अतीक-अशरफ की हत्या पुलिस की नाकामी या राजनीति का भयावह दौर

ज़फ़र आग़ा

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अतीक अहमद कुख्यात माफिया डॉन था। इलाहाबाद (प्रयागराज) निवासी इस भूमाफिया पर न जाने कितने भोले-भाले इलाहाबादियों की जमीन-जायदाद कब्जा करने का आरोप था। उसके हाथ खून से तो रंगे ही थे, उसको भारतीय संविधान के तहत कड़ी-से-कड़ी सजा मिलनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पुलिस की नाक के नीचे सरेआम गोली मार कर उसकी हत्या कर दी गई। साथ ही उसका भाई अशरफ भी मारा गया। अतीक और अशरफ की हत्या वह पहली हत्या थी जो टीवी चैनलों पर देश भर में ‘लाइव’ देखी गई।

पुलिस पर अब यह आरोप लग रहा है कि उसने प्रयागराज में अतीक और अशरफ की सुरक्षा का वैसा प्रबंध नहीं किया जैसा होना चाहिए था। अतीक अहमद तो पहले से ही यह शंका जाहिर कर रहा था कि पुलिस एनकाउंटर या किसी और तरीके से उसकी हत्या की जा सकती है। अतीक को इस बात का इतना डर था कि उसने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की थी कि कोर्ट उसकी सुरक्षा का प्रबंध अपनी निगरानी में करे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका यह कह कर रद्द कर दी कि ‘स्टेट मशीनरी उसकी सुरक्षा का प्रबंध करेगी।’ लेकिन ‘स्टेट मशीनरी’ ने उसकी सुरक्षा का ऐसा प्रबंध किया कि वह पुलिस की नाक के नीचे मार दिया गया और पुलिस वाले खड़े देखते रहे।

अब तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की है कि पुलिस ने राज्य सरकार के इशारे पर अतीक और अशरफ की हत्या करवा दी। राज्य सरकार ने इस हत्याकांड की जांच के लिए एक कमीशन बिठा दिया है। लेकिन सरकारी कमीशन जैसी रिपोर्ट देते हैं, उससे सब भलीभांति परिचित ही हैं। ऐसे में विपक्ष के नेता यह बयान दे रहे हैं कि अतीक की हत्या का सच कभी सामने नहीं आएगा। यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि अतीक की हत्या में स्वयं राज्य सरकार की मर्जी शामिल थी।

जितने मुंह उतनी बातें। अतीक की हत्या का तानाबाना कैसे बुना गया, शायद एक रहस्य ही बना रह जाएगा। अतीक की हत्या सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का विषय भी बनती जा रही है। लेकिन दो अहम सवाल हैं जो इस पूरे मामले पर खड़े हुए हैं और जिन पर बहस हो रही है। पहला तो यह कि एनकाउंटर को लेकर सरकारों की क्या नीति होनी चाहिए? इसमें शक नहीं कि लंबे समय से एनकाउंटर नीति का प्रयोग विभिन्न सरकारें करती रही हैं। उत्तर प्रदेश में 2017 में योगी सरकार के गठन के बाद अपराधियों के एनकाउंटर को लगभग खुला सरकारी एवं राजनीतिक सहयोग हासिल है। तभी तो अतीक और अशरफ की हत्या से पूर्व अतीक के बेटे असद का एनकाउंटर पिछले छह वर्षों में 182वां एनकाउंटर था।

इससे पूर्व कानपुर के माफिया डॉन विकास दुबे के एनकाउंटर पर राज्य में शोर मच चुका है। ऐसे तमाम आरोप-प्रत्यारोप तो एक राजनीतिक मुद्दा है। लेकिन यह स्पष्ट है कि एनकाउंटर नीति देश एवं राज्यों में अपराध रोकने में असफल रही है। इसकी मिसाल तो  असद एनकाउंटर के एक सप्ताह के भीतर ही उत्तर प्रदेश के जालौन में एक लड़की की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या किए जाने से सामने आ ही गई। दरअसल एनकाउंटर पर देश में खुली चर्चा होनी चाहिए और इसे रोकने के लिए कड़े कानून बनने चाहिए। यदि राजनीतिक दल ऐसा कानून बनाने में असफल रहते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में पहल कर एनकाउंटर प्रथा को समाप्त करने के लिए कदम उठाना चाहिए।

दूसरा सवाल है कि आखिर हत्याओं की राजनीति पर कोई लगाम लगेगी भी कि नहीं। अतीक और अशरफ की हत्या पर सोशल मीडिया पर और कहीं-कहीं सड़कों पर भी खुला राजनीतिकरण हुआ है। अतीक-अशरफ की हत्या के बाद से सोशल मीडिया पर एक तरह जश्न मनाया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मुबारकबाद एवं ‘थैंक यू योगी जी’ की गूंज मच गई। जाहिर है कि इस हत्या की आड़ में हिन्दुत्व राजनीति चमकाने का खुला प्रयास हुआ।

योगी आदित्यनाथ के बारे में हिंदुत्व हलकों में यह आम धारणा है कि वह ‘मिओं को ठीक’ कर सकते हैं। तभी तो अतीक और अशरफ जैसे ‘मुल्ले माफिया डॉन’ की हत्या पर  थैंक यू योगी जी का शोर मचा। लेकिन हैरानी इस बात पर है कि ऐसे किसी भी संदेश या संदेशों के प्रसार पर बीजेपी अथवा प्रशासन की ओर से किसी प्रकार रोक नहीं लगाई गई, योगी के विरुद्ध मामूली-सी पोस्ट पर न जाने कितने लोगों के खिलाफ प्रशासन ने कड़े कदम उठाए हैं।

देश में जिस तरह अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत की राजनीतिक का बाजार गर्म है, उस माहौल में अतीक जैसों की हत्या का राजनीतिकरण तो होना ही था। अतीक की हत्या को सोचसमझकर एक मुस्लिम डॉन की हत्या का न केवल रंग दिया गया बल्कि यह भी कोशिश की गई कि इस हत्याकांड का श्रेय योगी को दिया जाए। यह बात देश की राजनीति में एक अत्यंत खतरनाक मोड़ है, क्योंकि अब देश में नफरत पैदा कर चुनाव जीता जा सकता है। ऐसा हो भी रहा है।

इस राजनीति की शुरुआत 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम नरसंहार से हुई। उन दंगों का सीधा राजनीतिक लाभ नरेंद्र मोदी को हुआ जो प्रदेश ही नहीं देश भर में ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ बन गए। राजनीतिक हलकों में अब यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि योगी भी इसी राह पर हैं और हिंदुत्व राजनीति के दूसरे नंबर के हीरो बनने के सपने देख रहे हैं।  वैसे खुद योगी भी कई तरह से यह संकेत देते रहे हैं कि वह एक कट्टरवादी हिन्दू और मुस्लिम आबादी को ‘ठीक’ करने वाले नेता हैं। उनकी बुलडोजर नीति अथवा उनके प्रशासन में आजम खां एवं अतीक जैसों को ‘ठीक’ किया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में वे खुद को नया ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ मान ही लें तो कोई क्या करे।

ये सब भारतीय राजनीति का एक खतरनाक और अत्यंत चिंताजनक मोड़ है। 80 बनाम 20 की राजनीति का बोलबाला शुरु हो चुका है। ऐसे में अतीक और अशरफ जैसों की हत्या पर आंसू बहाना अथवा पुलिस की निंदा करना बेमतलब है।

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