मुजफ्फरनगर: गठबंधन पर मुस्लिमों का रुझान, अति पिछड़ों में खिला ‘कमल’?

मुजफ्फरनगर। जिले की 6 विधानसभाओं के लिए हुए मतदान को देखकर साफ हो गया है कि मुस्लिमों का एक तरफा वोट गठबंधन प्रत्याशियों पर गया है। जबकि जिले के अधिकतर अतिपिछड़ा वर्ग के वोटर्स की पहली पसंद ‘कमल’ ही बना। ध्रुविकरण की काट काे वेस्ट में बने सपा-रालोद गठबंधन ने जाट-मुस्लिम के बीच की दूरी कितनी कम की इसकी तस्वीर 10 मार्च को ही साफ हो सकेगी। इतना जरूर है कि इस समीकरण सत्ताधारियों को कई बार हताश किया।

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बसपा प्रमुख मायावती का लाया गया सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला पश्चिम में धीरे-धीरे क्षीण पड़ने लगा है।पार्टी कोई भी हो लेकिन उसका मुख्य फैक्टर अति पिछड़ा वर्ग अब अपनी जगह छोड़ने को तैयार नजर नहीं आता। यही कारण रहा कि गुरुवार को जिले की 6 सीटों के लिए हुए मतदान के दौरान मोस्ट ओबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग का रुझान गत चुनाव (2017) जैसा ही देखने को मिला।

इसके साथ-साथ मुस्लिम वोटर का जो रवैया उस समय के गठबंधन के साथ था इस बार भी कमोबेश वही रहा। फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार गठबंधन में सपा के साथ कांग्रेस नहीं बल्कि रालोद था। हांलाकि जाट मतदाताओं को छोड़ दें तो अधिकतर गैर मुस्लिमों का रुझान कमल पर ही नजर आया। अलबत्ता अधिकतर दलित मतदाताओं ने हाथी की सवारी करना ही बेहतर समझा।

सदर सीट के ये रहे हालात, पलट सकती है बाजी

सदर सीट पर सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी के रूप में सौरभ स्वरूप उर्फ बंटी ने चुनाव लड़ा। इस सीट पर सपा का बेस वोट माने जाने वाले मुस्लिम मतदाताओं का रुझान परंपरागत तरीके से सपा समर्थित प्रत्याशी की ओर ही रहा। जबकि गैर मुस्लिम मतदाताओं में पाल, खटीक, नाई, लुहार, सैनी आदि अति पिछड़ा वर्ग की पहली पसंद कमल ही बना। सदर सीट पर नई मंडी क्षेत्र में वैश्य वोटर्स की बहुतायात है।

इस समाज का एक बड़ा वर्ग भी कमल का पैराेकार नजर आया। गठबंधन ने जाट मतदाताओं पर भी मजबूत दावेदारी ठोक रखी थी, लेकिन शहरी सीट पर इस वर्ग के अधिक मत न होने के कारण विष्लेशकों के लिए यह तय कर पाना आसान नहीं कि उनके वोट किसे गए। बावजूद इतना तय है कि यदि गठबंधन का दावा सही निकला तो रालोद प्रत्याशी मजबूत स्थिति में आ जाएगा। इसका एक कारण बसपा तथा कांग्रेस प्रत्याशियों की सजातीय मतों में सेंधमारी भी रहेगी।

खतौली में भड़ाना बढे़ तो विक्रम का नुकसान तय

प्रत्याशी के नाम की घोषणा से लेकर चुनाव के आखीर तक खतौली क्षेत्र के कई गांवों में भाजपा उम्मीदवार विक्रम सैनी को काफी विरोध का सामना करना पड़ा। गठबंधन ने खतौली से राजपाल सैनी को उतारा था, जबकि बसपा करतार भड़ाना को लड़ा रही थी। करतार निराले अंदाज में चुनाव लड़ाए जाने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार न जाने क्यों वोटर बसपा उम्मीदवार को अधिक गंभीरता से नहीं ले रहा था।

बावजूद मुकाबला ले दे के गठबंधन के राजपाल सैनी और भाजपा के विक्रम के बीच ही आ फंसा। लेकिन इनकी हार-जीत का वजह इस बार बसपा प्रत्याशी को ही माना जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि यदि करतार भड़ाना गुर्जर मतों में बड़ी सेंधमारी कर गए तो विक्रम को नुकसान हो सकता है। लेकिन राजपाल सैनी के लिए यह भी मुश्किल की बात है कि खतौली सीट पर जाट तथा मुस्लिमों वोटर्स की संख्या तुलनात्मक रूप से कम मानी जाती है।

बुढाना में उमेश की उत्तेजना के भी हैं कुछ मायने

गुरुवार को मतदान शुरू होने के बाद से ही बुढाना से भाजपा प्रत्याशी उमेश मलिक काफी उत्तेजित नजर आए। पहले तो गांव बसी कला में उन्होंने मतदान को लेकर नाराजगी जताई। उसके बाद शाम के समय शाहपुर के एक पोलिंग बूथ पर उन्होंने एक व्यक्ति पर फर्जी मतदान करने का आरोप लगाते हुए उसकी ठुकाई कर डाली। सियासी पंडितों ने भी इस सब के मायने निकाले। देखा जाए तो बुढाना में सर्वाधिक जाट तथा मुस्लिम मतदाता माने जाते हैं।

गठबंधन का दावा भी इन दोनों वर्ग के मतदाताओं पर ही था। अति पिछड़ा वर्ग के साथ जाट मतदाता उमेश मलिक की जीत में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। यदि गठबंधन नेताओं के दावों के अनुरूप जाट वोटर कमल से खिसका तो उमेश के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती हैं। गठबंधन उम्मीदवार राजपाल बालियान जाटों का अधिकर दुलार हासिल कर पाए तो उनके लिए एक ओर खुशी का पल आएगा। जबकि क्षेत्रीय मुस्लिम मतदाता उन्हें अपनी पहली पसंद बना चुके हैं।

पुरकाजी में अनिल-ऊटवाल कड़े मुकाबले मे फंसे

2017 विधानसभा चुनाव में पुरकाजी सुरक्षित सीट सपा-कांग्रेस गठबंधन के घटक कांग्रेस के पास थी। इस सीट पर दीपक कुमार ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। वह करीब 10 हजार से भाजपा के प्रमोद ऊटवाल से हार गए थे। इस बार सपा-रालोद गठबंधन ने पुरकाजी से पूर्व विधायक अनिल कुमार को उतारा था। जबकि भाजपा से प्रमोद ऊटवाल ही ताल ठोक रहे थे। इस सीट पर जाट वोटर्स का रुझान अनिल और प्रमोद की किस्मत तय करेगा।

अलबत्ता मुस्लिमों की पहली पसंद गठबंधन प्रत्याशी अनिल कुमार ही बनते दिखे। यदि अनिल अपनी छवि अनुरूप दलित के साथ कुछ अति पिछड़ा वर्ग का समर्थन भी हासिल कर पाए तो प्रमोद को कड़ी टक्कर मिलेगी। गुरुवार को हुए चुनाव के दौरान अनिल कई वर्ग में सेंध लगाते दिखे। फिर भी भाजपा की तह में जाना आसान नहीं होगा।

मीरापुर में बहारी और स्थानीय में फंसे रहे प्रशांत

मीरापुर सीट से गठबंधन ने इस बार चंदन चौहान को मैदान में उतारा। छवि के अनुरूप चंदन को काफी दुलार क्षेत्र के लोगों का मिलता दिखा। भाजपा प्रत्याशी प्रशांत गुर्जर के साथ पार्टी के बड़े नेताओं की फौज घूमती दिखी। कई जगह वह अपने बहारी होने की सफाई देते मिले। जिससे लगा कि यह मुद्दा भी उन्हें कचोट रहा है। लिहाजा चंदन व प्रशांत के बीच मुकाबला कड़ा दिखा।

मुकाबले पर प्रशांत के होने के चलते सजातीय गुर्जर मतों को हासिल करना चंदन के लिए चुनौती रहा। गठबंधन के घटक सपा का परंपरागत बेस वोट चंदन के साथ चले जाने पर यदि रालोद की दावेदारी वाला जाट वोट भी चंदन को मिल गया तो उनकी राह आसान हो जाएगी। यहां प्रशांत के बहारी होने का मुद्दा भी चंदन की मदद कर रहा है।

चरथावल में पंकज का ‘सपना’ अधूरा, या होगा पूरा

चरथावल विधानसभा सीट से गठबंधन ने पूर्व विधायक पंकज मलिक को उतारा था। गुरुवार को मतदान के दौरान सामने आ रहे रुझान से साफ हुआ कि इस विधानसभा क्षेत्र के अति पिछड़ा वर्ग का समर्थन भाजपा प्रत्याशी सपना कश्यप के साथ है। इसकी बड़ी वजह भी है। सपना कश्यप पति विजय कश्यप की कोरोना से मौत के बाद सियासी मैदान में उतरी। सपना के साथ क्षेत्र के लोगों की सहानुभूति लाजिम है। विजय कश्यप चरथावल से ही विधायक थे। बावजूद पंकज को मुस्लिमों का काफी दुलार मिला। बात फिर वहीं आकर अटक रही है कि यदि पंकज अधिकाधिक सजातीय जाट मत लेने में सफल रहे तो उनके सिर पर कामयाबी का सेहरा बंध सकता है, नहीं तो सपना ही क्षेत्र के लोगों का प्रतिनिधित्व करती नजर आएंगी।

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