क्या बिहार में नीतीश बड़का और भाजपा छुटका रहेगी ?

आलोक एम इन्दौरिया

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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा हाल ही का बिहार दौरा संपन्न हुआ और उसे दौरे में जिस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तर्जी दी गई, उन्हें लाडला बताया गया और पूरे दौरे में जिस तरह राजनीतिक पत्ते फेंटे गए उसके बाद राजनीतिक वीथिकाओं में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि प्रधानमंत्री का बिहार का दौरा बिहार विधानसभा कि चुनावी तैयारी के मध्य नजर था या फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद जबरदस्त बढ़ाकर अपने गठबंधन को यह विश्वास दिलाना था कि हम सब एक हैं ‌।क्योंकि जिस तरह से इस पूरे दौरे का ताना-बाना बन गया उससे तो यही जाहिर होता है। इस दौरे मैं प्रधानमंत्री ने एक तरह से फिल् वक्त तो साफ कर दिया है कि भाजपा के लिए नीतीश कुमार बड़का और भाजपा उनकेछोटे भाई की भूमिका में ही रहेगी।

2025 के अंत तक उत्तरी राज्यों में महत्वपूर्ण बिहार के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और भाजपा गठबंधन सहित कांग्रेस की पुरी राजनीति अब तपिश पकडती जा रही है। यदि आंकड़ों की भाषा में देखें तो भाजपा पिछले आम चुनाव में 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 74 सीट जीतने में सफल रही थी वही जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश की पार्टी 115 सीटों पर लड़ी थी और उसे 43 सीटों पर सफलता हासिल हुई थी ।यदि इस आंकड़े पर गौर फरमाए तो ज्ञात होगा की सीटों के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी की भूमिका बिहार की राजनीति में बड़े भाई की होना चाहिए जो स्वाभाविक है भी।

मगर बिहार में इसका उलट रहा और 74 सीटें लाने वाली भाजपा ने 43 जीतने वाली जदयू के साथ गठबंधन किया और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनकर एनडीए की सरकार बिहार चला रहे हैं।

इस साल की अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और एनडीए ने अपनी चुनावी विसात बिछाना शुरू कर दिया है। यह इसलिए की देश के चुनावी मैदान में जिस तरह मोदी का सिक्का चल रहा है और हरियाणा ,महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में वह सरकार बनाने में सफल रहे हैं उसी के चलते प्रयास किया जा रहा है कि इस बार बिहार में भी एनडीए का परचम लहराए।

मोदी का हालिया बिहार का दौरा और उस दौरे की स्क्रिप्ट इस बात को इंगित कर रही है कि बिहार का चुनाव हर हालत में जीतना एनडीए की पहली प्राथमिकता में शामिल है। म प्र दौरे के तुरंत बाद मोदी जी का बिहार पहुंचना और भागलपुर में सभा आयोजित करना यह बता रहा है की बिहार और नीतीश कुमार दोनों ही भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

इस बार बिहार से पीएम सम्मान योजना की रकम देश के किसानों के खाते में ट्रांसफर करने का काम करके उन्होंने बिहार की यादव और कुर्मी कृषि समाज को साधने का काम किया है।

मूलत यादव समाज लालू का परंपरागत वोटर माना जाता है। क्योंकि इस योजना का लाभ इस समाज को भी मिलना है तो ऐसा माना जा रहा है कि यादवों के बीच भाजपा के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बन सकता है।

ठीक इसी तरह गोकुल योजना के द्वारा 3 लाख दूध उत्पादकों के लिए बाजार बनाना और जोड़ना यह भाजपा की वो महत्वपूर्ण योजना है जिसके माध्यम से दुग्ध व्यवसाय से जुड़े यादव सहित अन्य सभी समाजों को जोड़ने का काम भाजपा करने जा रही है।ये वो वोटर हैं जो लालू की राजनीति का आधार है।

इसी तरह बिहार मखाने का सबसे बड़ा उत्पादक है और वहां मखाना बोर्ड बनाकर भाजपा ने सटीक निशाना लगाया है कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह मखाने उत्पादन की जानकारी के लिए पानी से भरे खेतों में उतरकर मखाना लगाना सीखा वह इस बात को दर्शाता है कि मोदी सरकार को मखाना उत्पादक किसानों की बहुत चिंता है जो कि बिहार का एक बहुत बड़ा वोट बैंक है।

इस मखाना बोर्ड के माध्यम से भी मोदी ने बिहार में अपने नंबर बेहतर किये हैं इसमें दो मत नहीं है।

इन दिनों एक सवाल राजनीतिक वीथिका में चल रहा है और वह यह की बड़ी पार्टी के बाद भी क्या भाजपा बिहार में छोटे भाई की भूमिका में रहेगी? क्योंकि जिस तरह मोदी ने रोड शो में केवल नितीश को अपने साथ रखा और मंच से उन्हें लाडला मुख्यमंत्री बताया उसने राजनीतिक हलचल तो मचा दी।

अहम प्रश्न यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में ताकतवर होने और लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी बिहार में छोटे भाई की भूमिका में क्यों आना चाहती है तो उसके कई कारण भी है।

वास्तविकता यह है कि भाजपा बिहार में कोई सर्वमान या और सर्व स्वीकार्यता वाला एक भी नेता तैयार नहीं कर पाई जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा सके दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है की आरजेडी बहुत मजबूत स्थिति में बताई जाती है सन 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 75 सीट मिली थी और बीजेपी को 74 सीट मिली थी इसी के चलते बीजेपी कोई जोखिम मोल नहीं रहना चाहती क्योंकि यदि नीतीश के पर कतरे गए तो संभव है राजद उन्हें अपने पाले में लेकर पूरी बाजी ही पलट दे। एक और मुख्य कारण जो बताया जा रहा है वह यह की अकेले भाजपा ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में किसी भी दल का कोई एक ऐसा लीडर नहीं है जो नीतीश की जगह ले पाए नीतीश बिहार में अति पिछड़ी जाति की राजनीतिक करते हैं और वर्तमान में अति पिछड़े बोट बैंक सत्ता की मुख्य चाबी बन चुकी है। इसके चलते भी भाजपा नीतीश पर ही दांव व लगाना पसंद करेगी। इसके अतिरिक्त नीतीश की मुसलमान वोटरों में भी स्वीकार्यता है और उसका थोड़ा बहुत फायदा भाजपा को मिल सकता है ।शायद यही वह कारण है जिसके चलते भाजपा नीतीश को बड़का बनाकर विधानसभा का आम चुनाव लड़ सकती है। मोदी जी के बिहार दौरे के तत्काल बाद नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल का विस्तार करके साथ भाजपा विधायकों को मंत्री बनाकर अपनी ओर से बेहतर समन्वय का संदेश भी दे दिया

बरहाल बिहार की राजनीति और वहां के राजनीतिक हालात इस बायत को बयां कर रहे हैं कि भाजपा विधानसभा चुनाव में चुटकी की भूमिका में ही रहेगी और राज्य में नीतीश के नेतृत्व में ही भाजपा चुनाव लड़ेगी जिस तरह मोदी का करिश्मा और उनका जादू सर चढ़कर बोल रहा है संभव है इसका फायदा बिहार के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले लेकिन इसके दिए उन्हें नीतीश का सहयोग बेहद जरूरी है और शायद यही वह कारण है जिसके चलते जदयू बाद का और भाजपा छोटका की भूमिका में इस बार के चुनाव में बिहार में रहने वाली है ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण हैं)

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