बुखारेस्ट। यूक्रेन पर रूस के हमले के तीसरे दिन वहां फंसे भारतीय छात्रों को घर वापसी की उम्मीद जागी है। मुंबई से एअर इंडिया का विमान AI-1943 भारतीयों को निकालने रोमानिया के बुखारेस्ट पहुंच गया है। बुखारेस्ट एयरपोर्ट पर छात्रों की बोर्डिंग शुरू हो गई है। विमान में बैठकर भारतीय खुश नजर आए। कुछ ही देर में एअर इंडिया का यह विमान छात्रों को लेकर भारत के लिए उड़ान भरेगा।
भारतीय राजदूत नगमा मल्लिक ने कहा कि दूतावास ने तीन टीमों का गठन किया है। ये टीमें भारतीयों को पश्चिमी यूक्रेन से बाहर निकलने में सहायता करेंगी। सभी फंसे हुए भारतीयों को पोलैंड ले जाया जाएगा, वहां से भारत भेजने की व्यवस्था की जाएगी।
यूक्रेन की इंडियन एम्बेसी ने एडवाइजरी जारी करके वहां फंसे भारतीयों से कहा है- सीमा पर तैनात भारतीय अधिकारियों से समन्वय के बिना सीमा की तरफ न निकलें। पश्चिमी शहरों में खाने पीने की चीजों के साथ जहां है वहां बने रहना बेहतर है। बिना कोआर्डिनेशन के बॉर्डर पर पहुंचने से परेशानी उठानी पड़ सकती है। पूर्वी इलाके में अगले निर्देश तक घरों के अंदर या जहां पनाह लिए हैं वहीं रहें।
इस बीच बंकरों और रेस्क्यू सेंटर्स में समय गुजार रहे भारतीय छात्र कहीं चटाई बिछाकर सोने को मजबूर हैं, तो कहीं उन्हें पेटभर खाना भी नहीं मिल रहा। उनकी वापसी के लिए भारत सरकार द्वारा फ्लाइट्स भेजी जा रही हैं। एयरपोर्ट तक पहुंचने के लिए छात्रों को बसों से ले जाया जा रहा है। ये छात्र हाथों में झंडा थामें बसों में सवार हो रहे हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध में राजधानी कीव में बमबारी के बाद अब वेस्ट यूक्रेन के शहर लवीव में हालात बिगड़ रहे हैं। यहां भी 800 इंडियन स्टूडेंट हैं। जो वतन वापसी के लिए पोलैंड बॉर्डर से 36 किलोमीटर पहले बनाए गए कैंप में पहुंच गए हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए स्टूडेंट को कड़ाके की ठंड में करीब 36 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। यहां मौजूद राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले स्टूडेंट देव पुरोहित ने शुक्रवार देर रात 3 बजे (भारतीय समय) पौलेंड बॉर्डर के हाल बताए।
उन्होंने बताया- पूरे रास्ते खतरा, इसलिए एनओसी पर साइन करवाए पोलैंड बॉर्डर के नजदीक पहुंचे सभी स्टूडेंट्स लवीव यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रहे हैं। देव ने बताया कि शुक्रवार को वतन वापसी मूवमेंट शुरू हो चुका है। हमें सूचना मिली कि एम्बेसी से सबसे पहले एक बस लवीव से रवाना की जा रही है।
हमें यह उम्मीद बनी कि हम भी यहां से निकल सकते है। हम बस पर पहुंच गए। हमें एक फॉर्म भरवाकर एनओसी पर साइन करवाया गया कि आप अपनी रिस्क पर यहां से निकल रहे हैं। हमने एनओसी साइन कर दी। शाम को दस से पंद्रह कारें भारतीय झंडे लगे हुए आईं और हॉस्टल से हमें निकालकर पोलैंड बॉर्डर की ओर लेकर रवाना हो गईं।
रूस-यूक्रेन में सबसे ज्यादा प्रभावित लुहांस्क से एक दिन पहले ही मैं कीव पहुंची थी। कीव के रास्ते में थी, तभी युद्ध के बारे में जानकारी मिली। कीव के रेलवे स्टेशन पहुंची तो यहां हालात और खराब मिले। हर जगह अफरा-तफरी का माहौल था। 5 घंटे इंतजार करने के बाद बड़ी मुश्किल से टैक्सी मिली। हम इंडियन एम्बेसी जाना चाहते थे, लेकिन हालात इतने खराब हो गए थे कि एम्बेसी पहुंच ही नहीं पाए।
हमारे पास रुकने के लिए कोई जगह नहीं थी। टैक्सी ड्राइवर ने ही हमें अपने एक परिचित के घर किराए से एक कमरा दिलवाया। इस दौरान हमने लगातार इंडियन एम्बेसी फोन किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। जिस जगह हम एक दिन रुके थे, उसके आसपास कई बार धमाकों की आवाजें आ रही थी। हमारी बिल्डिंग के बिल्कुल बगल में यूक्रेनी सेना का कोई दफ्तर था। शाम होते-होते सेना के दफ्तर के आगे यूक्रेन की सेना का जमावड़ा होने लगा। रात भर वहां जवानों का आना-जाना लगा रहा।
सुबह होते ही हमने फिर एम्बेसी को फोन ट्राई किया। हमें खबरें मिल रही थी कि रूसी सेना कीव की तरफ बढ़ रही है, इससे हमारी धड़कनें और बढ़ती जा रही थी। हमारे रूम से एम्बेसी करीब 11 किमी दूर थी। बड़ी मुश्किल से एक टैक्सी मिली। हम एम्बेसी पहुंचे ही थे कि पता चला कि रूस ने अटैक करके यूक्रेनी सेना के उस दफ्तर को तहस-नहस कर दिया। ये सुनकर तो हम कांप गए और भगवान का शुक्रिया भी अदा किया कि ठीक समय पर वहां से निकल गए।
यह स्कूल 3 फ्लोर का है। शुरू में दो ही फ्लोर ओपन किए गए, स्टूडेंट्स की भीड़ बढ़ी तो तीसरा फ्लोर भी खोल दिया गया। इस स्कूल में भारत के करीब 1 हजार स्टूडेंट्स ने शेल्टर लिया हुआ है। एम्बेसी ने ही स्टूडेंट्स के खाने-पीने की व्यवस्था की, लेकिन भीड़ बढ़ती गई तो खाना भी कम पड़ गया। अभी हालत यह है कि कई लोग बालकनी में चटाई बिछाकर बैठे हुए हैं। हॉल में भी इतनी भीड़ है कि पैर रखने की जगह नहीं है।
शनिवार सुबह गोपालगंज के रिजवान समेत 18 भारतीय छात्र इवानो से हंगरी बॉर्डर पहुंच गए हैं। लेकिन, हंगरी बॉर्डर पर गाड़ियों की लंबी कतार के कारण उन्हें एंट्री नहीं मिल रही है। छात्रों ने वीडियो जारी कर भारतीय दूतावास से अपील की है। मेडिकल स्टूडेंट रिजवान ने बताया कि 700 किलोमीटर का सड़क मार्ग का सफर तय कर इवानो से पहुंचे हैं।
भारतीय समय के अनुसार सुबह 7:00 बजे वे लोग बॉर्डर पर पहुंच चुके थे। लेकिन, गाड़ियों की लंबी कतार के कारण उन्हें 1.5 घंटे से इंतजार करना पड़ रहा है। हंगरी बॉर्डर पर कड़ी निगरानी के बीच एंट्री दी जा रही है। लेकिन, निराश रिजवान ने बताया कि भारतीय दूतावास का कोई भी अधिकारी वहां मौजूद नहीं है। लिहाजा भारतीय मूल के छात्रों को एंट्री नहीं मिल पा रही है। वहां अभी लगभग -2 डिग्री सेल्सियस तापमान है।