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सच साबित हुआ अंदेशा: उद्योग धंधों को चलाने के लिए श्रमिको की कमी बढ़ी

नई दिल्ली। जब राज्य सरकारों की नाकामी के कारण प्रवासी मजदूरों ने अपने गृह राज्यों की तरफ रुख करना शुरू कर दिया तब अंदेशा जताया जा रहा था कि इससे ओधोगिक इकाइयों पर बुरा असर पड़ सकता है।  आखिरकार वहीं हुआ जिसका डर था। प्रवासी श्रमिकों के पलायन की वजह से औद्योगिक इकाइयों को चलाने में परेशानी आ रही है। सरकारों से हरी झंडी मिलने के बावजूद भी तमाम कल कारखाने नहीं खुल पा रहे हैं।

देश में तालाबंदी का तीसरा चरण 4 मई से शुरु हो चुका है। अब भी देश के कई राज्यों में लाखों श्रमिक फंसे हुए हैं। ये हर हाल में अपने घरों को लौटने के लिए बेताब हैं। इनको जो साधन मिल रहा है उससे अपने घरों के लिए जा रहे हैं। हजारों श्रमिक तो पैदल ही अपने गांव लौट चुके हैं।

दिल्ली, अहमदाबाद, लुधियाना, कोलकाता, जयपुर, फिरोजाबाद जैसे कई शहरों में श्रामिकों के पलायन की वजह से फैक्ट्रियों की मशीनें नहीं चल पा रही है। अपने-अपने घरों के लिए बढ़ते और निकलते मजदूरों के कदमों की आवाज इंडस्ट्री चलाने वालों के दिलों पर हथौड़े की तरह बज रही हैं। कई राज्यों की सरकारों ने भी श्रमिकों से न जाने की अपील की है।

कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हुई तालाबंदी की कीमत उद्योगों को चुकानी पड़ रही है। हालात बिल्कुल बेकाबू ना हो, इसलिए राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक से लेकर तेलंगाना तक की सरकारें मजदूरों से कह रही हैं कि प्लीज रुक जाइए।

जयपुर के मंगला सरिया फैक्ट्री में रोजाना 500 मजदूर काम करते थे, अगर एक तिहाई मजदूर भी रखें तो पौन दो सौ चाहिए लेकिन आज सौ के भी लाले पड़े हुए हैं। सिर्फ एक फैक्ट्री की बात नहीं है, बल्कि साबुन बनाने वाले जगदीश सोमानी भी मजदूरों का ही रोना रो रहे हैं।

राजस्थान उद्योग संघ का दावा है कि लॉकडाउन में राजस्थान को 25 हजार करोड़ का घाटा हो चुका है, लेकिन दिक्कत ये है कि राजस्थान में 17 लाख मजदूरों ने घर वापसी के लिए रजिस्ट्रेशन करवा रखा है, जिनमें दस लाख लोग राजस्थान आना चाहते हैं और सात लाख लोग यहां से जाना चाहते हैं। सरकार का इशारा यही है कि जिन मजदूरों को रहने की दिक्कत नहीं है, उनको रोककर कल पुर्जों में रफ्तार लाई जाएगी।

श्रमिकों के पलायन की वजह से कारोबारी सदमे में हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। वह कैसे रोके इन्हें।

उत्तर प्रदेश के नोएडा में कारोबारी समझ नहीं पा रहे कि उन्हें करना क्या है? नोएडा में उद्योग धंधों का कारोबार 35 हजार करोड़ का है, लेकिन पिछले 40 दिनों से सब कुछ ठप है और इन्हें चलाने के लिए 33 फीसदी मजदूर मिल नहीं रहे।

गर्मी बढ़ती जा रही है, लेकिन एशिया महादेश के सबसे बड़े पंखा और कूलर मार्केट बसई दारापुर में सन्नाटा पसरा है। मेरठ में काम धंधा बंद है। मुरादाबाद में आइसक्रीम फैक्ट्रियों में जमी बंद की बर्फ पिघल नहीं रही। लुधियाना में कपड़ों का कारोबार सिसकी ले रहा है।

अलीगढ़ के ताला कारोबारी सोच रहे हैं कि उनका लॉकडाउन कब खुलेगा। इत्र का शहर कन्नौज कामगारों के बगैर बजबजा रहा है। लुधियाना का साइकिल उद्योग सरकार से छूट मांग रहा है। फिरोजाबाद की चूडिय़ों पर मायूसी का डेरा है और ठप पड़ा है गुरुग्राम की ऑटो इंडस्ट्री।

तालाबंदी ने देश के हर तबके को प्रभावित किया है। यातायात ठप हुआ तो पेट्रोलियम क्षेत्र में 0.5 फीसदी की गिरावट हुई। बिजली का उत्पादन कम हुआ तो उसकी मांग में 7.2 फीसदी की कमी आई। निर्माण के काम रुकने से सीमेंट उद्योग में 25 फीसदी की कमी आई। देश में इस्पात का उत्पादन 13 फीसदी कम हो गया।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के मुताबिक, कोरोना के कारण पिछले हफ्ते बेरोजगारी दर 27.11 फीसदी रही, जबकि अप्रैल में ये मासिक बेरोजगारी दर 25.52 फीसदी थी। कोरोना ने देश को अजीब संकट में डाल दिया है। एक तरफ ये वैश्विक महामारी है और दूसरी तरफ पेट का सवाल।

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