लखनऊ। अखिलेश यादव छह सात दलों का मोर्चा बना कर भारतीय जनता पार्टी से लोहा लेने जा रहे हैं। विभिन्न दलों के साथ उनका गठबंधन धीरे-धीरे आकार ले रहा है। अलग-अलग इलाकों में क्षेत्रीय ताकतों को इस तरह जोड़ जा रहा है ताकि जातीय समीकरण सपा के वोट बैंक को बढ़ाने में मदद करें। सपा की कोशिश इस बार 10 प्रतिशत वोट की छलांग लगाने की है। इस मुहिम में रालोद, सुभासपा, जनवादी पार्टी, एनसीपी, महान दल, तृणमूल कांग्रेस सपा के हमसफर बन रहे हैं।
पश्चिम यूपी की जाट बेल्ट में प्रभावी माने जाने वाली रालोद पहले से ही सपा के साथ है। यहां किसान आंदोलन से जुड़े लोगों का भी गैरभाजपा दलों खासतौर पर सपा को समर्थन है। पश्चिमी यूपी में एमवाई के फार्मूले के साथ रालोद को साथ लेकर किसानों को जोड़ने की कोशिश है।
पिछले चुनाव में भाजपा का एक सहयोगी दल अब सपा के साथ आने जा रहा है। बुधवार को मऊ में सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर द्वारा बुलाई गई रैली में अखिलेश यादव खासतौर पर शिरकत करेंगे। वहीं पर दोनों दल गठबंधन का ऐलान करेंगे। सपा को भरोसा है कि सुभासपा के आने से पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में राजभर व अन्य ओबीसी वर्ग उनके साथ आ सकता है।
पश्चिमी यूपी के संभल, कासगंज, बदायूं, व पूर्वांचल के प्रयागराज, कुशीनगर व मिर्जापुर आदि क्षेत्रों में असर रखने वाले महान दल सपा का साझेदार है। महान दल ने हाल में सपा के समर्थन में प्रदेश भर में रैली निकाली है। इसी तरह जनवादी पार्टी सोशलिस्ट भी सपा को जिताने की अपील के साथ प्रदेश में जनक्रांति यात्रा निकाल चुकी है। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, महाराजगंज, चंदौली में चौहान समाज (नोनिया बिरादरी)का कई प्रभाव माना जाता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी का जल्द सपा के साथ गठबंधन होगा। वह अखिलेश की विजय रथ यात्रा में शामिल होंगी। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री रहते लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश के लिए यूपी में रैली कर चुकी हैं। जबकि सपा ने बंगाल चुनाव में बिना शर्त समर्थन किया था।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व विपक्षी राजनीति में बड़े नेता शरद पवार की एनसीपी से भी सपा का करार हो चुका है। वैसे तो यह दोनों दल यहां कोई प्रभाव नहीं है लेकिन यूपी के कई नेता सपा में शामिल हुए बिना इन दलों के जरिए चुनाव टिकट सपा से पा सकते हैं।
शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी सपा के साथ गठबंधन करने की बात पहले ही कह चुकी है लेकिन सपा की ओर से अभी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं आई है। संभव है चुनाव आते आते दोनों दल मिल कर चुनाव लड़ें। इसी तरह आम आदमी पार्टी व सपा के बीच संबंध बेहतर हैं। भले ही अलग अलग लड़े। आम आदमी पार्टी के निशाने पर भाजपा व कांग्रेस ही है। सपा भी आम आदमी पार्टी पर किसी तरह के हमले से बचती है। दोनों के बीच आपसी समझ बनी हुई है।
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