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मंदिर-मस्जिद विवादों पर संघ प्रमुख का सकारात्मक दृष्टिकोण

कृष्णमोहन झा 

विगत कुछ माहों के दौरान देश के कुछ हिस्सों में अचानक जो मंदिर मस्जिद विवाद उभर कर सामने आए हैं उनसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत बेहद खिन्न दिखाई दे रहे हैं।

संघ प्रमुख की दृष्टि में इस तरह के विवादों को किसी भी सूरत में उचित नहीं माना जा सकता इसीलिए विगत दिनों पुणे में आयोजित सहजीवन व्याख्यान माला के अंतर्गत ‘भारत विश्व गुरु’ विषय पर भाषण के दौरान संघ प्रमुख ने उन लोगों को आड़े हाथों लेने से भी परहेज़ नहीं किया जो इस तरह के विवादों को हवा देने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

संघ प्रमुख ने कड़े लहजे में कहा कि हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है । संघ प्रमुख ने बिना किसी का नाम लिया कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि इस तरह के विवादों को उठा कर वे हिंदुओं के नेता बन जाएंगे। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

भागवत ने कहा कि हमें दुनिया को यह दिखाना है कि हम एक होकर रह सकते हैं। यह नहीं चलेगा कि हमारे यहां हमारी ही बातें सही और बाकी सब ग़लत। हमें दुनिया को यह दिखाना है कि अलग अलग मुद्दे रहने के बावजूद हम एक होकर रहेंगे। संघ प्रमुख ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ़ नहीं होना चाहिए। भागवत के इस बयान से यही संदेश मिलता है कि हमें दूसरे धर्मों और उनके देवी देवताओं ( आराध्य ) का सम्मान करना चाहिए। भागवत ने यह बात पहली बार नहीं कही है ।

वे इसके पहले भी अनेक अवसरों पर अपने इस मंतव्य को बिना किसी लाग लपेट के दोहरा चुके हैं। भागवत का ताजा बयान इसलिए सुर्ख़ियों में बना हुआ है क्योंकि हाल में ही संभल और अजमेर शरीफ में हिंदू मंदिर होने के दावों ने विवाद की स्थिति निर्मित कर दी है। भागवत का मानना है कि अयोध्या में अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की सफलता से उत्साहित होकर इस तरह के विवाद शुरू करना उचित नहीं है।

अयोध्या में राममंदिर आंदोलन करोड़ों हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा हुआ मामला था।ा यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संघ प्रमुख ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण की शुरुआत के पूर्व ही यह स्पष्ट कर दिया था कि संघ इसलिए बाद किसी मंदिर आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेगा।

दो वर्ष पूर्व जब वाराणसी में स्थित ज्ञान व्यापी मस्जिद में शिवलिंग होने के दावे किए जा रहे थे तब भी संघ प्रमुख ने दो टूक शब्दों में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की जरूरत नहीं है।

संघ प्रमुख ने पुणे में सहजीवन व्याख्यान माला में जो बयान दिया है उसने दो वर्ष पूर्व ज्ञान व्यापी मस्जिद विवाद पर दिए गए उनके बयान की यादें ताजा कर दी हैं। इसमें दो राय नहीं हो सकतीं कि संघ प्रमुख के दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। मंदिर मस्जिद विवादों पर वे अपने रुख पर कायम हैं।

देश में चल रहे मंदिर मस्जिद विवादों को लेकर संघ प्रमुख के नये बयान पर ढेरों प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं और कई विपक्षी नेताओं ने भी भागवत के इस बयान का स्वागत किया है।

दरअसल भागवत के इस बयान में ऐसा कुछ नहीं है जिस पर अनावश्यक टीका टिप्पणी की जा सके। वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर , समाजवादी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी और आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव यासूब अब्बास ने भागवत के बयान का समर्थन किया है।

शशि थरूर कहते हैं कि अब इन विवादों को परे रखकर हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए । भागवत के ताजे बयान पर जो सकारात्मक प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं वे इस बयान की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।

अब देखना यह है कि भागवत ने जिन अतिउत्साही लोगों को यह सलाह दी है वे इसे किस रूप में लेते हैं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र का वातावरण बनाए रखने के लिए संघ प्रमुख की सलाह न केवल विचारणीय है बल्कि उस पर अमल भी किए जाने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वदेश न्यूज चैनल के सलाहकार संपादक और राजनैतिक विश्लेषक है)

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