UP में उपचुनाव क्यों बन गई है नाक की लड़ाई?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा में होने वाला उपचुनाव अब नाक की लड़ाई बनता दिख रहा है।

भले ही इससे सरकार की सेहत पर कोई असर न हो लेकिन योगी से लेकर अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर जरूर लगी है। बीजेपी उपचुनाव के जरिए 2024 के लोकसभा में मिली हार का बदला लेना चाहती है जबकि अखिलेश यादव जीत की लय को कायम रखना चाहेंगे।

सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी और बसपा प्रमुख मायावती के लिए ये उपचुनाव यूपी उपचुनाव की लड़ाई 2027 का सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है।

यूपी उपचुनाव में करहल, मीरापुर, गाजियाबाद, खैर, सीसामऊ, कुंदरकी, कटेहरी, मझवां और फूलपुर विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होने जा रहा है। उपचुनाव को लेकर सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। इस वजह से दोनों तरफ से जमकर बयानबाजी देखने को मिल रही है।

सूबे की जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उसमें चार सीट पर सपा के विधायक, तो तीन सीट पर बीजेपी विधायक थे। इसके अलावा एक सीट पर आरएलडी और एक सीट पर निषाद पार्टी के विधायक थे।

ऐसे में तीन दल अपनी सीट जीतने के लिए पूरा जोर लगायेंगे। सपा और बसपा ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे है जबकि बीजेपी 8 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। उसकी सहयोगी आरएलडी ने एक सीट पर चुनाव दंगल में उतरी है।

यूपी के सीएम योगी के लिए उपचुनाव काफी अहम है क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान उठाना पड़ा है।

सपा और कांग्रेस ने मिलकर बीजेपी को यहां पर बड़ी जीत दर्ज करने से रोक दिया था। ऐसे में सीएम योगी सभी सीट पर जीत दर्ज करने के लिए पूरा जोर लगायेंगे। जीत और हार का पूरा श्रेय भी सीएम योगी पर दिया जायगा। योगी चाहेंगे साल 2027 से पहले बीजेपी जीत के रथ पर फिर से सवार हो।

दूसरी तरफ अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में मिली शानदार जीत का क्रम उपचुनाव में कायम रखना बड़ी चुनौती होगी।

लोकसभा चुनाव में यूपी की 37 सीटें जीतकर सपा सूबे में नंबर वन की पार्टी और बीजेपी को तगड़ा झटका दिया।

सपा ने सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं. सपा ने चार मुस्लिम, तीन ओबीसी और दो दलित उम्मीदवार उतारे हैं और पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फार्मूले पर अपनी रणनीति को एक बार फिर अजमा रही है।

सपा इसी के सहारे लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। ऐसे में 2027 के लिए अभी से माहौल तैयार करना ही उसका लक्ष्य होगा जबकि बसपा के लिए भी बड़ी चुनौती होगी कि वो उपचुनाव में वो बेहतर प्रदर्शन करें ताकि ये पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो सके।

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