कंधार। तालिबान ने पिछले दो दिनों में अफगानिस्तान के कई इलाकों में बड़ी तेजी से कब्जा किया है। तालिबान ने गुरुवार रात कंधार में भी अपनी हुकूमत जमा ली। इसे तालिबान की बड़ी जीत माना जा रहा है, क्योंकि कंधार का कब्जा करने के बाद तालिबान के लिए असरदार तरीके से सत्ता हासिल करना आसान हो गया है। कंधार अफगानिस्तान का दूसरा बड़ा शहर तो है ही, साथ ही सामरिक और आर्थिक रूप से भी इसकी अहमियत सबसे ज्यादा है।
तालिबान के लिए कंधार की अहमियत को 2 पॉइंट्स में समझिए-
1. सामरिक महत्व
2. रणनीतिक महत्व
1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत रही। इस दौरान दुनिया के सिर्फ 3 देशों ने इसकी सरकार को मान्यता देने का जोखिम उठाया था। ये तीनों ही देश सुन्नी बहुल इस्लामिक गणराज्य थे। ये देश थे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और पाकिस्तान।
कंधार विमान अपहरण में थी तालिबान की भूमिका
1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 को हाईजैक किया गया था, तब इसका आखिरी ठिकाना अफगानिस्तान का कंधार एयरपोर्ट ही बना था। उस वक्त पाकिस्तान के इशारे पर तालिबान ने भारत सरकार को एक तरह से ब्लैकमेल किया। भारत की जेल में बंद तीन आतंकियों को रिहा करने के बाद हमारे यात्री देश लौट सके थे।
क्या तालिबान भारत और दुनिया के लिए कोई खतरा है?
कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि तालिबान अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक संस्थानों, नागरिकों के अधिकारों और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इस संगठन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली सिक्योरिटी अलाएंस नाटो का सामना किया है। ऐसे में उसका मोराल काफी हाई है।
तालिबान को मॉनिटर करने वाली UN की टीम ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान के आतंकी संगठन अल-कायदा से मजबूत संबंध हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अल-कायदा पर तालिबान की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है। यहां तक कि अल-कायदा को संसाधन मुहैया कराने से लेकर ट्रेनिंग तक का इंतजाम तालिबान कर रहा है। करीब 200 से 500 अल-कायदा आतंकी अभी भी अफगानिस्तान में हैं। इसके कई नेता पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर के आसपास छिपे हुए हैं। यहां तक कि अमेरिकी अथॉरिटीज मानती हैं कि अल-कायदा चीफ अल-जवाहरी भी यहीं कहीं छिपा है। हालांकि 2020 में उसके मारे जाने की भी अफवाह थी।
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