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कांटे की चक्कर; कब तक आएंगे अमेरिका प्रेसिडेंट इलेक्शन के नतीजे

आज 6 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के वोटों की गिनती जारी है। दोनों उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प 230 इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स हासिल कर चुके हैं। अमेरिका में बहुमत के लिए 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल करना जरूरी है। रिपब्लिकन पार्टी अब तक 28 राज्यों में आगे हो चुकी है। वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस अब तक 205 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल कर चुकी हैं। उनके पास अब 19 राज्यों में बढ़त है।

पुराने दिनों में एक ही रात में नया राष्ट्रपति मिल जाता था, लेकिन 2024 में हालात अलग दिखाई दे रहे हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस साल नतीजे आने से पहले हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।

सवाल 1: क्या आज ही फाइनल नतीजे आ जाएंगे?

जवाब: अमेरिका चुनाव में काउंटिंग कई स्टेप्स में होती है। हर राज्य का अपना तरीका है। कुछ राज्यों में महज चंद घंटों में गिनती पूरी हो जाती है। कहीं पर नतीजे आने में कई दिन लग जाते हैं। आमतौर पर अमेरिका में विजेता का ऐलान मतगणना की रात को किया जाता है, लेकिन ऐसा होने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प या कमला हैरिस को बड़े राज्यों में एक-दूसरे से बहुत आगे निकलना होगा। फिलहाल कांटे की टक्कर है, हालांकि काउंटिंग जारी है।

अमेरिका में जनता इलेक्टर्स चुनती है और इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। सभी राज्यों से चुने गए इलेक्टर्स की संख्या अलग होती है। आमतौर पर राज्य में जिस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, सभी इलेक्टर्स उसी प्रत्याशी के हो जाते हैं।

उदाहरण से समझिए- अगर कमला हैरिस 50,000 वोटों से आगे चल रही हैं और गिनती के लिए सिर्फ 20,000 बैलट्स बचे हैं, तो कमला को विजेता घोषित कर दिया जाएगा। फिर भले ही डोनाल्ड ट्रम्प को बचे हुए 20,000 बैलट्स मिल जाएं।

इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का फैसला 7 राज्यों पर निर्भर है। एरिजोना, नेवादा, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, पेन्सिल्वेनिया, उत्तरी कैरोलीना और जॉर्जिया 270 के आंकड़ों तक पहुंचने में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य हैं।

सवाल 2: बैलट्स की गिनती में अभी और कितना समय लगेगा, मेल-इन बैलट्स अलग क्यों?

जवाब: अमेरिका के 50 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में मतदानहुआ। यहां मतदान करने के चार तरीके हैं। इन्ही में से एक मेल-इन बैलट्स भी है।

मेल-इन बैलट्स की गिनती सबसे मुश्किल मेल-इन बैलट्स की गिनती चुनाव अधिकारियों के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल का काम होता है। इन बैलट्स की कड़ी सुरक्षा जांच करनी पड़ती है। मेल से आए एक-एक वोट को खोलना पड़ता है। मतदाता के सिग्नेचर को सरकारी डेटा में मौजूद सिग्नेचर से मिलाना पड़ता है। यह भी जांचना होता है कि मेल-इन बैलट्स ठीक से भरे गए हैं या नहीं। बैलट्स का करेक्शन करने के बाद स्कैन करना पड़ता है। इस प्रोसेस में व्यक्तिगत रूप से किए गए मतदान से ज्यादा समय लगता है।

मेल-इन बैलट्स को मतदान के दिन से पहले गिनना शुरू कर दिया जाता है। लेकिन पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन जैसे कुछ राज्यों में चुनाव के दिन से पहले मेल-इन बैलट्स को खोलने की इजाजत नहीं मिलती। इन बैलट्स को मतदान के दिन तक ही स्वीकार किया जाता है। नेवादा जैसे दूसरे राज्यों में मतदान के कुछ दिन बाद आने वाले मेल-इन बैलट्स की भी गिनती हो जाती है। इस बार इन बैलट्स की संख्या ज्यादा है, जिस वजह से चुनावी नतीजों में देरी हो सकती है।

सवाल 3: दोनों प्रत्याशियों के बराबर वोट्स होने पर क्या होगा और नतीजा कैसे निकलेगा? जवाब: डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर है। इस वजह से इस चुनाव में यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि जीत किसकी होगी। कुछ राज्यों में नतीजे बेहद करीबी हो सकते हैं। जब दोनों प्रत्याशियों के बीच जीत-हार का अंतर कम होता है, तो कई राज्य रिकैल्कुलेशन (पुनर्गणना) करते हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि बैलट्स की गिनती में कोई गलती तो नहीं हुई।

चुनाव अधिकारी अंतिम मतपत्रों की भी जांच करते हैं। इन मतपत्रों को ‘हलफनामा मतपत्र’ भी कहा जाता है। अंतिम मतपत्रों को संघीय हेल्प अमेरिका वोट एक्ट 2002 के तहत लागू किया गया था। अगर किसी मतदाता की एलिजिबिलिटी को लेकर गड़बड़ी होती है, तो अंतिम मतपत्र से इसकी जांच की जाती है। इससे यह पता चल जाता है कि मतदाता वोट डालने के लिए योग्य है या नहीं। पुनर्गणना से परिणाम नहीं बदलते हैं, लेकिन उन्हें सुलझाने में एक या दो हफ्ते का समय लग सकता है। भारत में चुनावी प्रक्रिया इसके उलट है। यहां इस तरह की गड़बड़ी होने पर वोट डालने की इजाजत नहीं मिलती।

उदाहरण से समझिए- किसी मतदाता ने वोट दे दिया, लेकिन मतगणना के दिन उसकी पहचान नहीं हो पा रही। वोटर लिस्ट में नाम न होना, पहचान पत्र पर फोटो नहीं होना, मतदाता रजिस्ट्रेशन में गलत या पुरानी जानकारी होने पर उसके वोट को होल्ड कर दिया जाता है। ऐसे वोट्स को अंतिम मतपत्र कहा जाता है। मतगणना के दिन इन वोट्स की अलग से जांच होती है। अंतिम मतपत्रों की गिनती आमतौर पर चुनाव के दिन के बाद तक नहीं की जा सकती।

2004 का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हेल्प अमेरिका वोट एक्ट के प्रावधानों के तहत आयोजित पहला राष्ट्रपति चुनाव था। पूरे देश में कम से कम 1.9 मिलियन अंतिम मतपत्र डाले गए। 2020 में भी जॉर्जिया और विस्कॉन्सिन में कुछ काउंटियों ने पुनर्गणना की थी।

सवाल 4: चुनावी परिणामों का विरोध होने पर क्या नतीजा निकलेगा? जवाब: 2020 के चुनाव के बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने परिणामों का विरोध किया था। ट्रम्प ने दावा किया कि ‘चुनाव चुराया गया था।’ 6 जनवरी 2021 को ट्रम्प के समर्थकों ने US कैपिटल हिल पर हमला कर दिया था। ट्रम्प की कोशिश थी कि वे जो बाइडेन को शपथ लेने से रोक पाएं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

6 जनवरी 2021 को US कैपिटल हिल पर हमले के दौरान ट्रम्प समर्थक।

ट्रम्प ने 2024 के चुनाव में भी विरोध का ऐलान किया है। एक रैली में उन्होंने कहा कि अगर फैसला सही नहीं आया तो वे अदालतों का दरवाजा खटखटाएंगे। रैली में ट्रम्प ने कमला हैरिस और डेमोक्रेटिक पार्टी पर भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया। इसलिए 2024 के चुनावों में मुकदमों और अदालती लड़ाइयों से चुनौतियां दी जा सकती हैं। इस साल की चुनाव प्रक्रिया को लेकर अमेरिका में पहले से ही 90 मुकदमे दायर किए जा चुके हैं।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार अदालती लड़ाइयां लंबी हो सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो आधिकारिक तौर पर विजेता का ऐलान कर दिया जाएगा, लेकिन चुने गए प्रत्याशी को राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार करने में कुछ समय लग सकता है।

सवाल 5: नए राष्ट्रपति का कार्यकाल कब से शुरू होगा? जवाब: 20 जनवरी की दोपहर नए राष्ट्रपति के कार्यकाल की शुरुआत होती है। उद्धाटन समारोह राजधानी वॉशिंगटन DC की US कैपिटल बिल्डिंग में होता है। 20 जनवरी को रविवार हो तो कार्यकाल 21 जनवरी से शुरू होगा।

अमेरिका में हमेशा से यह परंपरा नहीं थी। 1789 में पहले राष्ट्रपति के कार्यकाल की शुरुआत 30 अप्रैल से हुई थी। दूसरे राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 मार्च 1793 से शुरू हुआ और फिर यही प्रथा बन गई।

अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने 30 अप्रैल 1789 को पदभार संभाला था।

नवंबर में चुनाव होने के बाद मार्च तक काफी समय बर्बाद होता था। 1933 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट की शपथ से पहले 20वें संविधान संशोधन के जरिए 20 जनवरी को नए कार्यकाल के शुरुआत की तारीख तय की गई।

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