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अब तक हो चुकी हैं 80 मौतें, क्या मजदूरों की कब्रगाह बनती जा रहीं है श्रमिक ट्रेनें ?

नई दिल्ली। कोरोना ने प्रवासी मजदूरों में अजीब सा डर फैला दिया है। वह जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंच जाना चाहते है। केन्द्र सरकार उनकी सुविधा के लिए श्रमिक ट्रेनें चला रहीं है लेकिन उसमें बदइन्तजामियों के कारण वह जनता के साथ विपक्ष के भी निशाने पर आ चुकी है। उल्लेखनीय है कि कुछ सालों बाद जब कोरोना महामारी के बारे बात होगी तो सबसे पहले जिक्र होगा प्रवासी मजदूरों की तकलीफों का।

कोरोना महामारी और तालाबंदी के बीच प्रवासी मजदूर जिस तकलीफ से गुजर रहे हैं, इसके जिम्मेदारों को इतिहास शायद ही माफ करे। भारी अव्यवस्था के तंगहाली के बीच ये मजदूर कोरोना से नहीं बल्कि इस सिस्टम की लापरवाही से अपनी जान गवां रहे हैं। यह सिस्टम कितना लापरवाह है, इसकी बानगी श्रमिक ट्रेन में हो रही मजदूरों की मौत हैं।

प्रवासी मजदूरों को सकुशल उनके घरों तक पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा शुरु की गई श्रमिक ट्रेनें अब बदइंतजामी के चलते श्रमिक ताबूत बनती जा रही हैं। इन ट्रेनों में किस कदर अव्यवस्था व्याप्त है कि ट्रेन में मजदूर की मौत हो जाती है और किसी को पता ही नहीं चलता।

ऐसा ही एक मामला झांसी रेलवे यार्ड में खड़ी श्रमिक स्पेशल ट्रेन में देखने को मिला है। इसके एक कोच के शौचालय में बुधवार 27 मई की रात मजदूर का शव मिलने से हड़कंप मच गया। जब इसके बारे में पता किया गया तो पता चला कि लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर गैर राज्य से लौटकर 23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए रवाना हुआ था। कई घंटों की देरी से चल रही ट्रेनों ने श्रमिक के सब्र का इम्तिहान लेना शुरू किया। श्रमिक की रास्ते में ट्रेन के शौचालय में मौत हो गई। ट्रेन गोरखपुर गई और लौट भी आई और उसका शव शौचालय में पड़ा रहा। झांसी तक लौटकर वापस आ गया।

ट्रेन के शौचालय में जिस श्रमिक का शव मिला, वह बस्ती जिले के थाना थाना हलुआ गौर का रहने वाला था। श्रमिक का नाम मोहन शर्मा था। वह 23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए एक रवाना हुई श्रमिक एक्सप्रेस में सवार हुए थे। वे मुंबई से झांसी तक सड़क मार्ग से आए थे। यहां बॉर्डर पर रोके जाने के बाद उनको ट्रेन से गोरखपुर भेजा गया था। मोहन जब चलती ट्रेन में शौचालय गए थे, तभी उनकी तबीयत बिगड़ गई और मौके पर उन्होंने दम तोड़ दिया। ट्रेन के 24 मई को गोरखपुर पहुंचने के बाद उनके शव पर किसी की नजर नहीं पड़ी।

इसके बाद ट्रेन के खाली रैक को 27 मई की रात 8.30 बजे गोरखपुर से झांसी लाया गया। यार्ड में जब ट्रेन को सैनिटाइज किया जा रहा था, तभी एक सफाई कर्मचारी की नजर शौचालय में शव पर पड़ी। सूचना पर जीआरपी, आरपीएफ, स्टेशन कर्मचारी व चिकित्सक मौके पर पहुंच गए। जब इस मामले को लेकर रेलवे के अफसरों से सवाल पूछा गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली।

जांच के बाद जीआरपी ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज भेज दिया। मजदूर के पास मिले आधार कार्ड के आधार पर उसकी पहचान की गई। मजदूर के बैग व जेब से 28 हजार रुपये नकद मिले। साथ ही, एक मोबाइल नंबर मिला, जो गांव के सरपंच का था। सरपंच की मदद से परिजनों को हादसे की सूचना दी गई। शव का सैंपल भी कोरोना जांच के लिए भेजा गया है।

प्रवासी मजदूरों को सहूलियत देने के लिए चलायी गई श्रमिक ट्रेन सें लगभग 20 दिनों में ट्रेन यात्रा के दौरान 80 लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा रेलवे ने जारी किया है। रेलवे अधिकारियों ने इस संबंध में एक डेटा शेयर करते हुए कहा, ‘अब तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में 80 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत कोरोना वायरस की वजह से हुई है। वहीं 11 अन्य लोगों की मौत पहले से ग्रसित किसी अन्य बीमारी से हुई है।’ रेलवे अधिकारियों के मुताबिक यह डेटा 9-27 मई के बीच का है।

जब से श्रमिक ट्रेनों का संचालन शुरु हुआ है रेलवे की लापरवाही खुलकर सामने आई है। बीते दिनों में श्रमिक ट्रेनों के रास्ता भटकने की कई तरह की खबरें आईं हैं। कई ट्रेनें ऐसी भी हैं, जो एक दिन का सफर चार या पांच दिन में तय कर रही हैं, जिसको लेकर लगातार मीडिया में रिपोर्ट्स छपी थीं।

इससे पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से श्रमिक ट्रेनों में मजदूरों की परेशानियों के मसले पर रेलवे को नोटिस जारी किया गया था। मानवाधिकार आयोग की ओर से गुजरात, बिहार के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी किया गया है। इसके अलावा केंद्रीय गृह सचिव, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को भी नोटिस देकर जवाब मांगा गया है।

 

ट्रेन में पानी की कमी, भूख और जरूरी सामान की कमी के कारण हो रही श्रमिकों की मौत या बीमारी को लेकर भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया है। NHRC की ओर से जारी बयान में कुछ मामलों का जिक्र भी किया गया है, जिसमें मुजफ्फरपुर में हुई दो लोगों की मौत, दानापुर, सासाराम, गया, बेगूसराय और जहानाबाद में एक-एक मौत पर जवाब मांगा गया है। बयान में कहा गया कि इनकी मौत भूख की वजह से हुई थी, वहीं गुजरात के सूरत से निकली एक ट्रेन करीब नौ दिन के बाद बिहार में पहुंची थी। केंद्र सरकार के अनुसार, अबतक 3700 ट्रेन चल चुकी हैं और करीब 91 लाख मजदूरों को वापस पहुंचाया जा चुका है।

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