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उदारीकरण के 30 साल: 1991 से अब तक प्रति व्यक्ति आय 22 गुना बढ़ी

नई दिल्ली। देश के आर्थिक बदलाव के लिए उठाए गए मजबूत कदम को आज (24 जुलाई) को 30 साल पूरे हो गए। 1991 के केंद्रीय बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारत में लाइसेंसी राज को लगभग खत्म कर दिया। इंपोर्ट-एक्सपोर्ट की नीतियों में बदलाव से घरेलू अर्थव्यवस्था के दरवाजे दुनिया के लिए खुल गए। नतीजतन, मजबूत भारत की नींव पड़ी और आज हम 5 ट्रिलियन डॉलर की GDP का सपना देख रहे हैं।

1991 में पेश इस केंद्रीय बजट के साथ ही सरकार अर्थव्यवस्था के लिए LPG यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन का मॉडल लेकर आई थी। आर्थिक सुधारों के लिए उठाए कदम से आम लोगों के जीवन पर भी असर पड़ा है। रहन-सहन के साथ उनके खर्च और आमदनी दोनों पर भी सीधा असर पड़ा है।

जून 1991 में जब पी वी नरसिम्हा राव देश के 9वें प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वित्त मंत्रालय की कमान डॉ मनमोहन सिंह के हाथों दी। उस समय तक डॉ सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर की जिम्मेदारी भी संभाल चुके थे।

वित्त मंत्री के रूप में जब उनको जिम्मेदारियां मिलीं तो उनके सामने कई चुनौतियां सामने आईं। जैसे, शेयर बाजार में हर्षद मेहता घोटाला, चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध से धराशाही इकोनॉमी, इंपोर्ट के लिए जटील लाइसेंसिंग सिस्टम समेत विदेशी पूंजी निवेश पर सरकारी रोक। इससे घरेलू अर्थव्यवस्था की रफ्तार थमी पड़ी हुई थी।

बताते चलें कि 80 के दशक तक सरकार तय करती थी कि किस इंडस्ट्री में कितना प्रोडक्शन होगा। सीमेंट, कार से लेकर बाइक के प्रोडक्शन तक हर सेक्टर में सरकार का कंट्रोल था। नतीजा यह था कि 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री बने तब भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार केवल 5.80 अरब डॉलर रही थी, जिससे सिर्फ दो हफ्तों तक ही आयात किया जा सकता था। ये एक गंभीर आर्थिक समस्या थी।

1991 में तत्कालीन सरकार ने कस्टम ड्यूटी को 220% से घटाकर 150% किया। बजट में बैंकों पर RBI की लगाम भी ढीली की, जिससे बैंकों को जमा और कर्ज पर पर ब्याज दर और कर्ज की राशि तय करने का अधिकार मिला। साथ ही नए प्राइवेट बैंक खोलने के नियम भी आसान किए गए। नतीजनत, देश में बैंकों का भी विस्तार हुआ।

मार्च 1991 में कुल बैंकों की संख्या 272 रही, जो 2021 में 121 हो गई। इसमें ग्रामीण बैंकों की संख्या 196 से घटकर 43 हो गई।

तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह – फाइल फोटो

तत्कालीन केंद्र सरकार ने देश में लाइसेंस राज लगभग खत्म कर दिया। इससे किस वस्तु का कितना प्रोडक्शन होगा और उसकी कितनी कीमत होगी, इन सबका फैसला बाजार पर ही छोड़ दिया गया। सरकार ने करीब 18 इंडस्ट्रीज को छोड़कर बाकी सभी के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता को खत्म कर दी थी।

लाइसेंस राज खत्म होने पर कारों की बिक्री कई गुना बढ़ी

अगर देश में कार प्रोडक्शन के आंकड़ें देखें तो 1991-92 में केवल 2 कारों की बिक्री हुई थी। यह मार्च 1995 में बढ़कर 3.12 लाख हुई। फिर 2003-04 में बिक्री 10 लाख के पार पहुंच गई, जो 2020-21 में 1 करोड़ 52 लाख 71 हजार 519 कारों की बिक्री हुई।

सरकार के इस कदम से भारतीय उद्योगों को सीधे अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कंपीटिशन के द्वार खोल दिए, जिससे अगले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेजी से बढ़ी है।

तीन दशक पहले उदारीकरण की बुनियाद रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने मौजूदा सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि देश की अर्थव्यवस्था का जैसा बुरा हाल 1991 में था, कुछ वैसी ही स्थिति आने वाले समय में होने वाली है। इसके लिए तैयार रहें। आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।

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