Himachal : मतदान बढ़ा तो सरकार बदल गई, इस बार वोटिंग घटने का क्या मतलब?

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों पर शनिवार को मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई। चुनाव आयोग के मुताबिक, कुल 74 फीसदी से अधिक लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। आमतौर पर यहां दो पार्टियों के बीच ही यहां लड़ाई होती है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने भी एंट्री की थी। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही हुई है।

आजादी के बाद लंबे समय तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही। 1977 में पहली बार हिमाचल में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। तब जनता पार्टी के शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। 1990 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार ही मुख्यमंत्री बने। 1990 से ही हर बार राज्य में सत्ता बदल जाती है और एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की जीत होती रही है।

पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये काफी रोचक हैं। 2007, 2012 और फिर 2017 में हुए चुनाव में हर बार मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। लेकिन इस बार वोटिंग प्रतिशत में मामूली गिरावट हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मतदान कम होने का क्या मतलब है? इसका किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? आइए जानते हैं…

वोटिंग प्रतिशत बढ़ने का किस पार्टी पर क्या असर पड़ा? 
2003 चुनाव में हिमाचल के अंदर कुल 74.5% फीसदी वोट पड़े थे। तब कांग्रेस का वोट शेयर 41 प्रतिशत था, जबकि भाजपा का 35.4 फीसदी। कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। 2007 में इसमें 2.9 फीसदी की गिरावट हुई। तब भाजपा का वोट शेयर 35 प्रतिशत से बढ़कर 43.8 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 41% से घटकर 38.9% पर आ गया। कांग्रेस को 2.1 प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हुआ और भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।

अब बात 2012 चुनाव की करते हैं। तब कुल 72.7% प्रतिशत लोगों ने वोट किया था। 2007 के मुकाबले इसमें 1.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। तब सत्ताधारी भाजपा के वोट शेयर में 5.3 फीसदी की कमी आई थी, वहीं कांग्रेस को 3.9 प्रतिशत वोट शेयर का फायदा मिला। भाजपा का ओवरऑल वोटिंग शेयर 38.5 प्रतिशत था और कांग्रेस का 42.8 प्रतिशत।

2017 में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिला। कुल मतदान में 2.87 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। इनमें से 48.8 प्रतिशत भाजपा और 41.7 प्रतिशत कांग्रेस को वोट मिले थे। अब 2012 के आंकड़ों की तुलना 2017 से करें तो इसमें कांग्रेस के वोट शेयर में महज एक प्रतिशत का नुकसान हुआ था, लेकिन भाजपा ने अपने वोटिंग शेयर में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा करके सत्ता में वापसी की।

इस बार वोटिंग कम होने से किसे होगा फायदा? 
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई रही है। यहां की जनता पांच साल कांग्रेस तो पांच साल भाजपा को मौका देती रही है। विपक्षी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आती है, तो सत्ताधारी पार्टी को काफी सीटों का नुकसान उठाना पड़ता है।’

15 साल बाद ऐसा हुआ है, जब मतदान में कमी आई है। 2017 में 75.57 फीसदी लोगों ने वोट डाला था, जबकि इस बार 74.05 फीसदी अधिक वोटिंग हुई है। सत्ताधारी पार्टी उम्मीद करेगी की उसे इसका फायदा मिलेगा। क्योंकि वोटिंग घटने का लाभ सत्ताधारी पार्टी को ही मिलता है। हालांकि, पहले भी ऐसा हुआ है, जब मतदान घटने के बावजूद सरकार बदल गई है। उदाहरण के लिए 2007 के नतीजे देख सकते हैं। 2003 में 74.5 फीसदी मतदान हुआ था और कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, लेकिन 2007 विधानसभा चुनाव में 2.9 फीसदी वोट कम पड़े। इसके बावजूद सत्ता बदल गई और भाजपा का राज आ गया।

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