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कामगारों का दर्द : संजोए थे काफी सपने, लेकिन लॉकडाउन हुआ सभी अपने हो गए बेगाने

नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोना के क्रूरतम समय का निर्मम प्रहार झेलते प्रवासी मजदूरों की दशा तमाम संवेदनाओं को झकझोरने के लिये काफी है। अपना घर बार छोड़कर यह श्रमिक जिस शहर को बसाने गए थे, उस शहर को महानगर बना दिया। वहां किसी तरह जिंदगी गुजार रहे थे लेकिन अब उस शहर के नाम से भी इन्हें डर लगता है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई जैसे महानगरों में रहकर इन श्रमिकों ने काफी सपने संजोए थे, उन्हें लग रहा था कि यह शहर अपना है लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो सभी अपने बेगाने हो गए।
जिस मालिक के परिवार को खून-पसीना एक कर खुश रखने में लगे हुए थे, उनकी आर्थिक समृद्धि के स्रोत बने हुए थे, उन्होंने भी मुंह फेर लिया। कोरोना संकट से बचने के लिए भारत सरकार ने जब देशव्यापी लॉकडाउन कर दिया तो इन पर आफत आ गई। जिसके यहां काम कर रहे थे, उन्होंने अपने गेट पर आने से मना कर दिया, भगा दिया। इसी तरह खाना का जुगाड़ लगा रहे थे तो मकान मालिक ने रूम खाली करने को कह दिया।
लाॅकडाउन के चलते फैक्टरी बंद हो गई तो भूख से बचने के लिए कुशीनगर का संजू साइकिल से ही अपने घर के लिए निकल पड़ा। उसे अपने घावों व दर्द की फिक्र नहीं है। बस केवल अपने घर-गांव पहुंचने की चिंता सता रही है। उसे उम्मीद है कि जल्दी ही वह अपने परिजनों से मिल सकेगा। संजू जैसे ही सैकड़ों-हजारों कामगार अपने घर पहुंचने की चिंता में पैदल ही चले जा रहे हैं। कोरोना आपदा के चलते लाखों-करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। दिहाड़ी कामगारों से लेकर वेतनभोगी श्रमिकों के सामने गुजारे का संकट पैदा हो गया।
ऐसे में इन सभी को अपना गांव-घर याद आ गया और वहीं पहुंचने की चाह में निकल पड़े। हजारों लोग पैदल ही चलें तो कुछ साइकिल के जरिए अपने-अपने घरों को कूच कर गए। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों से लाखों कामगार मेरठ होकर अपने गांवों के लिए गुजर चुके हैं तो कुछ अब भी जाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। मेरठ के दिल्ली-रूड़की रोड, गढ़ रोड से हजारों लोग अपने गंतव्य की ओर जा रहे हैं।
कोई बिहार का रहने वाला है तो कोई मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड का। स्पेशल ट्रेन और बसें चलने से कामगारों को थोड़ी राहत जरूर मिली है लेकिन कामगारों की भीड़ को देखते हुए यह अब भी नाकाफी है। मासूम बच्चों के साथ परिवार पैदल ही जा रहे हैं। कुशीनगर का संजू अपने साथियों राजेश, विमलेश आदि के साथ साइकिल से ही जा रहा है। रास्ते में नलकूप मिलने पर उन्होंने स्नान किया और थोड़े आराम के बाद आगे के सफर पर रवाना हो गया।
मेरठ में वापस लौटे कामगार बने चुनौती
मेरठ से होकर केवल बाहरी जिलों के कामगार ही वापस नहीं जा रहे। बल्कि दूसरे राज्यों में काम करने वाले कामगार भी मेरठ में अपने घर वापस लौटे हैं। मेरठ शहर में नगर निगम बाहर से आए कामगारों की सूची तैयार करने में जुटा है। नगर आयुक्त अरविंद चौरसिया का कहना है कि इन सभी कामगारों को एकांतवास में रखना एक बड़ी चुनौती है। इन कामगारों पर निगाह रखने के लिए क्षेत्रीय पार्षद, आशा कार्यकर्ता, कर निरीक्षक आदि की सहायता ली जा रही है।
बंगाली कामगार भी वापस जाने की जुगत में लगे
मेरठ में सर्राफा बाजार में हजारों बंगाली कारीगर काम करते हैं। वह अपने परिवारों के साथ ही मेरठ में रहते हैं। अब सर्राफा का काम बंद होने से वह बेरोजगार हो गए। गुजारे के लिए पैसे का संकट पैदा होने से उन्हें भी अपना घर नजर आ रहा है। वह किसी भी तरह से पश्चिम बंगाल जाने की जुगत में है। इसके लिए वह चंदा भी इकट्ठा करके निजी बसों का किराना वहन करके जा रहे हैं।
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