदूषण की हालत बहुत ही खराब थी। कुछ शहरों में तो लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। दिल्ली की हवा इतनी दूषित हो गयी थी कि उसकी वजह से दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा था, लेकिन तालाबंदी के बाद से दिल्ली की हवा में भी काफी सुधार आया है।

गौरतलब है हर साल मानव निर्मित एयरोसोल के चलते देश के कई शहरों में हवा कि गुणवत्ता खराब हो जाती है। यह एयरोसोल हवा में घुले वो तरल और ठोस कण होते हैं जो हमारे शरीर में फेफड़ों और दिल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें से कुछ एयरोसोल तो जंगल में लगने वाली आग, धूल भरी आंधी और ज्वालामुखी की राख आदि से निकलते हैं, जबकि कुछ इंसानों द्वारा उत्सर्जित होते हैं जैसे फसलों को जलाना, फैक्ट्रियों और वाहनों से निकले धुंए और प्रदूषकों से फैलते हैं।

बसंत के मौसम में बढ़ जाती है एयरोसोल की मात्रा

वैज्ञानिकों के मुताबिक त्तर भारत में बसंत के मौसम में शहरी क्षेत्रों में एयरोसोल की मात्रा बढ़ जाती है, जोकि थर्मल पावर प्लांट, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले नाइट्रेट्स और सल्फेट्स के कारण होता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हे और फसलों के जलने से बढ़ जाता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण इन सब पर रोक लग गई है जिसकी वजह से एयरोसोल में गिरावट आ गई।

उत्तर भारत की हवा तो साफ हो गई हे लेकिन दक्षिण भारत में कहानी कुछ अलग है। डाटा के अनुसार वहां प्रदूषण का स्तर अब भी कम नहीं हुआ है। वास्तव में वो पिछले चार वर्षों की तुलना में थोड़ा अधिक है। हालांकि वैज्ञानिक इसके बारे में पूरी तरह कुछ नहीं कह सकते पर शायद यह मौसम, खेतों में लगायी आग या फिर हवा और अन्य कारकों से हो सकता है।

वैज्ञानिकों को ऐसी आशंका है कि आने वाले कुछ हफ्तों में एयरोसोल का स्तर बढ़ सकता है, क्योंकि साल के इस वक्त में धूल भरी आंधी आती है जो इसको बढ़ा सकती है। फिलहाल अभी उत्तर भारत में जो हवा साफ हुई तो उसकी वजह वैज्ञानिक लॉकडाउन को ही मान रहे हैं। ऐसा कितने दिनों तक रहेगा यह तो वक्त बतायेगा लेकिन एक बात तो तय है कि इसस सभी को सीख लेने की जरूरत है क्योंकि यही प्रदूषण हर साल लाखों लोगों की मौत की वजह बनती है। शायद दुनिया भर के पर्यावरणविद और वैज्ञानिक अपने देशों की सरकारों को यह सलाह दे रहे हैं कि प्रकृति को बचाने के लिए हर साल लॉकडाउन जैसा कोई विकल्प तलाशें।

admin

Share
Published by
admin

Recent Posts

कुलभूषण को अगवा कराने वाला मुफ्ती मारा गया: अज्ञात हमलावरों ने गोली मारी

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को अगवा कराने में मदद करने वाले मुफ्ती…

1 month ago

चैंपियंस ट्रॉफी में IND vs NZ फाइनल आज: दुबई में एक भी वनडे नहीं हारा भारत

चैंपियंस ट्रॉफी 2025 का फाइनल आज भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेला जाएगा। मुकाबला दुबई…

1 month ago

पिछले 4 टाइटल टॉस हारने वाली टीमों ने जीते, 63% खिताब चेजिंग टीमों के नाम

भारत-न्यूजीलैंड के बीच चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला रविवार को दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में खेला…

1 month ago

उर्दू पर हंगामा: उफ़! सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब से…

अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बां थी प्यारे उफ़ सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब…

1 month ago

किन महिलाओं को हर महीने 2500, जानें क्या लागू हुई शर्तें?

दिल्ली सरकार की महिलाओं को 2500 रुपये हर महीने देने वाली योजना को लेकर नई…

1 month ago

आखिर क्यों यूक्रेन को युद्ध खत्म करने के लिए मजबूर करना चाहते है ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेनी नेता की यह कहकर बेइज्जती किए जाने के बाद कि ‘आप…

1 month ago