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महाकुंभ मेला: भगदड़, घोटाले और सच्चाई छिपाने के जतन

कुंभ वह आयोजन है जहां दीन और दुखी बड़ी उम्मीदों के साथ जाते हैं। वे उन पापों को धोने जाते हैं जिनके बारे में अब उन्हें कुछ याद भी नहीं। वे उस भविष्य की तलाश में वहां पहुंचते हैं जो शायद उन्हें कभी न मिले। इस तरह के ढेर सारे अनमोल वचन आपको इन दिनों सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे। उस समय जब लोग पूरी शिद्दत से इस महाआयोजन की खूबियों और खामियों की चर्चा कर रहे हैं, 26 फरवरी को इस आयोजन का समापन होना है। अब यह सोचना महत्वपूर्ण होगा कि महाकुंभ 2025 को किस तरह याद किया जाएगा?

क्या इसे बहुत कामयाब और बड़ी संख्या में धर्मावलंबियों को जुटाने के लिए याद किया जाएगा या फिर भयभीत करने वाले निष्ठुर मौके की तरह? जवाब इस पर निर्भर करेगा कि आप कहां खड़े हैं। इन तर्कों से अलग यह अभी तक का सबसे महंगा कुंभ आयोजन था। केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों की बात न भी करें, तो सिर्फ यूपी सरकार ने इस पर अनुमानतः 7,500 करोड़ रुपये किए हैं। इसकी तुलना में यूपी सरकार ने 2013 के कुंभ में सिर्फ 1,100 करोड़ रुपये ही खर्च किए थे।  

योगी आदित्यनाथ इसे निश्चित तौर पर ‘अब तक के सबसे भव्य, सबसे संतोषप्रद धार्मिक, राजनीतिक ओर व्यावसायिक समागम’ के तौर पर याद करेंगे। बेशक, ‘कुछ छोटी-मोटी’ अप्रिय घटनाएं हुईं जो इस तरह के बड़े आयोजनों में होती ही हैं। जनता के पैसे से इतनी बड़ी जनसंपर्क की कवायद कोई हर रोज थोड़ी न होती है! उनके विरोधियों समेत बाकी के बहुत से लोग इसे सबसे ज्यादा राजनीतिक, सबसे सांप्रदायिक, सबसे अराजक और प्रबंधन के मामले में सबसे खराब कुंभ के तौर पर याद रखेंगे।

हालांकि योगी व्यापारियों को दिए जाने वाले कमर्शियल स्पेस के लिए तीन लाख करोड़ रुपये का राजस्व बटोरने को लेकर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं, दूसरी तरफ वे व्यापारी हैं जो कह रहे हैं कि बिक्री नहीं हुई, इसलिए भारी घाटा हुआ।

इसके मुकाबले उन उद्यमियों ने ज्यादा वारे-न्यारे कर लिए जो पवित्र गंगाजल को बोतलों में भरकर बेच रहे थे, बेशक फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया के साथ। कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दूसरे राज्यों से प्रयागराज आने वाले भिक्षुकों ने भी इस बार इतनी दान-दक्षिणा हासिल कर ली कि प्रयागराज यात्रा फायदे का सौदा बन गई।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में जब 18 लोगों की जान गई, उसके एक दिन बाद योगी आदित्यनाथ यह दावा कर रहे थे कि अब तक 50 करोड़ लोग संगम में स्नान कर चुके हैं। इस आयोजन के अंत तक यह आंकड़ा 70 करोड़ तक पहुंच जाने की उम्मीद है। अधिकारी भीड़ का आकलन करने के लिए सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन, फेस रिकाॅगनीशन सिस्टम और एआई को तैनात करने की बात कर रहे थे लेकिन भीड़ इतनी जुटी कि उसके बारे में खुद योगी ने भी कभी सोचा नहीं होगा।

इसकी वजह से रेलवे स्टेशनों पर आने-जाने वालों को लेकर जो अव्यवस्था दिखी, उसने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस दावे की भी धज्जियां उड़ा दीं कि रेलवे इस अवसर के लिए तीन साल से तैयारी कर रहा है। कुछ भी हो, यात्री को न तो इसके लिए किए गए 5,000 करोड़ रुपये के निवेश से फायदा मिलता दिखा और न ही उन तीन सौ कुंभ स्पेशल ट्रेन से जिन्हें इस काम के लिए तैनात किया गया था।

राज्यों के आपसी तालमेल पर ध्यान नहीं दिया गया, जबकि यह भी एक तथ्य था कि मौजूदा स्टेशन और रेलवे ट्रैक हर रोज 13,000 यात्री ट्रेनों का भार वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि उन्हें कभी इतनी भीड़ का सामना नहीं करना पड़ा। यात्री एसी और सामान्य डिब्बों में जबरन घुस गए और वहां पैर रखने की भी जगह नहीं बची।  अमेठी के गुरु गोरखनाथ रेलवे स्टेशन के अलावा मधुबनी, समस्तीपुर जैसे कईं स्टेशनों पर इस तरह की अव्यवस्था दिखाई दी।

ट्रेनों के रद्द होने, देर से आने और उनका  प्लेटफाॅर्म बदले जाने से यात्रियों के लिए भयावह मुश्किलें खड़ी हुईं। कल्पना कीजिए, किसी प्लेटफार्म पार इतनी भीड़ है कि पांव रखने तक की जगह नहीं बची, और फिर अचानक ही प्लेटफाॅर्म बदलने की घोषणा हो जाए तो क्या होगा।

भीड़ सिर्फ ट्रेनों और स्टेशनों में ही नहीं थी, सड़कों का हाल तो कईं जगह इससे भी बुरा था। फरवरी के दूसरे हफ्ते में प्रयागराज की तरफ जाने वाले हाईवे पर मध्य प्रदेश में 300 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। कुछ जगह इसे दुनिया का सबसे लंबा जाम भी बताया गया। यह जाम 48 घंटे तक रहा।
जिन सड़कों पर जाम नहीं था, उनसे आने वाली खबरें ज्यादा परेशान करने वाली थीं। मिर्जापुर से प्रयागराज जाने वाली सड़क पर एक कार और बस की भिड़ंत हो गई, इसमें कुंभ जा रहे दस तीर्थयात्रियों की जान चली गई। जम्मू से प्रयागराज आए तीन तीर्थयात्रियों की सड़क दुर्घटना में जान गई। नेपाल से आए तीन तीर्थयात्री जब कुंभ स्नान के बाद लौट रहे थे तो सड़क दुर्घटना ने उनकी जान ले ली। प्रयागराज की तरफ जा रहे तीर्थयात्रियों की सड़क दुर्घटना में जान जाने और घायल होने की खबरें 900 किलोमीटर दूर इंदौर तक से आईं।  

महाकुंभ को इतिहास में इसलिए भी याद किया जाएगा कि इस मौके को महान साबित करने के लिए अधिकारियों ने हर हद पार कर दी। लोगों की बढ़ती भीड़ को रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई, जानकारियां छुपाई गईं; और जो हादसे हुए, उन्हें ‘छिटपुट त्रासदी कह कर दरकिनार करने की कोशिश की गई। 

पिछले 144 साल में यह ‘शुभ’ अवसर पहली बार आया है कि इस तरह के प्रचार ने भीड़ को अभूतपूर्व ढंग से बढ़ा दिया। जब तक कुछ लोग यह बताने की कोशिश करते कि इस तरह के दावे हर पूर्ण कुंभ और अर्ध कुंभ में किए जाते रहे हैं, बहुत देर हो चुकी थी। वाट्सएप ग्रुप और दूसरे सोशल मीडिया से यह जानकारी जंगल की आग की तरह फैली तो वे स्त्री-पुरुष भी प्रयागराज की ओर चल पड़े जो इसके पहले कभी अपने गांव से बाहर नहीं गए थे। उन्हें लगा कि यह अवसर उनके जीवन में दुबारा कभी नहीं आएगा।

मुफ्त भोजन, रहने का ठिकाना और ट्रेन यात्रा का आकर्षण भी उन्हें खींच रहा था। बहुत से तीर्थयात्रियों ने तो बेटिकट ही यात्रा की। जब एक रेलवे अधिकारी ने ऐसे लोगों से पूछा कि तुम किसके कहने पर बेटिकट यात्रा कर रहे हो, तो एक महिला का जवाब था- ‘नरेन्द्र मोदी ने खुद कहा।’ बिहार के बक्सर से आया यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल भी हुआ।

शुरू में सरकार ने 29 जनवरी की रात भगदड़ होने या किसी के हताहत होने तक से इनकार कर दिया था। लेकिन मामला ऐसे स्नान का था जिस पर सबकी नजर थी और पूरा मीडिया वहीं आस-पास मौजूद था, इसलिए इसे छुपाना जब संभव नहीं रहा, तो बात को स्वीकार किया गया। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के शोक संदेश आए। सरकार ने स्वीकार किया कि संगम नोज़ पर हुई भगदड़ में 30 लोगों की जान गई है।

वहां मौजूद लोगों के हिसाब से यह भगदड़ कहीं बड़ी थी और जिन लोगों की जान गई उनकी संख्या भी बहुत ज्यादा थी। दैनिक भास्कर और न्यूज़ एजेंसी रायटर ने अस्पतालों में जो शव गिने, उनकी संख्या 40 थी। न्यूजलांड्री का इन्वेस्टिगेशन मरने वाले 79 लोगों की सूची हासिल करने में कामयाब रहा। लेकिन ये सब वे आंकड़े हैं जो सरकारी रिकाॅर्ड में कहीं नहीं हैं।

पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टीज ने भी अपनी जांच में पाया कि सरकार तथ्यों को छुपा रही है। संगठन ने एक बयान में कहा, ‘हमारी प्राथमिक जांच से यही साबित होता है कि सरकार ने मरने वालों की संख्या छुपाने के लिए कईं तरह के तिकड़म अपनाए। शवों को दो अलग-अलग पोस्टमार्टम केन्द्रों पर भेजा गया और कईं मामलों में उनकी प्राप्ति के रिकाॅर्ड में भी हेर-फेर की गई।’

इसके बाद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट आई जिसमें बताया गया कि कुंभ के दौरान प्रयागराज में फीकल बैक्टीरिया की मात्रा सुरक्षित सीमा से बहुत ज्यादा है। साधारण शब्दों में कहीं तो यह पानी नहाने के लिहाज से भी सुरक्षित नहीं है। इसके बाद 16 फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा, ‘आपने 50 करोड़ लोगों को गंदे नाले जैसे पानी में नहाने दिया, जबकि यह पानी नहाने के लिहाज से सुरक्षित नहीं था, और लोगों को यह पानी पीना तक पड़ा।‘ ट्रिब्यूनल ने आगे कहा, ‘ऐसा लगता है कि आप किसी तरह के दबाव में हैं।‘

क्या योगी सरकार इसे स्वीकार करती? जाहिर है नहीं। 19 फरवरी को उन्होंने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को मानने से ही इनकार कर दिया, और इस बात पर जोर दिया कि संगम का पानी आचमन के लिए भी सुरक्षित है। कदाचित पहला आचमन उन्हीं को करना चाहिए।

इन चेतावनियों का मजाक उड़ाता प्रशासन 26 फरवरी को शिवरात्रि के पवित्र स्नान का प्रचार करने में व्यस्त है। उस दिन फिर से धर्मावलंबियों की भारी भीड़ जुटने की उम्मीद है। इनमें वे संपन्न लोग भी शामिल होंगे जो ग्रीन काॅरिडोर के लिए धन दे सकते हैं, जिनके लिए विशेष घाट हैं, भव्य टैंट हैं और दूसरी वीआईपी बंदोबस्त हैं। वे 144 साल बाद आने वाले इस अवसर का हर लाभ उठा लेना चाहते हैं। बाकी आशंकाएं अपनी जगह हैं।  

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