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अखिलेश की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जबर्दस्त वापसी की, सबसे बड़ी पार्टी बनी सपा

उत्‍तर प्रदेश में मंगलवार को हो रही लोकसभा चुनाव की मतगणना में समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा सत्तारूढ़ बीजेपी को कड़ी टक्कर देना पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की लोकप्रियता को दर्शाता है।

अबतक के रुझानों में सपा 38 लोकसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई हुई है जबकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 31 सीट पर आगे है। यह रुझान बीजेपी के लिए करारा झटका है। पार्टी ने उस प्रदेश की सभी 80 सीट जीतने का दावा किया था जहां से प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी सांसद हैं।

सपा ने मायावती नीत बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ गठबंधन में पिछला चुनाव लड़ा था और पांच सीट जीती थी, लेकिन इस बार अखिलेश की पार्टी ने प्रदेश में बीजेपी को करारा झटका दिया है, जिसने 2019 में 62 सीट जीती थीं।

एक जुलाई 1973 को जन्मे अखिलेश यादव ने राजनीतिक रूप से इस महत्वपूर्ण राज्य में विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। उनकी पार्टी ने विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के तहत 62 सीट पर चुनाव लड़ा और शेष सीट कांग्रेस तथा अन्य दलों के लिए छोड़ दीं।

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला आम चुनाव था और अखिलेश ने निराश नहीं किया और उनके नेतृत्व में पार्टी साल 2004 से भी बेहतर प्रदर्शन करने की ओर अग्रसर है। 2004 के चुनाव में सपा ने 36 सीट जीती थी।

प्रचार के दौरान मोदी अक्सर अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘दो लड़कों की जोड़ी’ बताकर तंज कसते थे ऐसा लगता है कि अखिलेश के ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) ने पार्टी के लिए काम किया।

भाजपा ने प्रचार के दौरान अयोध्या स्थित राम मंदिर के मुद्दे को जोरशोर से उठाया, बावजूद इसके सपा फैजाबाद लोकसभा सीट पर भी भाजपा से आगे है। इस सीट में अयोध्या का क्षेत्र शामिल है ।

‘इंडिया’ गठबंधन की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस को प्रदेश में भदोही लोकसभा सीट दी गई। अखिलेश ने अपने भाषणों में भाजपा की मनमानी को उजागर करने के लिए  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झामुमो नेता हेमंत सोरेन को जेल भेजने की निंदा की।

उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव की प्रशंसा भी की। कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव और तीन चचेरे भाइयों के लिए समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली।

चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश ने भाजपा को अपना विमर्श को बदलने के लिए मजबूर किया और कुछ हद तक उसे बैकफुट पर भी धकेल दिया। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के भाई-भतीजावाद के आरोप पर पलटवार करते हुए कहा कि जिनका कोई परिवार नहीं है, उन्हें दूसरों को दोष देने का कोई अधिकार नहीं है।

इस जवाब से भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं के साथ-साथ जमीनी कार्यकर्ताओं ने भी अपने सोशल मीडिया परिचय में “मोदी का परिवार” जोड़ दिया। सपा के प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि राज्य की मुस्लिम आबादी का भी उसे मजबूत समर्थन मिल है, जो कुल आबादी में एक बड़ा हिस्सा है।

चुनाव से पहले अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ तालमेल बिठाया और उन्होंने पार्टी को अपने पारंपरिक मतदाताओं तक पहुंचने में मदद की जिनमें से अधिकांश यादव जाति से हैं और राज्य के पूर्वी और मध्य भागों में फैले हुए हैं। अपने पूर्व सहयोगी बहुजन समाज पार्टी से अलग होने से सपा को कोई नुकसान नहीं हुआ।

इटावा जिले के सैफई में यादवों के पैतृक गांव में जन्मे अखिलेश यादव ने राजस्थान के धौलपुर मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई की। उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से पर्यावरण इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद सिडनी से मास्टर किया। साल 2000 में वह कन्नौज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से निचले सदन के लिए चुने गए। 2004 और 2009 में भी उन्होंने जीत हासिल की।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने कंप्यूटर को लेकर पार्टी के पुराने रुख से हटकर छात्रों के लिए “सबसे बड़ी लैपटॉप वितरण” योजना शुरू की। उनकी सरकार ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, मेट्रो परियोजना, अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम और लखनऊ में कैंसर अस्पताल जैसी विकास परियोजनाओं को शुरू करने का श्रेय भी लिया।

अखिलेश यादव और डिंपल यादव के तीन बच्चे हैं।

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