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कांग्रेस की सियासत पर करारा प्रहार कर तीखे तेवर दिखा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया

नई दिल्ली। कभी कांग्रेस में एक-दूसरे के बेहद करीब रहे गांधी परिवार एवं सिंधिया राज परिवार के निजी संबंध अब नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। सियासत ने जितना दोनों को नजदीक किया था उतना ही अब दूरी भी बढ़ा चुकी है। यही कारण है कि केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला बोलने का कांग्रेस कोई मौका नहीं छोड़ती। लिहाजा अब सिंधिया भी कांग्रेस और गांधी परिवार को जवाब देने में कोई रियायत नहीं देना चाहते हैं।

उन्होंने अपना पक्ष साफ कर दिया है कि सियासत में गांधी परिवार से दो-दो हाथ करने में अब वह किसी तरह का संकोच नहीं करेंगे।

मंगलवार से मध्य प्रदेश में शुरू हुई अपनी आशीर्वाद यात्र में सिंधिया ने देवास में यह कहकर हमला बोला कि कांग्रेस का पहला और अंतिम लक्ष्य सिर्फ एक परिवार का उत्थान है। पूरी कांग्रेस एक परिवार के लिए ही काम करती है। इसलिए जनता का विकास उसके एजेंडे में नहीं हो सकता है। सिंधिया का संकेत इतना स्पष्ट था कि कांग्रेस के एक परिवार के बारे में अनुमान लगाने की कोई जरूरत ही नहीं है। सब जानते हैं कि कांग्रेस का यह एक परिवार कौन है।

कांग्रेस और सिंधिया राज परिवार का संबंध काफी पुराना रहा है। समय-समय पर उसमें उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन निजी हमले की स्थिति नहीं आई। राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया की दोस्ती ने दोनों परिवारों के संबंध को न सिर्फ घनिष्ठ बनाया, बल्कि एक-दूसरे के लिए अपरिहार्य भी बना दिया था।

यह दोस्ती उनके समय में दोनों के पुत्रों क्रमश: राहुल गांधी एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच भी बाल्यकाल में ही कायम हुई। राहुल एवं ज्योतिरादित्य दून स्कूल में सहपाठी थे और एक-दूसरे के दोस्त। दोनों के सयाने होने पर भी यह दोस्ती न सिर्फ बनी रही, बल्कि प्रगाढ़ होती गई। दोस्ती की मजबूत डोर के साथ दोनों सियासत की सीढ़ियां चढ़ने लगे। लोकसभा में भी दोनों साथ साथ आते जाते और उठते बैठते।

पारिवारिक विरासत के उत्तराधिकारी होने के कारण राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो माना जाने लगा कि सिंधिया की ताकत बढ़ेगी। कई मौकों पर ऐसे संकेत भी मिले, लेकिन अचानक एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस के लिए अपरिहार्य माने जाने वाले सिंधिया की अनदेखी होने लगी।

उन्हें लगा कि सियासत में दोस्ती की परिभाषा शायद बदल रही है। उन्हें वह जगह नहीं मिल रही है जिसके वे हकदार हैं। मध्य प्रदेश में वह कांग्रेस नेताओं द्वारा ही घेरे जाने लगे, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व चुप्पी साधे रहा। आखिरकार उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया। वह अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, जिस कारण कांग्रेस की कमल नाथ सरकार धराशायी हो गई।

अब जबकि सिंधिया भाजपा में महत्वपूर्ण स्थिति में आ चुके हैं तो गांधी-सिंधिया परिवार के निजी संबंध भी नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना गांधी परिवार को समय-समय पर टीस देता रहता है। इसकी बानगी कुछ दिनों पूर्व राहुल गांधी की उस टिप्पणी में देखी जा सकती है जिसमें उन्होंने सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने को लेकर पहली बार निजी हमला बोला था।

राहुल ने कहा था कि सिंधिया डर गए थे कि यदि वे भाजपा में नहीं गए तो उनसे राजमहल छिन जाएगा। राहुल की यह टिप्पणी चर्चा में थी। भाजपा ने कड़ा प्रतिवाद किया, लेकिन तब सिंधिया ने कोई जवाब नहीं दिया था। शायद उन्हें सही मौके का इंतजार था।

मंगलवार से मध्य प्रदेश में शुरू हुई उनकी आशीर्वाद यात्र में अंतत: वह मौका आ ही गया। जनता के बीच आकर सिंधिया ने न सिर्फ कांग्रेस पर हमला बोला, बल्कि पहली बार गांधी परिवार पर तल्ख टिप्पणी भी की। देवास में उन्होंने साफ कहा कि हमारे और कांग्रेस के सोच में बहुत अंतर है। हम देश और गरीबों के विकास की बात करते हैं तो कांग्रेस सिर्फ एक परिवार के उत्थान की बात करती है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस के अपने अनुभवों को भी वह जनता के सामने रखकर बता रहे हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों से कांग्रेस पूरी तरह कट चुकी है। हाल ही में समाप्त हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस के गैर जिम्मेदाराना रवैये पर भी वह जमकर प्रहार कर रहे हैं।

सिंधिया की आशीर्वाद यात्र को खूब जनसमर्थन मिल रहा है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता इस यात्र को सफल बनाने में जुटे हैं। हर जगह भीड़ उमड़ रही है। जाहिर है इससे सिंधिया को नई ताकत मिल रही है जो कांग्रेस को परेशान कर रही है। सिंधिया को लेकर कांग्रेस की असहजता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा है कि वह तब तक मध्य प्रदेश से बाहर नहीं जाना चाहते, जब तक सिंधिया से सरकार गिराने का बदला नहीं चुका लेते।

मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि सिंधिया को लेकर कांग्रेस की असहजता कोई नई बात नहीं है। वह जानती है कि उनके भाजपा में शामिल होने के बाद उसकी जमीन खिसक गई है। अब कांग्रेस के दिन लद चुके हैं।

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