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व्यंग्य: पीएम साहब आप मखाने खाने का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाइए!

चुनाव जीतने के लिए नेताओं को न जाने कितनी  तरह के खटकरम करने पड़ते हैं। और जब ऐसा करनेवाला विश्वप्रसिद्ध नौटंकीबाज हो तो फिर कहने ही क्या?

आप जानते हैं कि मखानों का सबसे अधिक उत्पादन बिहार में होता है। मोदी जी अभी भागलपुर गए थे तो आठ- नौ महीनों बाद होनेवाले चुनावों के मद्देनजर यह झूठ- सच बोल आए कि मैं साल के 365 दिनों में से कम से कम 300 दिन मखाने जरूर खाता हूं।

कितना अच्छा काम करते हैं मोदी जी आप! इतना सुंदर काम तो आज तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया। तीन बार लगातार प्रधानमंत्री बननेवाले नेहरू जी ने तो बिल्कुल नहीं किया, जबकि वे ही नहीं, देश का कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा सुंदर उदाहरण देश के सामने प्रस्तुत कर सकता था मगर नहीं कर पाया। असफल रहा। सफलता का सेहरा मोदी जी आपके सिर बंधा! इसके लिए देश आपको याद रखे न रखे मगर बिहार की जनता आपको कभी नहीं भूल पाएगी!

लेकिन मैं इस बात से परेशान हूं कि मोदी जी, जब बिहार के हित में साल के 300 दिन आप मखाने खा सकते हो तो बाकी 65 दिन क्यों नहीं खा सकते? जब बिहार की इतनी अधिक चिंता आपको तीन सौ दिन रहती है तो बाकी 65 दिन क्यों नहीं रहती? यह एक बड़ा सवाल है और आपकी चुनावी सभाओं में आपसे यह सवाल  पूछा जा सकता है कि बताइए आप बिहार के साथ इतना अन्याय क्यों करते हैं? अरे, जब पलटूराम बिहार के हित में इधर से उधर और उधर से इधर यह कसम खाते हुए पलटते रह सकते हैं कि अब और नहीं पलटूंगा तो देश का प्रधानमंत्री पूरे 365 दिन मखाने नहीं खा सकता, जबकि उसे यह मालूम है कि यह सुपर फूड है और इसका प्रचार दुनियाभर में करना जरूरी है। मुझे पूरा विश्वास है कि मोदी जी ने अपनी ताजा अमेरिका और फ्रांस यात्रा में यह काम अवश्य किया होगा। ट्रंप जी को मखाने का एक बोरा भेंट अवश्य किया होगा और ट्रंप जी ने मखाने खाना शुरू भी कर दिया होगा!

ठीक है कि मोदी जी, आप गरीब घर में पैदा हुए थे और आपने 35 साल भिक्षा मांगी थी और भिक्षा मांगते- मांगते आप अमेरिका तक हो आए थे। व्हाइट हाउस के बाहर फोटो खिंचवा आए थे मगर कल का यह भिक्षुक, आज शानो-शौकत के मामले में अमीरों को भी मात देता है! हो सकता है मुकेश अंबानी पूरा दिन एक सूट में गुजार देते हों मगर साहेब के बारे में सुनते हैं कि वह एक बार जो कपड़ा पहन लेते हैं, उसे दुबारा नहीं पहनते। दिन में चार से छह बार कपड़े बदलते हैं। हर खास मौके के लिए वे चित्र- विचित्र कपड़े धारण करने से चूकते नहीं, भले ही कोई उन्हें बहुरूपिया कहे!

महंगी घड़ी, महंगा पेन, महंगे जूतों के बगैर तो उन्हें शायद लगता है कि वह भारत के नहीं,किसी आलतू-फालतू देश के प्रधानमंत्री हैं! तो यह हो नहीं सकता कि देश के गरीब-गुरबों की तरह उनकी हैसियत सालभर मखाने खाने की नहीं है। जब वे काजू की रोटी, रोज खाना अफोर्ड कर सकते हैं, जब वे बारह महीने सहजन का परांठा खा सकते हैं, जब वे अस्सी हजार किलो का मशरूम खा सकते हैं तो डेढ़ -दो हजार रुपए किलो का मखाना खाना उनके लिए रोज खाना कौनसा ऐसा मुश्किल काम है?फिर क्यों नहीं खाते?साल के 65 दिन बिहार के इस सुपर फूड की उपेक्षा करने से उन्हें कौन सा सुख मिलता है?

और मखाने से तो महोदय, बीसियों तरह के व्यंजन बनते हैं, चाहे जब खाओ, जिस तरह खाओ! सुबह की चाय के साथ खाओ या नाश्ते में खाओ। लंच में खाओ या डिनर में खाओ। खीर के रूप में खाओ या कुरकुरे नमकीन की तरह खाओ। व्रत-उपवास में खाओ या दाल चावल के साथ खाओ! तो कम से कम चुनाव तक तो रोज खाओ और नहीं खा सकते हो तो इतना झूठ बोलकर तो दिखाओ! क्या आजकल आप सत्यवादी हो गए हो! 300 के आंकड़ों में 365 करो और बिहारियों का दिल जीतो!

देश की जनता की ग़रीबी की परवाह तो आपको वैसे भी कभी नहीं रही। उसका पेट तो पांच किलो गेहूं से इतना अधिक भर जाता है महोदय कि मखाने आप उसे अपने हाथ से भी खिलाओगे तो वह नहीं खा पाएगी। खाते ही उसे कै हो जाएगी। उसका हाजमा बिगड़ जाएगा। मजदूरी का नुक़सान होगा, घर में फाके पड़ेंगे। और वैसे भी  देश की जनता अब जनता नहीं रही, पांच किलो अनाज पाकर वह ‘लाभार्थी’ हो चुकी है। और लाभार्थियों से कौन खौफ खाता है? आप तो मखाने खाओ और इतना ही नहीं मखाने खाने का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाओ!

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