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चुनाव के CCTV फुटेज को लेकर रमेश की याचिका पर लिया एक्शन

नई दिल्ली। चुनाव आयोग की ओर से चुनाव के सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्ट फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने के सामने जयराम की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस करते हुए कहा कि चुनाव संचालन नियम 1961 में बड़ी चालाकी से संशोधन करके सीसीटीवी फुटेज को यह कहते हुए सार्वजनिक पहुंच से प्रतिबंधित कर दिया गया है कि इससे वोटर की पहचान खुल सकती है।

सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?

नोटिस जारी होने के बाद सिंघवी ने पीठ से कहा कि केंद्र और चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह अगली तारीख तक जवाब दाखिल कर दें अन्यथा अगली तारीख पर वे लोग कहेंगे कि जवाब दाखिल किया जाएगा। हालांकि सीजेआई ने कहा कि वे जवाब दाखिल करेंगे।

केंद्र ने लगा रखे हैं सीसीटीवी फुटेज के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध

केंद्र सरकार ने गत दिसंबर में चुनाव आयोग की सिफारिश पर चुनाव संचालन नियम 1961 में संशोधन कर सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्ट फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।

कानून मंत्रालय ने किया है यह नियम संशोधन

निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे गए कागजात या दस्तावेज को प्रतिबंधित करने के लिए चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93 (2)(ए) में संशोधन किया है।

क्या कहता है नियम?

नियम 93 कहता है कि चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे लेकिन अब इसमें बदलाव कर दिया गया है। हालांकि नियमों में संशोधन के बाद भी उम्मीदवारों के लिए ये दस्तावेज उपलब्ध होंगे।

जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में क्या लिखा था?

जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर संशोधनों को चुनौती देने की जानकारी देते हुए पिछले दिनों ‘एक्स’ पर पोस्ट में लिखा था कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, उसे सार्वजनिक परामर्श के बगैर एकतरफा इतने महत्वपूर्ण कानून में इस तरह संशोधन की इजाजत नहीं दी जा सकती।

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