प्रवासियों का दर्द : सूखी रोटी खायेंगे लेकिन अब कभी वापस नहीं जायेंगे

रायबरेली। जिस शहर को बनाने में अपनी कड़ी मेहनत लगाई और उस शहर ने भी मेहनतकशों के सपनों को पूरा करने में मदद की। अचानक कोरोना का ऐसा चक्र चला कि सब बेगाने हो गए एक दूसरे के लिए। अब न उस शहर को उन मेहनतकशों से मतलब और न ही मेहनतकशों को शहर लौटने की इच्छा।
हाल के दिनों में मुम्बई, इंदौर, सूरत, अहमदाबाद, पुणे आदि शहरों से लौटे प्रवासियों का दर्द यही है। अब वह उस ओर देखना भी नहीं चाहते, जहां वह जाकर अपने सपने संजोये थे। ऐसे कई प्रवासी मजदूरों ने हिन्दुस्थान समाचार से अपना दर्द साझा किया। सबका यही कहना है कि भले ही सुखी रोटी खायेंगे लेकिन अब कभी भी लौट के वापस नहीं जायेंगे।
महराजगंज के मऊ शर्की निवासी दयाशंकर, लवकुश, जितेंद्र, अमरेश अहमदाबाद से लौटे हैं। वहां वह एक कंपनी में काम करते थे। इन सभी का कहना है कि अब कभी वापस नहीं जायेंगे, घर में ही रहकर कमायेंगे और खायेंगे।
दयाशंकर का कहना है कि जब तक काम किया तब तक ठीक लेकिन काम बंद होने के बाद बहुत समस्या हो गई, कोई पूछने वाला नहीं। बड़ी मुश्किल से घर पहुंचे हैं और अब उधर कभी नहीं जायेंगे। लालगंज के जनता बाजार निवासी सुरेश, राममनोहर व संजय भी अब किसी भी कीमत पर जाने को राजी नहीं है। यही हाल सलोन के उमरी निवासी रामु,सत्यप्रकाश,रामप्रकाश और उमेश का है। सभी इंदौर में एक फैक्ट्री में काम करते थे और घर का खर्च भी आराम से चल रहा था, लेकिन कोरोना ने सब बंद कर दिया।
सत्यप्रकाश का कहना है कि लॉक डाउन की घोषणा के बाद से ही फैक्ट्री के मैनेजर ने घर जाने के लिए कह दिया और अभी भी पूरा पैसा नहीं दिया। आख़िर कब तक काम चलाते। उनका कहना है कि उधार मांग कर किसी तरह किराये का इंतजाम किया और घर लौट पाए।
सत्यप्रकाश का कहना है कि अब यहीं काम खोजेंगे, कम ही सही लेकिन अब वापस बिल्कुल नहीं जायेंगे। गदागंज के गौरा निवासी भगौती जो कि पूरे परिवार के साथ मुम्बई में रहकर काम करते थे, लेकिन अब लौटकर अपने घर मे सकून महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि परदेश में सबने मजबूरी का फायदा उठाया। गांव घर में तो सब अपने हैं। जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यही कुछ देखेंगे लेकिन वापस नहीं जायेंगे।
इन प्रवासी मजदूरों की व्यथा यही है कि परदेश में संकट के समय उन्हें कुछ नहीं मिला, जिससे अब सबके मन में यही है कि वह अपने ही घर गांव में रहकर जीवन की गाड़ी को खींचेगे। कोरोना का ही असर इतना गहरा हुआ कि कल तक परदेश में भी उम्मीद जगाये ये प्रवासी अब उस ओर जाना भी नहीं चाहते और अपनों के बीच जिंदगी को नये सिरे से शुरू करने की तलाश कर रहे हैं।
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