चंडीगढ़। सभी 23 फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने की केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान की घोषणा से यह मुद्दा एक बार फिर केंद्रीय राजनीति में उभर आया है। अब बहस छिड़ गई है कि केंद्र सरकार के लिए सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदना कितना सरल होगा?
बीते नौ महीनों से धरने पर बैठे किसान संगठनों की दृष्टि में ‘लीगल गारंटी प्रोक्योरमेंट’ कानून बनाए बिना केंद्रीय कृषि मंत्री की घोषणा का कोई अर्थ नहीं है। अनशन पर बैठे ‘भारतीय किसान यूनियन’ के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनुसार यदि केंद्र सभी फसलें एमएसपी पर खरीदने को तैयार है तो उसे गारंटी कानून बनाने में क्या समस्या है?
कानून बनाने के लिए लाया जाए बिल: सरवन सिंह पंढेर
वहीं ‘किसान मजदूर संघर्ष कमेटी’ के प्रधान सरवन सिंह पंढेर का कहना है कि शिवराज चौहान के इस बयान का स्वागत तो है परंतु संसद का सत्र चल रहा है, वह गारंटी कानून बनाने का बिल सदन में ले आएं, सारी समस्या समाप्त हो जाएगी।
सीएसीपी और एमएसपी के फॉर्मूले पर भी पेंच मौजूदा समय में ‘खेती लागत एवं मूल्य आयोग’ (कमिशन फार एग्रीकल्चर कास्ट एंड प्राइसिस-सीएसीपी) सभी फसलों का एमएसपी निर्धारित करता है।जब फसल मंडियों में आती है तो व्यापारी गठजोड़ (कार्टेल) बनाकर एमएसपी से कम दामों पर फसल खरीदते हैं और सीजन निकलने के बाद फसल को महंगे भाव पर बेचते हैं।
किसान इसलिए कानूनी एमएसपी की गारंटी और सीएसीपी के मूल्य निर्धारण प्रणाली में बदलाव की मांग कर रहे हैं। एमएसपी के फॉर्मूले पर भी पेंच फंस सकता है। केंद्र सरकार इस समय ए2+एफएल, 50 टन लाभ देती है, जबकि किसानों की मांग सी2+50 टन लाभ की है।किसान अपने निवेश पर ब्याज व डेप्रिसिएशन (टूट-फूट व घिसाव) का मूल्य भी चाहते हैं। किसान नेता शिंगारा सिंह मान कहते हैं कि हर वर्ष हमारी मशीनरी खराब होती है, कुछ वर्षों बाद हमें नई खरीदनी पड़ती है, क्या उसकी कीमत हम अपनी फसल की कीमत में नहीं जोड़ेंगे?
भावांतर योजना से घट सकता है केंद्र सरकार पर वित्तीय बोझ
एमएसपी पूरी तरह लागू करने पर केंद्र सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को लेकर कृषि अर्थशास्त्रियों में मतभिन्नता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का आकलन 10 लाख करोड़ रुपये के आसपास का है, तो कुछ के अनुसार केंद्र का काम 20 हजार करोड़ रुपये में ही चल जाएगा। इनका तर्क है कि केंद्र सरकार गेहूं व धान को ही राशन (पीडीएस) में देती है।शेष फसलें तो आम लोग पैसा देकर ही खरीदते हैं। उनका कहना है कि जब व्यापारी एमएसपी से कम मूल्य पर खरीदारी करते हैं तो मूल्य के अंतर की भरपाई केंद्र सरकार को किसानों को करनी पड़ेगा। इसे वह भावांतर योजना कहते हैं जिसपर कर्नाटक, हरियाणा सहित कुछ प्रदेशों ने काम शुरू किया है।कर्नाटक अपनी सरकारी योजनाओं के लिए आवश्यक अनाज मंडियों से लेता है। यदि व्यापारी निर्धारित एमएसपी से कम पर खरीदते हैं तो ये राज्य मूल्य के अंतर की भरपाई करके स्वयं एमएसपी पर खरीद कर लेते हैं और अनाज अपनी योजनाएं चलाने में दे देते हैं।