काबुल। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान की तरफ एक अहम बयान आया। कहा गया- काबुल एयरपोर्ट और शहर की सुरक्षा अब बदरी कमांड के हवाले की जा रही है। दुनिया के लिए यह नाम नया था। बदरी कमांड को बदरी कमांड 313 भी कहा जाता है। इसे तालिबान की स्पेशल फोर्स भी कहा जाता है। काबुल पर कब्जे के बाद इसके दहशतगर्द पहाड़ों में नहीं रहते। इन्होंने काबुल के एक नर्सरी स्कूल को अपना नया ठिकाना बनाया है। दीवारों पर नन्हीं कलम की कलाकारी देखी जा सकती है।
‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ की जर्नलिस्ट होली मैके ने बदरी कमांड के इस नए बेस का दौरा किया। यहां जानते हैं कि इस रिपोर्ट में उन्होंने इस यूनिट के बारे में क्या बताया।
नर्सरी स्कूल में अब दहशत की तालीम
कुछ दिन पहले तक यह आम नर्सरी स्कूल था। कुछ टूटे-फूटे खिलौने अब भी यहां-वहां नजर आ जाते हैं। गुलाबी दीवारों का रंग चमक खो रहा है। बच्चों की उंगलियों से पेन्सिल के जरिए निकली शरारतें दीवारों पर नजर आ ही जाती हैं। बाहर फेंसिंग है, शायद बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई होगी। अब इस पर तालिबानियों के कपड़े सूख रहे हैं।
बदरी कमांड में दो यूनिट
बदरी कमांड या बदरी कमांड 313 में दो यूनिट या कहें हिस्से हैं। पहला- इसमें हाई रैंक फाइटर हैं। इन्हें ‘हाफिज बदरी’ कहा जाता है। दूसरा- स्पेशल सुसाइड बॉम्बर्स या खास फिदायीन हमलावर। थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद मुख्य कमांडर हमें अंदर आने की इजाजत देता है। मेन गेट के ठीक सामने ऑफिस है।
इसमें टेबल पर M240 मल्टीबैरल गन रखी है। इसके अलावा ढेर सारे हथियार चेन से बंधे लटकते दिखते हैं। इनमें ज्यादातर अमेरिकी हथियार और दूसरे सैन्य साज-ओ-सामान हैं। कमांडर के पास बेहतरीन अमेरिकी पिस्टल 1911 है।
लड़के रोते हुए आते हैं
29 साल का यह बदरी कमांडर हंसते हुए कहता है- मैंने जब तालिबान ज्वॉइन किया तो कोई ट्रेनिंग नहीं ली। हाथ में गन थमा दी गई और बस खेल शुरू हो गया। हालांकि, अब इस कमांड में आने के लिए कठिन ट्रेनिंग लेनी होती है। इस कमांडर के साथ एक कमांडर था। इसका नाम कारी ओमादी अब्दुल्ला है।
यही दोनों उनका चुनाव करते हैं जो फिदायीन हमलावर बनना चाहते हैं। कारी कहता है- पहले हम सिर्फ यह देखते हैं कि जो फिदायीन बनना चाहता है, उसमें हिम्मत कितनी है। कुछ लड़के तो हमारे पास रोते हुए आते हैं और भीख मांगते हुए कहते हैं कि हमें फिदायीन हमलावर बना दो।
आतंक का अभ्यास
कारी कहता है- ट्रेनिंग आमतौर पर 40 दिन से 6 महीने चलती है। यह उनको दिए जाने वाले मिशन या टारगेट के हिसाब से तय होती है। इन्हें फिजिकल ट्रेनिंग के साथ मजहबी तालीम भी दी जाती है। ज्यादातर सुसाइड बॉम्बर्स गरीब परिवारों से और अनपढ़ होते हैं। 2016 में 17 साल के फिदायीन हमलावर को जर्मन एम्बेसी को उड़ाने का टारगेट दिया गया था।
वो अंदर नहीं घुस पाया था। उसके साथियों ने जरूर 6 लोगों को मार गिराया था और 100 घायल कर दिए थे। इनकी ट्रेनिंग पाकिस्तान बॉर्डर पर हुई थी। शुरुआती कुछ हफ्ते सिर्फ मजहबी तालीम होती है। इसके बाद हथियार चलाना सिखाया जाता है और फिर फिजिकल ट्रेनिंग।
हक्कानी नेटवर्क और अलकायदा साथ
तालिबान की बदरी यूनिट हकीकत में पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क से जुड़ी है। अलकायदा से इसके बेहद करीबी रिश्ते हैं। इसमें सैकड़ों आतंकी हैं। करीब 300 तो इस वक्त अकेले काबुल शहर में तैनात हैं।
बदरी कमांड में शामिल ज्यादातर दहशतगर्दों की उम्र 25 से 30 साल के बीच है। सुसाइड बॉम्बर्स की उम्र 20 साल या उससे कुछ ज्यादा होती है। कहा जाता है कि तालिबान के सुप्रीम लीडर हिब्तुल्लाह अखुंदजादा का बेटा भी फिदायीन था। अफगानिस्तान में आत्मघाती हमले 2014 के बाद ज्यादा हुए। शिया लोगों को टारगेट बनाया जाता है।
फिदायीन हमले बंद नहीं होंगे, एयरफोर्स तैयार होगी
कारी के मुताबिक- हम अमन लाना चाहते हैं, लेकिन सुसाइड बॉम्बिंग का स्कूल और ट्रेनिंग जारी रहेगी। हमारा अगला टारगेट खुद की एयरफोर्स तैयार करना है। हमारे पास हेलिकॉप्टर और कुछ फाइटर जेट्स हैं। बड़े हथियार भी हैं। इस ग्रुप में कुछ विदेशी दहशतगर्द भी हैं।
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