RSS के सौवे वर्ष में उल्टी गंगा : संघ से उलेमा सहमत, साधु-संत असहमत

नवेद शिकोह

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष ऐसा रंग दिखा रहा है जो रंग पिछले सौ वर्षों में कभी नजर नहीं आया।

पहली बार लग रहा है कि बीजेपी आंख बंद करके आर एस एस की आज्ञा मानने को शायद तैयार ना हो।

खासकर यूपी में तो ऐसा ही लग रहा है, जहां मंदिर -मस्जिद से जुड़े दावों के मामलों के नित्य नए आयाम तलाशे जा रहे हैं, जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान में नये मंदिर-मस्जिद विवाद पैदा करने पर कड़ी आपत्ति जताई और नसीहत दी कि हिन्दू नेता बनने के स्वार्थ में ऐसा नहीं करें।

संघ संचालक के नसीहत भरे इस बयान के बाद जो मुस्लिम समाज संघ का विरोधी करता रहा है वो समर्थन में खड़ा है और कट्टर हिन्दू समाज जो संघ का समर्थक है वो सनातन धर्म के रक्षक स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के ताज़ा बयान के विरोध में मुखर दिख रहा है। संघ के विचार से पहली बार मुस्लिम उलमा सहमत नजर आ रहे और साधू-संत विरोध में उतर आए हैं।

इसी तरह भाजपा जो इस संगठन की राजनीति ईकाई कही जाती है वो संघ प्रमुख की नाफरमानी कर रही है। यानी भागवत का फरमान पहली बार मानने को राज़ी नहीं होती नजर आ रही है। नहीं लग रहा कि संघ का कोई भी अनुवांशिक अंग उसके साथ खड़ा दिखे।

दिलचस्प बात है कि संघ विरोधी संघ के संग खड़े हैं। कांग्रेस, सपा और अन्य भाजपा विरोधी तमाम दल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोहन भागवत के बयान से सहमत दिख रहे हैं।

बहती हुई ये उलटी गंगा संघ और भाजपा दोनों के लिए ठीक नहीं।अनुशासन, कठिन परिश्रम, जन सम्पर्क,सादगी और लम्बा जमीनी संघर्ष कर राष्ट्रवाद, सनातन की रक्षा और हिन्दुत्व के फलसफे को आगे बढ़ाने का संघर्ष करने वाले संघ ने अपने नब्बे वर्षों के संघर्ष के बाद भाजपा को इस काबिल बनाया कि वो देश में अपना झंडा मजबूती से गाढ़ सकी। राम मंदिर आंदोलन, एल के आडवाणी की रथयात्रा, बाबरी विध्वंस और रामभक्तों पर चली गोलियों के बाद भी भाजपा इतनी मजबूत नहीं हो सकी थी जितनी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस दौर में पिछले दस वर्षों में पार्टी ने इतनी मजबूती पकड़ी है। तीसरे बार नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना और साढ़े तीन दशक का रिकार्ड तोड़कर दूसरी बार योगी आदित्यनाथ का यूपी का मुख्यमंत्री बनना भाजपा की तरक्की की दो बड़ी दलीलें हैं। ये तरक्की संघ के नब्बे वर्षों के जमीनी संघर्ष का इनाम है।

नब्बे वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद अपने लक्ष्य को हासिल करने वाला संघ अब अपने स्थापना के सौ वर्ष पूरे करने जा रहा है। शताब्दी वर्ष की शुभ बेला पर पहली बार मंदिर-मस्जिद मामले में इन दोनों के बीच विचारों का मतभेद दिख रहा है। खासकर भाजपा समर्थक साधू-संतों ने तो खुल कर मोहन भागवत की नसीहत ना मानने का एलान कर दिया है।

तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संघ प्रमुख के मस्जिद मंदिर विवादों पर चिंता व्यक्त करने वाले बयान पर असहमति जताई और कड़ी टिप्पणी करते हुए करते हुए कहा कि मोहन भागवत हमारे अनुशासक नहीं हैं, बल्कि हम उनके अनुशासक हैं। उत्तराखंड के ज्योतिमर्ठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी भागवत की नसीहत का विरोध किया है।

उन्होंने कहा कि जब उन्हें सत्ता चाहिए थी तब वे मंदिरों के बारे में बोलते थे और अब जब उनके पास सत्ता है तो वो मंदिरों की तलाश ना करने की सलाह दे रहे हैं।

इधर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खुदाई का विरोध संबंधित बयान पर तंज़ करते हुए कहा कि अखिलेश यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से इतना ही सहमत हैं तो वो संघ की शाखा क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते !

इधर आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन ने मंदिर मस्जिद विवाद पर चिंता व्यक्त करने वाले आर एस एस के बयान का स्वागत और समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि नसीहत भरा इस बयान पर भाजपा और नरेंद्र मोदी अमल करें तो देश की एकता और अखंडता को हो रहे नुकसान को रोका जा सकेगा। साथ ही दुनिया में भारत की छवि बेहतर होगी। इसी तरह लखनऊ में मौलाना यासूब अब्बास, कल्बे सिब्तैन नूरी इत्यादि उलमा व मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने संघ के मशवरे का सिर आंखों पर स्वागत किया है और इस बयान की खुल कर तारीफ की है।

स्मरण रहे कि लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ माह पूर्व संघ और भाजपा में खटपट की चर्चाएं तब से होने लगी थी जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने एक बयान ने कहा था कि भाजपा को पहले संघ की जरूरत थी आज पार्टी सक्षम है।

इसी तरह आर एस एस से बंधित पत्रिका आब्जर्वर ने भी एक वर्ष के दरमियान भाजपा की वर्तमान कार्यप्रणाली और नीतियों पर सवाल खड़े किए।

भाजपा और संघ की दूरियां और मतभेद राष्ट्रीय स्वयंसेवक की स्वर्णजयंती के उत्सव पर खीर में कंकर सी खटकने वाली होगी। ऐसी तल्खियां बढ़ीं तो ये दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है।

हांलांकि भाजपाई और संघ परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि भाजपा शरीर है तो उसकी आत्मा संघ है। दोनों के बीच कोई मतभेद नहीं, यदि किसी बिन्दु पर कोई असहमति हो भी तो उसे सुलझा लिया जाएगा।

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