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इस तरह कैसे शिया बनेंगे भाजपा के “शिया”(दोस्त) !

नवेद शिकोह 

अक्सर कहा जाता है कि मुसलमानों के शिया वर्ग और भाजपा के बीच मधुर रिश्ते रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक यूपी में शिया समाज और भाजपा का रिश्ता नर्म रहा है। एक राजनीतिक दल और एक समुदाय के बीच विश्वास के रिश्तों की लम्बी कहानी है। शिया शब्द के कई अर्थों में दोस्त, चाहने वाला, मुरीद, अपना, समर्थक.. जैसे अर्थ भी शामिल हैं।

शिया भाजपा का “शिया” (दोस्त) कैसे बना ? शिया के अर्थों के अनुरूप भारतीय जनता पार्टी से शियों के सकारात्मक रिश्ते के कई कारण रहे हैं।

ये वर्ग सुन्नी समुदाय की अपेक्षा कम तादाद का है इसलिए मुस्लिमपरस्त कहे जाने वाली कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे दलों ने इन्हें सुन्नी समुदाय की अपेक्षा ज्यादा अहमियत नहीं दी बल्कि नजरअंदाज भी किया। और भाजपा इस वर्ग को धीरे-धीरे अपने विश्वास मे लेती गई।

तेइस बरस पहले यूपी में कल्याण सिंह की सरकार द्वारा मोहर्रम के जुलूसों की पाबंदी हटाने से लेकर मौजूदा समय में कश्मीर में तीस बरस से लगे मोहर्रम के जुलूसों पर प्रतिबंध को खत्म करने जैसे भाजपा के फैसले शियों का दिल जीतते रहे।

करीब तीन वर्ष पहले मोहर्रम में इंदौर की बोहरा मस्जिद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ मजलिस में शिरकत की बल्कि पारंपरिक मातमी धुन मे नौहा भी पढ़ा था। साथ ही प्रधानमंत्री ने मजलिस में अपनी तकरीर में हजरत इमाम हुसैन पर अपनी अक़ीदत का इज़हार किया था। जिसके हुसैनी अज़ादारों के मन में प्रधानमंत्री के प्रति सम्मान बढ़ गया था।

भाजपा के नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समय-समय पर शियों के प्रमुख धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद और अन्य उलमा से मुलाक़ात कर उनको सम्मान दिया। भाजपा के शीर्ष नेता धर्मगुरुओं के साथ शिया समाज की समस्याओं और जरुरतों पर ग़ौर-ओ-फिक्र करते रहे हैं।

भले ही देश-दुनिया में भाजपा और मुसलमानों के प्रति दूरी की एक धारणा बनी रही पर मुसलमानों के शिया वर्ग से पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक के भाजपा के सफर की हमसफर बनी रही शिया क़ौम। केंद्र में मुख्तार अब्बास नकवी से लेकर यूपी में मोहसिन रज़ा जैसे नेताओं को भाजपा ने पद-प्रतिष्ठा से नवाजा।

अल्पसंख्यक वर्ग में अल्पसंख्यक कहे जाने वाले शिया समाज पर भाजपा की ज़र्रानवाज़ी ही शायद कारण रही कि यूपी में दशकों तक समय-समय पर कांग्रेस, सपा और बसपा सरकारों में शियों ने अपने धार्मिक अधिकारों को लेकर सरकार विरोधी ख़ूब आंदोलन किए किंतु भाजपा सरकार के खिलाफ कभी भी शिया क़ौम सड़कों पर नहीं उतरी। और ना ही कोई बड़ा आंदोलन किया।

गौरतलब है कि सत्तर के दशक में लखनऊ में मोहर्रम के धार्मिक जुलूसों में शिया-सुन्नी टकराव की कुछ घटनाओं के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मोहर्रम के सभी जुलूसों पर पाबंदी लगा दी गई थी,जो बाइस वर्षों तक जारी रही। इस दौरान यूपी में सपा-बसपा सरकारें आईं और शिया समुदाय मायावती और मुलायम सिंह सरकारों से अपने धार्मिक जुलूसों की मांग करता रहा किंतु किसी सरकार ने उनकी मांगे पूरी नहीं की।

सन 1997 में मायावती सरकार में अजादारी के जुलूसों की बहाली के लिए शिया समाज ने मौलाना कल्बे जव्वाद की क़यादत (नेतृत्व) में जबरदस्त आंदोलन छेड़ दिया। शियों के इस आंदोलन का समर्थन सुन्नी प्रमुख धर्म गुरु जामा मस्जिद के इमाम बुखारी और सुन्नी समदाय के एक वर्ग ने भी किया।

फिर भी मायावती सरकार ने मांगे पूरी करने के बजाय मौलाना कल्बे जव्वाद को तीन बजे उनके घर से गिरफ्तार कर हेलीकॉप्टर के जरिए लखनऊ से बहुत दूर क़ैद कर दिया। आंदोलन और भी भड़क गया, लेकिन मोहर्रम की अज़ादारी के जुलूसों पर से पाबंदी नहीं हटी।

समय का चक्र घूमा और फिर 1998 में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में मोहर्रम के अजादारी के जुलूसों सहित मुसलमानों के सभी प्रतिबंध जुलूसों पर से बाइस वर्ष पुराने पाबंदी हटायी।

इसी तरह मौजूदा वक्त में कश्मीर में तीस वर्ष से प्रतिबंध मोहर्रम के जुलूसों को बहाल कर भाजपा ने एक बार फिर देश के शिया समुदाय का दिल जीत लिया। ये मांग भी भाजपा के शीर्ष नेताओं से लखनऊ के मौलाना कल्बे जव्वाद ने की थी।

कश्मीर में मोहर्रम के जुलूसों पर प्रतिबंध भी खुद को मुसलमानों की हमदर्द बताने वाली ग़ैर भाजपा सरकारों ने लगाया था, जो तीस बरस से जारी था।

बताते चलें कि मुसलमानों का शिया वर्ग मुसलमानों के रसूल हजरत मोहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम की आजादारी और जुलूसो़ से जज्बाती तौर से जुड़ा है। इसे वो अपनी इबादत का हिस्सा भी मानता है।

सन 1996 में अटल बिहारी वाजपेई को इमाम ज़ामिन (शियों का पवित्र रक्षा कवच) बांधने वाले लखनऊ के पुराने भाजपा कार्यकर्ता हैं तूरज ज़ैदी। वो कहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ने, इंसानियत और वतनपरस्ती (राष्ट्रवाद) का फर्ज निभाने के लिए प्रेरित करने वाली हज़रत इमाम हुसैन की शहादत से भाजपा प्रेरणा लेते है,इसीलिए हम भाजपाई उन यज़ीदी आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करना चाहते है जो इस्लाम का मुखौटा लगा कर इंसानियत, राष्ट्रवाद, अमन-चैन,शांति, सद्भाव, अखंडता को चुनौती देते हैं।

आतंकवाद यज़ीद का फर्जी इस्लाम था। यजीद की नस्लें (कथित मुस्लिम) अभी भी मानवता और इस्लाम के खिलाफ खूनखराबा जारी रखना चाहती हैं। हजरत इमाम हुसैन के क़ातिल यज़ीद की नस्लें इस तरह हर दौर में इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश करती रही हैं।

मोहर्रम माह में कर्बला के मैदान मे हजरत इमाम हुसैन ने आतंकवाद (मुस्लिम शासक यज़ीद) के खिलाफ पहली जंग लड़ कर शहादत दी थी। इंसानियत पसंद हुसैनी इस्लाम अस्ल इस्लाम है जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने और वतनपरस्ती की तालीम देता है।

इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम की अज़ादारी ऐसे अस्ल इंसानियत पसंद हुसैनी इस्लाम की तालीम की यूनिवर्सिटी है। तूरज कहते हैं कि भाजपा का मिशन आतंकवाद की जड़े खोदना है। यही वजह है कि आतंकवाद के खिलाफ पहली जंग लड़ने वाली कर्बला की याद में मनाए जाने वाले मोहर्रम की अज़ादारी की भाजपा ने हमेशां कद्र की है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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