नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। देश की जनता ने एक बार फिर एनडीए को सरकार बनाने का जनादेश दिया है। हालांकि, चुनाव नतीजे बीजेपी के अनुमानों के बिल्कुल उलट आए हैं। स्थिति यह है कि पिछली बार अपने दम पर 300 से अधिक सीट जीतने वाली बीजेपी बहुमत के जादुई आकंड़े से दूर है। रात 8 बजे तक के नतीजों और रुझानों के अनुसार बीजेपी को अपने बूते 240 सीट मिलती दिख रही है।
हालांकि, सहयोगी दलों के साथ एनडीए बहुमत के पार पहुंच गया है। ऐसे में 10 साल बाद एक बार फिर से केंद्र में क्षेत्रीय दलों पर निर्भर सरकार बनेगी। ऐसे में पीएम मोदी पहली बार खिचड़ी सरकार चलाने पर मजबूर होंगे। नजर डालते हैं कि क्षेत्रीय दलों पर निर्भरता का नई मोदी सरकार पर क्या असर हो सकता है।
चुनाव परिणाम में इस बार क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। एनडीए के साथ ही इंडिया गठबंधन में क्षेत्रीय दलों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। एनडीए में टीडीपी और जदयू सबसे अहम सहयोगी बनकर उभरे हैं। टीडीपी ने आंध्रप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भी शानदार जीत दर्ज की है।
वहीं, जेडीयू ने बिहार में बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी उससे अधिक सीटों पर जीत हासिल की है। टीडीपी के खाते में 16 सीट आती दिख रही हैं। वहीं, जेडीयू के 12 सीट पर जीत दर्ज करती नजर आ रही है। ऐसे में केंद्र में बनने वाली नई सरकार में इन दोनों दलों की भूमिका काफी अहम होगी।
बीजेपी के अपने दम पर बहुमत हासिल करने का असर इस बार मंत्रिमंडल के बंटवारे पर साफ दिखेगा। इस बार क्षेत्रीय दल बीजेपी नीत एनडीए सरकार में अधिक मोलभाव करने की स्थिति में होंगे। ऐसे में अहम मंत्रालयों में अगर जेडीयू और टीडीपी कोटे से मंत्री बने तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पिछली सरकार में बीजेपी अपने दम पर 300 से अधिक सीट जीती थी। ऐसे में एनडीए में शामिल सहयोगी दल पूरी तरह से बीजेपी की मर्जी पर निर्भर थे। बीजेपी नेतृत्व अपने मर्जी के आधार पर छोटे दलों को मंत्री पद मिला था। पिछले कार्यकाल में यह आरोप भी लगता रहा था कि बीजेपी अपने सहयोगी दलों का सम्मान नहीं करती।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकला में अहम मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले सहयोगी दलों से विचार विमर्श अधिक जरूरी हो जाएगा। बीजेपी ने तीसरी बार सत्ता में आने पर एक देश, एक चुनाव और समान नागरिक कानून जैसे अहम मुद्दों को लागू करने की बात कही थी। ऐसे में इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर फैसला करने से पहले बीजेपी की मजबूरी होगी कि वह सहयोगी दलों के साथ सहमति बनाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी को सहयोगी दलों के अलग होने का खतरा भी बना रहेगा।
एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल में नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायूडू अहम किरदार बनकर उभरेंगे। हालांकि, बीजेपी के साथ एक प्लस प्वाइंट यह भी है कि नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू पहले भी बीजेपी के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। हालांकि, इस बार दोनों नेता अपनी मर्जी से हां और ना कहने की मजबूत स्थिति में होंगे। ऐसे में स्थिर सरकार के लिए बीजेपी इन नेताओं की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेगी। चंद्रबाबू नायडू तो एनडीए के संयोजक भी रह चुके हैं। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश में भी चंद्रबाबू नायडू सत्ता में आ गए हैं। ऐसे में वे केंद्र से आंध्र प्रदेश के लिए अतिरिक्त केंद्रीय सहायता से लेकर प्रोजेक्ट लाने में सफल हो सकते हैं।
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