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कांग्रेस को क्यों याद दिलाया जा रहा नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार?

सरकार ने कहा कि वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह आवंटित करने के कांग्रेस के अनुरोध पर सहमत हो गई है। शनिवार को उनका राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया जा रहा है। सरकार की यह घोषणा कांग्रेस द्वारा यह आरोप लगाए जाने के कुछ घंटों बाद आई कि सिंह के लिए दिल्ली में विश्राम स्थल के उसके अनुरोध को सरकार ने स्वीकार नहीं किया है। गृह मंत्रालय ने कहा सरकार को कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष से पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह आवंटित करने का अनुरोध प्राप्त हुआ। कैबिनेट बैठक के तुरंत बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार को बताया कि सरकार स्मारक के लिए जगह आवंटित करेगी।

एक ट्रस्ट बनाना होगा और उसे जगह आवंटित करनी होगी। कांग्रेस चाहती थी कि सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां उनके सम्मान में एक स्मारक बनाया जा सके। संयोग से, यह सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी जिसने अलग स्मारकों की मांग पर रोक लगाई थी।  2013 में यूपीए कैबिनेट ने जगह की कमी को देखते हुए राजघाट पर एक सामान्य स्मारक स्थल राष्ट्रीय स्मृति स्थल स्थापित करने का निर्णय लिया। कांग्रेस के आरोपों के बाद लोग नरसिम्हा राव की याद दिला रहे हैं। बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को याद करना चाहिए कि किस तरह से उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं करने दिया गया था। फिर 10 साल की यूपीए सरकार के दौरान कोई स्मारक भी नहीं बनवाया गया। 

कांग्रेस मुख्यालय के बाहर रखा रहा शव

दिसंबर 2004 में राव की मृत्यु हो गई। कांग्रेस तब तक केंद्र में सत्ता में वापस आ गई थी। सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। राव की मृत्यु के एक दिन बाद, शव को नई दिल्ली के अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय के द्वार पर लाया गया। लेकिन राव के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए अंदर नहीं जाने दिया गया। उनके पार्थिव शरीर को एआईसीसी के गेट के बाहर फुटपाथ पर रखा गया था। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा Courage & Commitment में की थी, जो 2016 में प्रकाशित हुई।

तब कांग्रेस का बचाव करते हुए यह तर्क दिया गया था कि राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था। परिजनों की इच्छा का हवाला देकर शव को हैदराबाद ले जाया गया। विडम्बना तो यह थी कि संजय गांधी जो कभी भी किसी भी राजपद पर नहीं रहे, की समाधि राजघाट परिसर में बनी। केवल पांच महीने रहे प्रधान मंत्री, जो लोकसभा में बैठे ही नहीं, (चरण सिंह) के लिये किसान घाट बन गया। सात माह कांग्रेस के सहारे प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह का भी एकता स्थल पर अंतिम संस्कार किया गया। मगर सम्पूर्ण पांच साल की अवधि तक प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव का शव सोनिया गांधी ने सीधे हैदराबाद रवाना करा दिया था। दिल्ली में उनके नाम कोई स्मारक नहीं, कोई गली नहीं।

कांग्रेस और नरसिम्हा राव के रिश्तों में क्यों आई खटास

प्रधानमंत्री बनने के बाद वे सोनिया गांधी से नियमित अंतराल पर मिलते रहते थे लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी को कभी-भी सत्ता केंद्र के रूप में उभरने नहीं दिया। नटवर सिंह ने एक बार इंटरव्यू में कहा था कि नरसिम्हा राव को लगा कि बतौर प्रधानमंत्री उन्हें सोनिया गांधी को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है और उन्होंने ऐसा ही किया। यह बात सोनिया गांधी को पसंद नहीं आई। नरसिम्हा राव के एक बयान ‘जैसे इंजन ट्रेन की बोगियों को खींचता है वैसे ही कांग्रेस के लिए यह जरूरी क्यों है कि वह गांधी-नेहरू परिवार के पीछे-पीछे ही चले? ने इस दूरी को और बढ़ा दिया। कांग्रेस के बाहर और भीतर एक बड़ा तबका है, जो अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को जिम्मेदार मानता है। राहुल गांधी ने भी एक बार कहा था कि उस समय अगर मेरे परिवार से कोई प्रधानमंत्री होता तो मस्जिद नहीं गिरती। नरसिम्हा राव ने लोकसभा में कहा भी था कि रामभक्तों (भाजपा) से तो सामना किया जा सकता है, पर भगवान राम से नहीं।

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