जमीन घोटाले के आरोपों से क्या विहिप की साख पर फर्क पड़ेगा ?

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा

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जिस राम मंदिर को राजनीतिक मुद्दा बना कर भाजपा ने बीते 35 सालों में सफलता का शिखर पाया और जो राम मंदिर 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की उपलब्धि  का एक बड़ा प्रतीक होने वाला है , उसी राम मंदिर की जमीन में हुए कथित घोटाले ने पार्टी को चिंतित कर दिया है।

13 जून को जब आम आदमी पार्टी के एमपी संजय सिंह जमीन घोटाले के कागजातों के साथ लखनऊ में मीडिया से मुखातिब थे, उसी वक्त समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक पवन पांडेय इन्ही कागजातों के साथ अयोध्या में प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे।

आरोप संगीन थे तो हलचल मचनी ही थी और उसका असर सरकार पर भी आना ही था , क्योंकि आरएसएस , विहिप खुद को भले ही तकनीकी रूप से भाजपा से अलग बताने का प्रयास करते हो मगर ये बाद सर्वविदित है कि ये तीनों एक ही है। और खास तौर पर चुनावी वक्त में तो और भी ज्यादा।

विहिप के मुखिया चंपत राय बंसल से दो दिनों में तीन स्पष्टीकरण दे डाले हैं और हर स्पष्टीकरण के बाद विवाद कुछ और आगे बढ़ गया है। 15 जून को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जमीन खरीद में लगे आरोपों पर संज्ञान लिया और पूरे मामले की रिपोर्ट तलब कर ली है।

मामले ने जब तूल पकड़ा तो सोशल मीडिया पर भगवा समर्थकों से ले कर संघ परिवार तक ट्रस्ट के पक्ष में खड़ा हुआ, लेकिन आलोचक भी शांत नहीं हुए हैं।

फेसबूक से ले कर व्हाट्सएप और ट्वीटर पर जंग जारी है और जैसा की हमेशा होता है इस जंग ने भी भाषाई मर्यादा की सीमाएं तोड़ दी है ।

हिन्दुत्व समर्थक सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं – जब चन्दा रामजादों ने दिया तो हरामजादे इसका हिसाब क्यों पूछ रहे हैं। इसके जवाब में आलोचक भी – राम नाम पर लूट मची है लूट सके तो लूट – जैसी टिप्पणियाँ कर रहे हैं।

दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय,गोरखपुर के प्रोफेसर राजेश मल्ल कहते हैं -अभी कुछ दिन पहले तक किसी पर कोई आरोप लगता था तो लोग कहते थे जांच करवा लो। आडिट करा लो। एक एक आय-व्यय सार्वजनिक है। जो चाहे देख ले। लेकिन थोड़े दिनों से नया चलन सामने आया है।

किसी तरह का सवाल खड़ा होते ही एक पूरी ट्रोल आर्मी कूद-फांद करने लगती है। एक्को पईसा दियो हो! देश द्रोही है।काम देखा नहीं जा रहा है।पेट में मरोड़ हो रही है। आदि आदि। एक नया ट्रेंड चल गया है।नान आडिटेबुल फंड।आय-व्यय सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। क्योंकि जो शक कर रहे हैं वे इस लायक नहीं है कि शक कर सकें। उनपर आपी,वामी,कांग्रेसी जैसे आरोप लगाने लगते हैं। सवाल उठते ही सवाल करने वाले के सात पुस्त में मियां (मुसलमान)खोज कर रखना, गालियां बकना और मुकदमा दर्ज करना सामान्य है।

सोशल मीडिया से इतर राजनीतिक माहौल भी गरम है । राम मंदिर मुद्दे पर हमेशा बैकफूट पर रहने वाले विपक्ष को मौका मिला है और वो इस बहाने मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों की साख पर हमला करने से नहीं चूक रहा ।

मामला भले ही आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने उठाया मगर कांग्रेस भी अब इस मामले में कूद पड़ी है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा कि करोड़ों लोगों ने आस्था और भक्ति के चलते भगवान के चरणों में चढ़ावा चढ़ाया। उस चंदे का दुरुपयोग अधर्म है, पाप है, उनकी आस्था का अपमान है।

राजस्थान के सीएम अशोक गहलौत भी इसे आस्था पर बड़ी चोट बताते हुए इसे अपने राज्य से जोड़ रहे हैं- गहलौत का कहना है कि राम मंदिर आंदोलन में सबसे ज्यादा चन्दा राजस्थान से आया था और इस घोटाले से राजस्थान का जन मानस दुखी हो गया है।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो सीधे सुप्रीम कोर्ट से आग्रह  कर दिया  कि वह मंदिर निर्माण के चंदे के रूप में प्राप्त राशि व खर्च का न्यायालय की निगरानी में ऑडिट करवाए तथा चंदे से खरीदी गई सारी जमीन की कीमत को लेकर भी जांच करे।

राम मंदिर को हमेशा आस्था का मामला बताते खुए खुद को अराजनैतिक कहने वाली विश्व हिन्दू परिषद पर अब आस्था के साथ खिलवाड़ करने के आरोप लगे हैं तो सन 1992 मे मिले चंदे के हिसाब की मांग भी होने लगी है। उस वक्त भी विहिप और आरएसएस ने गाव गाव से एक ईंट के साथ मंदिर निर्माण के लिए चन्दा लिया था जिसकी राशि करीब 55 करोड़ बताई जाती है । हालाकी वास्तविक राशि का कोई भी आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। 

बीते साल जब एक बार फिर मंदिर निर्माण के लिए घर घर जा कर चन्दा लेने का अभियान चला तो अब तक एकत्रित राशि को करीब 700 करोड़ बताया जा रहा है।

विहिप और आयोध्य के संतों के बीच राम मंदिर ट्रस्ट में भागीदारी को ले कर पहले से ही खिंचाव रहा है और इस मामले के सामने आने के बाद एक बार फिर अयोध्या के संतों और महंतों ने विहिप के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है।

इस विवाद के बाद अब चंदे और ट्रस्ट के काम काज में पारदर्शिता की मांग तेज होने लगी है। कई ऐसे लोग जिन्होंने मंदिर के चंदे की रसीद अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर शेयर की थी , वे अब उसी एकाउंट पर अपनी निराशा भी जाहिर कर रहे हैं।

राम के नाम पर आस्था भारत में हमेशा ही रही है , मगर खुद को राम काज के लिए समर्पित बताने वालों पर जनमानस के एक बड़े हिस्से की आस्था जरूर डगमगा गई है।

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