नई दिल्ली। 1 मार्च से शुरू होने वाली स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया तीनों ही टेलीकॉम कंपनियों ने अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट (EMD) जमा कर दिए हैं। नीलामी के लिए क्वालीफाई कर चुकी कंपनियों की लिस्ट जारी करते हुए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) ने यह जानकारी दी। अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट, नीलामी में शामिल होने वाली कंपनियों की ओर से जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी होती है।
EMD के तौर पर जमा की गई रकम टेलीकॉम कंपनी की बोली लगाने की रणनीति के बारे में भी बताती है, क्योंकि रकम के हिसाब से टेलीकॉम ऑपरेटर को एलिजिबिलिटी पॉइंट मिलते हैं। इन्हीं पॉइंट्स के हिसाब से ऑपरेटर किसी विशेष स्पेक्ट्रम सर्किल में हिस्सा खरीद सकते हैं।
रिलायंस जियो इंफोकॉम (Jio) ने EMD के तौर पर 10 हजार करोड़ रुपए की रकम जमा की है, जबकि एयरटेल ने सिर्फ 3 हजार करोड़ रुपए और वोडाफोन-आइडिया ने मात्र 475 करोड़ की रकम EMD के तौर पर जमा की है। DoT के नोटिस के मुताबिक, सबसे ज्यादा EMD देने वाले जियो को 73007 एलिजिबिलिटी पॉइंट्स मिले हैं। एयरटेल को 24924 पॉइंट्स और वोडाफोन-आइडिया को 6153 पॉइंट्स मिले हैं।
एयरटेल के मुकाबले जियो को दोगुने से ज्यादा स्पेक्ट्रम खरीदना होगा
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, जियो की स्पेक्ट्रम खरीदने की अधिकतम लिमिट 50-70 हजार करोड़ रुपए की होगी। जियो नीलामी में सबसे ज्यादा पैसा इसलिए खर्च कर रहा है, क्योंकि उसे एक्सपायर हो रही स्पेक्ट्रम को रिन्यू कराना है और डेटा की बढ़ती खपत को पूरा करने के लिए नए स्पेक्ट्रम भी जोड़ना है। वहीं भारती एयरटेल की लिमिट करीब 15-25 हजार करोड़ रुपए और वोडाफोन-आइडिया की लिमिट 2500-3500 करोड़ का स्पेक्ट्रम खरीदने की होगी।
रिलायंस जियो के सामने अपने 4G के गिरते प्रदर्शन को सुधारने की चुनौती भी
पिछले 5 महीने से जियो के मुकाबले एयरटेल के सब्सक्राइबर्स तेजी से बढ़ रहे हैं। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी TRAI के मुताबिक, दिसंबर में एयरटेल के नेटवर्क पर 40 लाख से ज्यादा वायरलेस सब्सक्राइबर्स जुड़े, वहीं जियो के नेटवर्क पर जुड़ने वाले वायरलेस सब्सक्राइबर्स की संख्या 4.7 लाख रही।
वायरलेस डेटा की बात करें तो 2020 में जियो के डेटा की खपत में 22% की बढ़ोतरी हुई, जबकि एयरटेल के डेटा की खपत 52% बढ़ी। संकेत साफ है कि 2020 में जियो की ग्रोथ का इंजन ट्रैक पर लड़खड़ा रहा है।
जियो के पास 40 करोड़ कस्टमर्स का बड़ा नेटवर्क है, लेकिन मौजूदा स्पेक्ट्रम क्षमता सीमित होने की वजह से यूजर एक्सपीरिएंस में कमी आई है। ऐसे में जियो के सामने अपने गिरते प्रदर्शन को सुधारने की चुनौती है।
टेलीकॉम इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के चेयरमैन प्रो. एनके गोयल कहते हैं कि टेलीकॉम इंडस्ट्री में जियो के आने के बाद से लगातार तेज बदलाव हो रहे हैं। जियो के चलते ही कंपनियों ने कम दरों पर डाटा उपलब्ध कराना शुरू किया था, लेकिन इस बार स्पेक्ट्रम की नीलामी में सबसे ज्यादा जियो पर भार पड़ेगा। इसका असर जियो के सब्सक्राइबर्स ही नहीं, बल्कि दूसरी कंपनियों पर भी पड़ सकता है, क्योंकि अगर जियो ने अपने प्लान बदले तो निश्चित ही दूसरी कंपनियां भी अपने डाटा प्लान में तब्दीली कर देंगी।
2300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी में होड़
क्वालकॉम के वाइस प्रेसिडेंट पराग कार के मुताबिक, ‘रिलायंस जियो 800MHz के काफी स्पेक्ट्रम लेगा।’ फिलहाल रिलायंस जियो दिवालिया हो चुकी रिलायंस कम्युनिकेशन के 800 मेगाहर्टज के स्पेक्ट्रम का उपयोग कर रही है। इसका 21 सर्कल में से 18 सर्कल का लाइसेंस जुलाई-अगस्त 2021 में खत्म होगा।
इसके अलावा जियो 1800MHz और 2300 MHz बैंड के स्पेक्ट्रम भी खरीदेगा। इससे 3G और 4G सेवाओं को सुधारा जाएगा। रिलायंस जियो अपने 4G स्पेक्ट्रम को 23.4 MHz से बढ़ाकर 40.82 MHz करना चाहेगा। एयरटेल भी इसी फ्रीक्वेंसी के स्पेक्ट्रम खरीदने वाला है। जिससे इसकी कीमत, रिजर्व कीमत से 75% तक ज्यादा हो सकती है।
ग्राहकों को मोबाइल फोन का रिचार्ज पड़ेगा महंगा
क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस जियो सबसे ज्यादा स्पेक्ट्रम हासिल कर सकती है, क्योंकि 35 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी और कहीं ज्यादा टैरिफ हिस्सेदारी के साथ वह अपनी नेटवर्क क्षमता को बढ़ाना चाहती है। स्पेक्ट्रम नीलामी में रिलायंस जियो को ज्यादा पैदा खर्च करना पड़ेगा, जिसकी भरपाई जियो अपने टैरिफ में बढ़ोतरी से कर सकती है।
रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) को उम्मीद है कि मोबाइल ऑपरेटर कंपनियां अगली एक या दो तिमाहियों में टैरिफ बढ़ोतरी के अगले दौर में प्रवेश करेंगी। रिलायंस अपने टैरिफ प्लान महंगे करेगी तो एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया भी टैरिफ में बढ़ोतरी कर सकती हैं। एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया पर बकाया AGR जमा करने का भी दबाव है।
1 मार्च से स्पेक्ट्रम की नीलामी, फिलहाल 5G शामिल नहीं
1 मार्च से होने वाली स्पेक्ट्रम नीलामी में 700 MHz से 2500 MHz के 7 बैंड में 2300 यूनिट तरंगों की नीलामी होनी है। इन तरंगों की कुल बेस वैल्यू 3.92 लाख करोड़ रुपए रखी गई है। इसमें 5G स्पेक्ट्रम को शामिल नहीं किया गया है। इससे पहले पांच बार स्पेक्ट्रम नीलामी हो चुकी है। आखिरी नीलामी चार साल पहले हुई थी।
हालांकि इकॉनमिक टाइम्स के मुताबिक सरकार को इस नीलामी से मात्र 50 हजार करोड़ की कमाई की ही उम्मीद है। ऐसा इसलिए क्योंकि सबसे ज्यादा कीमत वाली 700 MHz वाली तरंगें 2016 की तरह इस बार भी न बिकने का डर है।
कंपनियों की शिकायत रहती है कि कम स्पेक्ट्रम के कारण वे ग्राहकों को अच्छी सर्विस नहीं दे पाती हैं। ज्यादा स्पेक्ट्रम मिलने से सर्विस क्वालिटी सुधरने की उम्मीद है। पूरे देश में 22 टेलीकॉम सर्किल हैं। 700, 800 और 2300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी सभी 22 सर्किल के लिए, 1800 मेगाहर्ट्ज की 21 के लिए, 900 और 2100 मेगाहर्ट्ज की 19 के लिए और 2500 मेगाहर्ट्ज की 12 सर्किल के लिए होगी। सरकार ने 3300-3600 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी बैंड वाले स्पेक्ट्रम को इस नीलामी से बाहर रखा है। ये स्पेक्ट्रम 5G सर्विसेज के लिए होता है।