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धार्मिक कट्टरता की तालिबानी संस्कृति का लक्ष्य सिर्फ सत्ता है !

नवेद शिकोह

तालिबानियों ऐसे ही अफगानिस्तान फतह नहीं किया है, इन्हें बहुतों ने मौका दिया है और उनकी संस्कृति के नक्शेकदम पर चल कर उन्हें हौसला दिया है।

धार्मिक कट्टरता नफरती पहियों की सियासत से अतंतःअपने गंतव्य स्थान सत्ता तक पंहुचती है। तालिबानी संस्कृति के रास्ते पर चलने वाले किस मुंह से इन चरमपंथियों, कट्टरपंथियों पर लगाम लगाएंगे !

चाइना जैसी शक्ति और नेपाल जैसे पिद्दी राष्ट्र भारत को आंखे दिखाने की गुस्ताखिया करने लगे हैं। पाकिस्तान अपने जन्म से अब तक अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया है। और अब तालिबानी भारत के पड़ोसी अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा होकर बैठ गए हैं। भारत के लिए ये बड़ी फिक्र की बात है।

समाधान के रास्ते खोजने की ज़रुरत है। खतरनाक नशे के ख़िलाफ मुहिम के लिए खुद छोटे से नशे से भी परहेज करना होगा। अपनी सियासत से धार्मिक कट्टरता के वायरस को निकाल फेंकना होगा।

विकास की तरफ अग्रसर होकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को खूब मजबूत करना होगा। दोस्तों-दुशमनों को पहचानना होगा। प्रतिद्वंद्वियों की कूटनीतिक चालों को समझना होगा। चाइना की साजिशों से सावधान और अमरीका की चालों से ख़बरदार होना होगा।

कट्टरपंथियों के ख़िलाफ मुहिम के ड्रामे के स्टेज के नेपथ्य में इनको खाद-पानी देने के आरोपों में अमरीका एक बार फिर संदिग्ध भूमिका में है।गाड़ियों का पंचर बनाने वाला चतुर सड़क पर कीलें और काटें बिखेर देता है।

अमेरिका को भी दुनिया ऐसा पंचर वाला कहती रही है। अब आरोप हैं कि अमरीका ने एक रणनीति के तहत साजिशन तालिबानियों के हाथ में अफगानिस्तान की लगाम पकड़ा दी है।

ताकि शांति की गाड़ी का पंचर बनाने के लिए एक बार फिर अमेरिका और उसके सहयोगी विकसित देश मुख्य भूमिका में अपनी अहमियत को उगागर कर सकें।

आतंकी ओसामा बिन लादेन को किसने तैयार किया ? किसकी वजह से चंद तालिबानियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया ? पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था को आतंकी व्यवस्था के सिपुर्द करने में किसका हाथ है ? और उसका इसमें क्या, कैसे और क्यों फायदा है ?  ये सवाल दुनिया मे गूंज रहे हैं।

भारत को सबसे ज्यादा इसपर ग़ौर करना है। दुनिया को शक है कि शक्तिशाली देश भारत के पड़ोसी देशों मे आतंक का बारूद बिछाकर अपना हित साधना चाहते हैं।

अफगानिस्तान के इन हालात के बाद तमाम साजिशों से ख़बरदार होने के साथ धार्मिक कट्टरता के खिलाफ दुनिया का एकजुट होना लाज़मी है। अमेरीका, चाइना और धर्म का लदाबा ओढ़कर सत्ता की तरफ लपकने वालों को सबक सिखाने के लिए विश्व को एकजुट होना ज़रूरी हो गया है।

सुपर पॉवर कहे जाने वाले देश के विकास को परम धर्म मानते हैं। पर ये नहीं चाहते कि भारत विश्व शक्ति बने। इसलिए ये दूसरे देशों की धार्मिक कट्टरता को ताक़त देकर अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकरों की मानें तो विकसित देश विकासशील देशों की कमजोरी धर्मिक कट्टरता को बारूद बनाकर बर्बादी का तमाशा देखना चाहते हैं।

दुनिया के हर इंसान का धर्म सम्मानीय है। धर्म निजी अधिकार है, लेकिन इसका एक दायरा ज़रूरी है। मज़हब विशाल समुंद्र और पवित्र नदी की तरह होता है। ये जब अपने दायरे से बाहर आता है तो इसकी पवित्रता अपवित्रता में तब्दील हो जाती है।

ये जीवनदायिनी नहीं जीवन भक्षक हो जाता है। दायरा टूटता है तो बाढ़, सैलाब और सोनामी की तरह तबाही और बर्बादी बरपा हो जाती है।
मज़हब अपने अस्ल मायने के परे अपभ्रंश की सूरत में अति, कट्टरता के साथ अपने दायरे तोड़कर बेलगाम होता है तो लोकतंत्र और इंसानी आजादी की फसलें रौंदता है।

दुनिया को भुगतना पड़ता है। सुख-शांति और मानवता के सामने बड़ी चुनौती पैदा होती है। दुनिया के तमाम देशों को बेलग़ाम धार्मिक उग्रता ने तबाही और बर्बादी के मोहाने पर ला दिया है।

आज़ादी, फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन, महिलाओं की स्वतंत्रता और लोकतंत्र से धार्मिक कट्टरता का हमेंशा से छत्तीस का आकड़ा रहा है।
इसलिए मौजूदा हालात के मद्देनजर धर्म को निजी दायरे तक सीमित रखिए। धार्मिक कट्टरता को धुतकार दीजिए, धर्म की राजनीति को नकार दीजिए। तालीबानी संस्कृति का जन्म धर्म की कट्टरता की कीचड़ मे ही होता है।

और इनका अंतिम लक्ष्य सत्ता है। धर्म रक्षा का मुखौटा लगाए कट्टरपंथियों-चरमपंथियों की सत्ता पाने की हवस आपकी उन्नति-प्रगति, सुख-शांति, तरक्क़ी, आज़ादी और लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल देती है।

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