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पृथ्वी जैसे ग्रह हो सकते हैं विशाल गैसीय बाह्यग्रहों के बीच

हमारे ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ( जैसे ग्रहों के होने की बहुत संभावनाएं हैं. हमारी ही गैलेक्सी मिल्की वे  के पास के इलाके में बहुत अधिक मात्रा में तारों के सिस्टम हैं जहां हमारे खगोलविद पृथ्वी जैसे बाह्यग्रह  को खोजने को उत्सुक है जहां तरल पानी हो और जो आवासीय इलाके में अपने तारे का चक्कर लगा रहो हो.

नए कम्प्यूटर सिम्यूलेशन दर्शा रहे हैं कि यहां पृथ्वी जैसे ग्रह मिल सकते हैं जो उन स्थानों पर हैं जहां सबसे कम उम्मीद हो, यानि दो बहुत बड़े ग्रहों के बीच.

शोधकर्ताओं दो अजीब से द्विज तारों के तंत्र की खोज की है 55 कैंस्री  नाम का यह सिस्टम हमारी पृथ्वी ( 41 प्रकाशवर्ष दूर कैंसर या कर्क तारमंडल की दिशा में स्थित है. इस द्विज तारा तंत्र का प्रमुख तारा हमारे सूर्य से थोड़ा ही छोटा है लेकिन सूर्य की तुलना में लोहे जैसे भारी धातुओं से ज्यादा समृद्ध है.

उच्च धात्विकता के बावजूद यह एक औसत तारा ही है. लेकिन यह एक साथ इसका एक लाल बौना द्विज तारा भी है, जो पृथ्वी सूर्य की दूरी से एक हजार गुना ज्यादा दूरी पर है.

यहा तारा तंत्र अपने अंदर बहुत सारे ग्रह  समेटे हैं. 55 कैंस्री में चार ग्रह ऐसे हैं जो हमारी पृथ्वी-सूर्य की दूरी से कम दूरी पर स्थित हैं. इस प्रमुख तारे की के सबसे पास स्थित ग्रह का भार पृथ्वी  से 8 गुना ज्यादा है. इसकी कक्षा हमारे सौरमंडल के बुध की कक्षा से भी पास है. इसके बाद तीन विशालकाय ग्रह हैं जिनमें से दो पृथ्वी से 50 गुना भारी हैं और लगभग गुरु ग्रह की तरह भारी है. इस तंत्र का आखिरी ज्ञात ग्रह गुरु ग्रह से चार गुना भारी है और उसकी कक्षा पृथ्वी-सूर्य दूरी से पांच गुना ज्यादा है.

लेकिन ये सब इस सिस्टम के केवल ज्ञात ग्रह  हैं. अंदर और भी ज्यादा ग्रह हो सकते हैं. खास तौर से छोटे ग्रह जिन्हें पकड़ा नहीं जा सका है. बाह्यग्रहों  को पकड़ने के ले वर्तमान में उपयोग में लाई जा रही पद्धतियों से तारों के पास स्थित विशाल ग्रह आसानी से पकड़ में आ जाते हैं. लेकिन ज्यादा दूर और छोटे ग्रहों को पकड़ना संभव है. ऐसा अभी तक पकड़े गए सभी बाह्यग्रहों के सिस्टम में देखा गया है.

शोधकर्ताओं की एक टीम ने हाल ही में ग्रह निर्माण के सिम्यूलेशन  का किया और पड़ताल करके देखा कि क्या 55 कैंस्री सिस्टम में पृथ्वी के आकार के ग्रह हो सकते हैं. उनके सिम्यूलेशन ने खासतौर पर उस इलाके को देखा जो चौथे और पांचवे ग्रह के बीच पड़ता है और जिसे तारों का आवासीय क्षेत्र  कहा जाता है. यह वह इलाका होता है जहां ग्रह की सतह पर तरल पानी हो सकता है. यह ग्रह इतनी पास ना हो कि पानी गर्मी से उड़ जाए और इतनी दूर ना हो कि पानी जम जाए.

शोधकर्ताओं ने सैकड़ों स्थिति में ग्रहों की निर्माण  प्रक्रिया को पूरी तरह से सिम्यूलेट करने के लिए सांख्यिकीय तरीके का उपयोग किया. उन्होंने अपने सिम्यूलेशन की शुरुआत प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क के साथ की जो नए तारे के आसपास गैस और धूल की घूमने वाली तश्तरी होती है.

इस डिस्क में मंगल के भार वाले 500 भ्रूण प्रोटोप्लैनेट थे जिनसे वहां टकराव, विलय और विखंडन की स्थितियां बनीं. शोधकर्ताओं ने पाया कि बड़े ग्रह बहुत सा पदार्थ निगल लेते हैं, फिर उनके बीच पृथ्वी  जैसे ग्रह बनने की संभावना होती है और इस प्रक्रिया में ये बड़े ग्रह बाधक भी नहीं होते.

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