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केंद्र पर तल्ख टिप्पणी:- सरकार सम्मान नहीं कर रही, मत लीजिए धैर्य की परीक्षा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आप हमारे फैसलों का सम्मान नहीं कर रहे हैं, हमारे धैर्य की परीक्षा मत लीजिए। कोर्ट ने ये बातें ट्रिब्यूनल में खाली वैकेंसी न भरे जाने और ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट पास न किए जाने पर की है।

ट्रिब्यूनल को लेकर कोर्ट की 4 तल्ख टिप्पणियां

1. चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, “अब तक कितने लोगों को अपॉइंट किया गया है। आपने कहा था कि कुछ लोगों का अपॉइंटमेंट हुआ था, कहां हैं ये अपॉइंटमेंट?”

2. “मद्रास बार एसोसिएशन में हमने जिन प्रावधानों को खत्म किया था, ट्रिब्यूनल एक्ट भी ठीक उसी तरह है। हमने जो निर्देश आपको दिए थे, उसके हिसाब से अभी तक अपॉइंटमेंट क्यों नहीं हुए।”

3. “सरकार अपॉइंटमेंट न करके ट्रिब्यूनल को शक्तिहीन बना रही है। कई ट्रिब्यूनल तो बंद होने के कगार पर हैं। हम इन हालात से बेहद नाखुश हैं।”

4. “हमारे पास अब केवल तीन विकल्प हैं। पहला- हम कानून पर रोक लगा दें। दूसरा- हम ट्रिब्यूनल बंद कर दें और सारे अधिकार कोर्ट को सौंप दें। तीसरा- हम खुद अपॉइंटमेंट कर लें। मेंबर्स की कमी के चलते NCLT और NCLAT जैसे ट्रिब्यूनल में काम ठप है।”

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से मोहलत मांगी
तुषार मेहता ने कहा कि सर्च और सिलेक्शन कमेटी की रिकमेंडेशन पर फाइनेंस मिनिस्ट्री दो हफ्ते में फैसला लेगी। मुझे 2-3 दिन का वक्त दीजिए, तब मैं आपके सामने इस मुद्दे पर जवाब पेश करूंगा। इस पर अदालत ने कहा कि हम सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेंगे और उम्मीद है कि तब तक अपॉइंटमेंट हो जाएंगे।

रिफॉर्म एक्ट पर कोर्ट ने कहा- फैसले के खिलाफ कानून नहीं बना सकते
अदालत ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट के खिलाफ दायर एक पिटीशन पर भी नोटिस जारी किया। कांग्रेस सांसद की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जिन प्रावधानों को दोबारा लागू किया गया है, वो वही हैं, जिन्हें कोर्ट ने पहले खत्म कर दिया था।

कोर्ट ने कहा, “अगर आपको सुप्रीम कोर्ट के दो जजों पर भरोसा नहीं है तो हमारे पास विकल्प नहीं बचता है। मद्रास बार एसोसिएशन का फैसला अटॉर्नी जनरल को सुनने के बाद ही दिया गया था। इसके बाद भी आप हमारा आदेश नहीं मान रहे हैं तो ये क्या है? विधायिका फैसले के आधार को तो छीन सकती है, पर वो ऐसा कानून नहीं बना सकती जो फैसले के खिलाफ हो।”

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