कोरोना: अपनों का ​बहिष्कार नहीं, सपोर्ट करें परिजन, सब कुछ सरकार नहीं कर सकती

लखनऊ। लॉकडाउन अवधि में कोरोना वैरियर्स जिस दिलेरी व सेवाभाव से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं, वह अत्यंत सराहनीय है। लेकिन दूसरी तरफ अपने ही खून को परिजनों की ओर से स्वीकार्य न करना बेहद कष्टकारी है। इस कोरोना ने सामाजिक ताने-बाने को भी तार-तार कर दिया है। बेशक, यह छूआछूत के जरिये फैलने वाली जानलेवा बीमारी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि कोरोना संक्रमित हो जाने पर अपने लोगों की ओर से उनका सामाजिक बहिष्कार हो।
गौरतलब है कि विगत दिनों एक व्यक्ति मुम्बई से परिवार के साथ गाजीपुर आया। वह घर गया तो घर वालों ने घर में घुसने नहीं दिया। वहां से ससुराल वालों को फोन कर आने की सूचना दी लेकिन वहां भी आने से मना कर दिया गया। वह परिवार के साथ गंगा पुल पर आया और बाइक खड़ी किया और गंगा में कूद कर जान दे दी। यह तो एक बानगी भर है। इस तरह बहिष्कार व मानसिक विचलन की स्थितियां आये दिन देखने को मिल रहीं हैं।
समाजसेवी व समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस समय परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। हर कार्य सरकार ही नहीं कर सकती। हमें अपने समाज व परिवार के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।
समाजशास्त्री डाक्टर रोहित मिश्र का कहना है कि कोराेना संक्रमण काल में सामाजिक ताने-बाने तार-तार हो रहे हैं। इस समय सबको अपने कर्तव्यों के निर्वहन पर ध्यान देना होगा। हर कार्य सरकार ही नहीं कर सकती। अधिकार के साथ-साथ हमें कर्तव्य भी बताए गये हैं और जब कर्तव्य की बात आती है तो उस समय व्यक्ति को और सजग हो जाना चाहिए।
कहा कि यदि परिवार का कोई सदस्य बाहर से आता है तो पहले से ही बहुत ज्यादा मानसिक रूप से परेशान रहता है। ऐसी स्थिति में परिवार को उसके साथ शारीरिक दूरी बनाते हुए उसके साथ सहानुभूति दिखाना जरूरी है। परिवार के सदस्यों का सपोर्ट बाहर से आने वालों के लिए जरूरी है।
समाजशास्त्री डाक्टर प्रमोद मिश्र का कहना है कि ऐसे आपदा काल में दोनों को समझने व समझाने की जरूरत है। इस समय हर व्यक्ति परेशान है। यही इस समस्या की जड़ है। इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है। किसी भी आपदा के समय धैर्य की जरूरत होती है। धैर्य रखते हुए हमें सजग रहने की जरूरत है। हमें दूसरों को संक्रमित मानने से पहले हर वक्त खुद को संक्रमित मानकर चलना होगा। हमें यह सोचना होगा कि हम दूसरों से दूर रहें।
समाजसेवी आनंद का कहना है कि जरूरत दोनों तरफ समझने की है। परिवार को भी समझना होगा कि जो भी बाहर से आ रहा है, वह खुद घबराहट में है। इस कारण वह दुर्व्यवहार किसी भी तरह से सहने की स्थिति में नहीं है। इस कारण देश त्रासदी से गुजर रहा है। सिर्फ सरकारी प्रयास से नहीं पड़ेगा। जैसे सबके अधिकार होते हैं, वैसे ही उसके कर्तव्य भी होते हैं। परिवार का साथ बहुत जरूरी है। उन्हें सपोर्ट करना चाहिए।
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