अयोध्या कार सेवा : 1990 में रासुका, जेल की सजा और आज ‘खुशी के आंसू

सुलतानपुर। जिले से सटे अयोध्या के राम जन्मभूमि पर मंदिर का निमार्ण शुरू होते ही केवट की भूमिका में कुश की नगरी कुशभवनपुर (सुल्तानपुर) के कारसेवकों की खुशियां आपार है। कारसेवकों पर 1990 में रासुका लगा। डेढ़ महीने जेल की सजा काटा और आज खुशी के आंसू ने सपने को साकार कर दिया है। उन दिनों को याद करते हुए भावुक हो उठे कार सेवक श्रीराम आर्य ने अपनी आप बीती सुनाई।
कार सेवा से जुड़े नगर निवासी अठहत्तर वर्षीय श्रीराम आर्य ने न्यूज एजेंसी से अपनी आपबीती सुनाते हुए सन् 1990 की कार सेवा को याद किया और कहा कि कार सेवा शुरू हो चुकी थी। जगह-जगह नाकेबंदी थी, सुल्तानपुर शहर में कर्फ्यू लग गया था। हम लोग कारसेवकों की सेवा में लगे हुए थे। 11 अक्टूबर 1990 को वेदांती जी, विश्वनाथ दास शास्त्री और मुझे 2 दिन अमहट जेल में बंद रखने के बाद बाराबंकी जेल में शिफ्ट कर दिया गया था।
बताया कि इस आंदोलन में भारतवर्ष का पहला व्यक्ति मैं हूँ जिसके ऊपर रासुका लगाया गया था। धीरे-धीरे लोगों को छोड़ दिया गया है, परंतु मुझे हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी और डेढ़ महीने जेल की सजा काटने के बाद मैं जेल से बाहर निकल पाया।
केवट की भूमिका में रहा ‘कुश’ नगरी ‘सुलतानपुर’
श्री आर्य ने बताया कि भगवान राम के पुत्र कुश की नगरी और उनकी राजधानी रही सुलतानपुर (कुशभवनपुर) अयोध्या जाने वाले भक्तों के लिए केवट की भूमिका में से हमेशा अग्रणी भूमिका में रहा है। सुलतानपुर के रास्ते अयोध्या जाने वाले राम भक्तों को कोई तकलीफ न हो इसके लिए शहर के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और नौजवान पूरी रात जागकर उनके लिए भोजन, पानी व नाश्ता, चाय का इंतजाम करते थे।
घरों, मंदिरों, स्कूलों के प्रांगण में जगह-जगह बड़े-बड़े कड़ाहे में रात भर पूड़ियां छानी जाती रहीं। पूरे जोश के साथ महिलाएं व पुरुष इसमें सहयोग करते रहे। भाजपा नेता व विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी पूरी रात शहर में जगह-जगह घूमकर धर्मसभा सम्बंधी तैयारियों का जायजा लेते रहे और रणनीति बनाते रहे।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने निहत्थे कारसेवकों पर चलवायी थी गोलियां
आपबीती सुनाते हुए कहा कि 30 अक्टूबर और 2 नवंबर सन् 1990 का वह काला दिन अयोध्या के लोग कभी नहीं भूल सकते हैं। बिहार में जहां लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकते हुए उन्हें गिराफ्तार कर लिया गया, वहीं अयोध्या में विवादित स्थल का ढांचा बचाए रखने के लिए कारसेवकों पर गोली चला दी गई। 30 अक्टूबर 1990 को लाखों की तादाद में कारसेवक अयोध्या पहुंच चुके थे। उन्हें सरकार से इस तरह की सख्ती का अनुमान नहीं था।
बताया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के विवादित स्थल पर ‘पंरिदा भी पर नहीं मार सकेगा’ के बयान के बाद लोगों को अनुमान हो गया था कि हालात ठीक नहीं हैं, लेकिन तब तक अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि उन्हें काबू में नहीं किया जा सकता था। निश्चित समय पर कारसेवा शुरू हो गई और कारसेवकों ने विवादित स्थल पर ध्वज लगा दिया और उसके बाद पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए थे। कारसेवा रद्द कर दी गयी थी।
राममंदिर का फैसला आने पर खुशियों के आंसू छलक पड़े
राम मंदिर निर्माण के निर्माण के पक्ष में जिस दिन फैसला आया मैं टीवी के सामने बैठकर देख रहा था, खुशी के आंसू छलक पड़े तो पत्नी ने कहा कि जिसके लिए जेल की सजा काटी थी आज वो सफल हो गया। अपनी आंखों के सामने मंदिर का निर्माण शुरू होते देख अपार खुशी हो रही है, जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता है।
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