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आठ साल में देखते ही देखते निषाद सियासत का अहम किरदार बन गए डॉ. संजय

लखनऊ। गोरखपुर जिले में गठित हुई निषाद पार्टी सूबे की राजनीति में अहम बन रही है। सिर्फ आठ साल के सफर में इस पार्टी का पीस पार्टी और सपा के बाद भाजपा के साथ तीसरा गठबंधन है। हर गठबंधन के साथ इस पार्टी के मुखिया डा. संजय ने अपनी ताकत बढ़ाई। लगातार दो बार बेटे को सांसद बनाया और फिर अब खुद एमएलसी मनोनीत हो गए।

वर्ष 2019 में भाजपा के साथ हुए गठबंधन का लाभ निषाद पार्टी को मिल रहा है। रविवार को पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद को विधान परिषद सदस्य बना दिया। इसके साथ ही आठ साल के राजनैतिक कैरियर में पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष को सूबे के सदन में एंट्री मिलेगी। इससे पूर्व वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र प्रवीण निषाद भाजपा से संतकबीर नगर से सांसद चुने गए थे।

निषादों के 578 उप जातियों की है राजनीति

अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल निषादों को अनुसूचति जाति का दर्जा दिलाने की मांग ने निषाद पार्टी की भूमिका तैयार की। पार्टी का नाम निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) रखा गया। पार्टी ने निषादवंशी 578 उप जातियों को एससी का प्रमाणपत्र दिलाने के लिए मुहिम शुरू की। निषाद आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुआ यह आंदोलन 13 जनवरी 2013 को पार्टी में तब्दील हो गया।

पार्टी ने 2017 में पहली बार लड़ा चुनाव

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार निषाद पार्टी मैदान में उतरी। निषाद पार्टी ने पीस पार्टी से हाथ मिलाकर 60 सीटों पर चुनाव लड़ा। जीत सिर्फ ज्ञानपुर सीट पर मिली। इसमें डॉ. संजय निषाद ने भी हाथ आजमाया। उन्हें पराजय मिली।

लोकसभा उपचुनाव से चमकी पार्टी

वर्ष 2017 के गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर लिया। यह सीट सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफा देने के बाद रिक्त हुई थी। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने अपने पुत्र प्रवीण निषाद को सपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया। करीब चार दशक बाद गोरखपुर सीट निषाद पार्टी की मदद से पहली बार सपा के खाते में गई। इस जीत ने निषाद पार्टी व संजय निषाद के कद को बढ़ा दिया।

निषाद वोट बैंक पर भाजपा की नजर

निषादों को पूर्वी यूपी का बड़ा वोटबैंक माना जाता है। राजनैतिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित निषादों को पूर्व मंत्री जमुना निषाद ने बड़ी पहचान दी। उनके निधन के बाद निषादों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं था। इस खाली स्थान को निषाद पार्टी ने धीरे-धीरे समाज को सहेजना शुरू किया।

इसमें 7 जून 2015 में सहजनवा का कसरवल कांड अहम मोड़ साबित हुआ। एससी आरक्षण के लिए रेलवे ट्रैक पर आंदोलन उग्र होने पर हुई पुलिस फायरिंग में एक युवक की मौत हो गई थी। इस मामले में डॉ. संजय निषाद और उनके समर्थकों पर केस हुआ और 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। इसके बाद डॉ. संजय निषाद बड़े नेता के तौर पर उभरे।

संक्षिप्त परिचय

नाम- डॉ. संजय कुमार निषाद

पद- राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल निषाद पार्टी

पिता- स्व. सूबेदार मेजर विजय कुमार

जन्मतिथि- सात जून 1965

मूल रूप से कैंपियरगंज के जंगल बब्बन गांव के रहने वाले डॉ. संजय के पिता सेना में सूबेदार मेजर थे। माता गृहणी थी। 1988 में कानपुर विश्वविद्यालय से बीएमएच की उपाधि प्राप्त की। चिकित्सा अभ्यास शुरू किया। 1988 में ईएचपी गण परिषद के संस्थापक राष्ट्रीय महासचिव बने। 1989 में काउंट मैटी मेमोरियल के सचिव बने।

वर्ष 2008 से सक्रिय राजनीति में एंट्री की। 2008 में ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनारटीज वेलफेयर मिशन, शक्ति मुक्ति महासंग्राम के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 13 जनवरी 2013 को राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में एंट्री की। निषाद समुदाय से जुड़े 578 जातियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। मछुआ समाज ने उन्हें तमिलनाडु में पॉलिटिकल गॉडफादर आफ फिशरमैन की उपाधि दी है।

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