Election: क्या हो सकती है पांच राज्यों के चुनाव की तस्वीर?

डा सी पी राय
एक तरफ विघटन के शिकार रही कांग्रेस ने पहले छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के विवाद को सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बना कर खत्म करा दिया जिसके बाद सिंहदेव ने बयान दिया की चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा तो दूसरी तरफ राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को भी एक साथ खड़ा करने और मिलकर चुनाव अभियान चलाने के लिए तैयार करने में कामयाबी जा फील कर लिया जबकि मध्य प्रदेश में ज्योतिराज सिंधिया के चले जाने से पहले ही गुटबाजी खत्म हो चुकी थी तो दूसरी तरफ भाजपा इन सभी प्रदेशों में जबरदस्त अंतर कलह का शिकार है ।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को किनारे करना तथा अपमानित करना भाजपा को भारी पड़ सकता है।
बड़ी जद्दोजहद के बाद शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह टिकट पाने में कामयाब पर उनके समर्थकों के टिकट काट दिए गए पर वसुंधरा राजे को ये लिखते वक्त तक टिकट नहीं मिला है तथा जनसंघ से भाजपा तक दिग्गज नेता रहे और उप राष्ट्रपति रहे भैरो सिंह शेखावत के दामाद को भी टिकट नहीं मिला है ।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के कई प्रमुख नेताओं ने पिछले दिनों कांग्रेस का दामन थाम लिया है यहां तक कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रभावशाली नेता रहे कैलाश जोशी के पुत्र ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया तो भवर सिंह शेखावत और अरुणोदय चौबे जैसे अपने क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं ने भी कांग्रेस में आना पसंद किया ।
छत्तीसगढ़ ने नंद कुमार साय पहले मध्यप्रदेश के बटवारे के पहले भाजपा के अध्यक्ष थे और छत्तीसगढ़ बनाने के बाद वहां के भाजपा के अध्यक्ष बने और वो सिर्फ भाजपा के बड़े नेता ही नहीं थे बल्कि दोनों प्रदेशों में सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा भी थे वो भी कांग्रेस में शामिल हो गए । ऐसे में तीनो प्रदेशों में भाजपा की राह कटक पूर्ण हो गई है । राजस्थान में वसुंधरा राजे का खेमा क्या फैसला लेगा ये अभी भविष्य के गर्भ में है तो शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा में पहली बार मोदी जी के नेतृत्व को चुनौती दिया है और छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान की खबरे भी कुछ इससे अलग नहीं है ।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अपने शासन से लोकप्रियता हासिल किया है वहा यदि कुछ नाराजगी है तो कुछ जनता के बीच न रहने वाले विधायकों से है पर अगर इन लोगों को चिन्हित कर उनका टिकट बदल दिया गया तो छत्तीसगढ़ सीधे सीधे कांग्रेस की झोली में जाता हुआ दिख रहा है ।
पिछले चुनाव में 90 सीट में कांग्रेस के खाते में 68 जबकि भाजपा को 15 और अन्य के खाते में 7 सीट गई थी । इस बार भी वहां के लोग कांग्रेस को प्लस माइनस 6 सीट मिलने की बात कर रहे है ।
मध्य प्रदेश में तो पिछली बार भी कांग्रेस ही जीती थी पर ज्योतिराज सिंधिया के नेतृत्व हुए दल बदल से सरकार गिर गई थी और उसने वहाँ की जनता ने अपने को ठगा हुआ महसूस किया ।
इस बीच सिंधिया के साथ भाजपा में गए प्रभावशाली लोग लंबे लंबे काफिले के साथ कांग्रेस में वापस आ गए । पिछले समय में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच जो खींचतान दिखाई पड़ी और शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्युत्तर में जो रुख अख्तियार किया उसका व्यापक असर भी मध्य प्रदेश की राजनीति पर दिखाई पड़ रहा है और वो असर नकारतक है ।
वैसे भी भाजपा की सरकार के प्रति एक नाराजगी सब जगह जनता में दिखाई पड़ रही है ।इस वक्त मध्य प्रदेश की 230 सीट में भाजपा के पास 127  तो कांग्रेस के पास 96 सीट है जबकि बाकी अन्य के खाते में है । मध्य प्रदेश के लोगों से बात कर ऐसा लगता है की इस बार भाजपा 70 सीट के आसपास सिमट जाएगी और कांग्रेस पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी।
राजस्थान का इतिहास रहा है की हर बार वहा सत्ता बदल जाती है परन्तु वह दो चीजें एक साथ हुई है । पहली जहा अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के विद्रोह से भी सरकार को बचा लिया था वही पिछले कुछ समय में जनहित के कई बड़े फैसले कर उन्होंने लोकप्रियता भी हासिल किया और खुद को मजबूत नेता भी सिद्ध किया , साथ ही केंद्रीय नेतृत्व के सहयोग से सचिन पायलट को साधने और चुनावी महासमर में साथ रखने और सक्रिय करने में कामयाबी भी हासिल कर लिया जबकि दूसरी बार वसुंधरा राजे लगातार अपने को अपमानित महसूस कर रही है और उन्होंने उसे छुपाया भी नही है।
इन दोनो घटनाक्रम को एक साथ रखकर आकलन करने से ऐसा लगता है की इस बार राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा पर ब्रेक लगने जा रहा है और कांग्रेस का दावा है की वो हर हाल में सरकार बना लेगी । राजस्थान विधान सभा की 200 सीट में पिछले चुनाव में कांग्रेस 100 ,भाजपा 73 ,निर्दलीय 13 तथा बाकी अन्य जीते थे । कांग्रेस का दावा है की वो सरकार बना लेगी जबकि राजस्थान के लोगो का कहना है की यदि भाजपा में कलह नहीं होती तो कांग्रेस के सामने मुश्किल आ सकती थी पर अब वो मुश्किल दूर होती दिखलाई पड़ रही है ।
तेलंगाना में बड़ा उठापटक दिखाई पड़ रहा है ।
राहुल गांधी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कई दिन तेलंगाना में बिताया था और उसका व्यापक असर इधर दिखाई पड़ा जब दूसरे दलों के कई दिग्गजों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया ।
कांग्रेस ने तेलंगाना को लेकर आक्रामक रवैया अपनाया और अपनी कार्यसमिति को बैठक वही किया और फिर समापन पर रैली भी । तब से कांग्रेस ने तेलंगाना में पूरी ताकत झोंक रखा है ।
यदि भीड़ को पैमाना माना जाए तो कांग्रेस के कार्यक्रमों में और खासकर राहुल गांधी के कार्यक्रमों में जनसैलाब उमड़ रहा है । सत्ताधारी पार्टी के खाते में तेलंगाना आंदोलन और गठन है तो सत्ता में भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद भी है तथा एंटी इंकम्बेंसी भी है पर उमड़ती भीड़ से कांग्रेस उत्साहित है । परिणाम तो 3 दिसंबर को पता लगेगा लेकिन कांग्रेस मान चुकी है की वो वहा सरकार बना रही है ।
तेलंगाना विधान सभा की 119 सीट में पिछले चुनाव में सत्ताधारी तेरस को 90 जबकि कांग्रेस को केवल 13 सीट मिली थी और बाकी अन्य के खाते में गई थी । देखना ये है की कांग्रेस की रैलियों में जुटी भीड़ उसे सत्ता में पहुंचा देती है या तेरस सारी बुराइयों और एंटी इंकम्बेंसी के बावजूद अपना किला बचा लेती है। वहा के सूत्र कांग्रेस की तरफ झुके हुए दिखाई पड़ते है और अगर ये जीत होती है तो दक्षिण में कर्नाटक के बाद ये कांग्रेस की दूसरी बड़ी कामयाबी होगी ।
मिजोरम इकलौता नॉर्थ ईस्ट का राज्य है जहां मणिपुर की घटना के बाद चुनाव है ।मणिपुर की घटनाओं ने क्या नॉर्थ ईस्ट की राजनीति को भी प्रभावित किया है ? क्या भाजपा की सत्ता को लेकर पूरे नॉर्थ ईस्ट में कोई उल्टा प्रभाव पड़ा है इसका एक पैमाना भी साबित हो सकता है मिजोरम ।
मिजोरम लंबे समय तक कांग्रेस शासित राज्य रहा है । मिजोरम की विधान सभा की 40 सीट में एम एन एफ को 27 सीट है जबकि भाजपा की 1 और जेड पी एम की 6 सीट है तो कांग्रेस की 5 और 1 सीट टी एम सी की भी है । इस कांग्रेस वहा सत्ता में आने के लिए हाथ पैर मार रही है और ऐसा लगता है कि गठबंधन के साथ कांग्रेस वहाँ  इस बार सरकार बना सकती है बाकी परिणाम का इंतजार तो करना ही होगा ।
ये चुनाव इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की देश के अलग अलग हिस्सों में 5 विधानसभा के चुनाव हो रहे है जिसमे नॉर्थ ईस्ट है तो दक्षिण भी और उत्तर भारत के तीन वो प्रदेश भी है जिसमे काफी समय से भाजपा भी बहुत प्रभावशाली है और इन प्रदेशों में पिछले लोकसभा चुनाव में अधिकांश लोकसभा सीट भाजपा ही जीती थी ।
केवल मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही 65 लोकसभा सीट है जबकि तेलंगाना 17 लोकसभा सीट है । इसलिए  इस चुनाव को लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मिनी आम चुनाव भी माना जा सकता है ।याद्दपी पिछले चुनाव में प्रदेशों के कांग्रेस के जीत  के बावजूद लोकसभा चुनाव में पुलवामा और बालाकोट की छाया में अधिकतर लोकसभा सीट भाजपा ने जीत लिया था पर 2019 से 2024 में राजनीति की गंगा में काफी पानी बह चुका है ।
पर एक बात साफ है की केंद्र और राज्य की भाजपा की सरकार के खिलाफ विपक्ष माहौल बनाने में कामयाब होता दिख रहा है और इंडिया गठबंधन के रूप में एक मजबूत विकल्प और चुनौती पेश करने में कामयाब होता दिख रहा है ।
(स्वतंत्र राजनीतिक विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार)

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