‘द बिग बुल’ फ़िल्म में एक दृश्य है। मुख्य किरदार हेमंत शाह की आभा में लोटमलोट एक व्यक्ति उसे स्टॉक एक्सचेंज के ‘अमिताभ बच्चन’ का विशेषण देता है, क्योंकि जिस तरह उस वक़्त फ़िल्म इंडस्ट्री में बिग बी का कोई सानी नहीं था, उसी तरह शेयर बाज़ार में बिग बुल के दिमाग़ को टक्कर देने वाला कोई दूसरा नहीं था। शेयर बाज़ार के इस दलाल (ब्रोकर) की टिप के ज़रिए जिन लोगों ने अपने वारे-न्यारे किये, उनके लिए वो किसी हीरो से कम नहीं था।
शेयर बाज़ार की समझ का जलवा ऐसा कि लिफ़्ट में खड़े-खड़े लिफ़्टमैन को ऐसी टिप दे दी कि उसकी क़िस्मत ही ‘लिफ़्ट’ हो गयी और साहबों को ऊपर-नीचे ले जाना वाला बंदा ख़ुद अपनी गाड़ी का मालिक़ बन बैठा। ऐसे जलवानशीं दलाल या ब्रोकर हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन ऐसे डूबे कि पूरी फ़िल्म अपने नाम कर ले गये और अपनी फ़िल्मोग्राफी में एक ऐसी फ़िल्म जोड़ ली, जिसमें उनकी अदाकारी को नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं होगा।
कूकी गुलाटी के निर्देशन में बनी ‘द बिग बुल’ गुरुवार को डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ कर दी गयी। नब्बे के दौर में हुए स्टॉक मार्केट घोटाले से प्रेरित फ़िल्म होने की वजह से यह लगभग तय हो गया था कि इसे हंसल मेहता की बहुचर्चित वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ की कसौटी पर कसा जाएगा। मगर, ऐसा करना फ़िल्म के साथ अन्याय होगा। फ़िल्म की अपनी सीमाएं होती हैं, जो वेब सीरीज़ के फैलाव का मुक़ाबला नहीं कर सकतीं। इसीलिए, ‘स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी’ को वहीं रहने देते हैं, जहां वो है। हम आगे बढ़ते हैं।
द बिग बुल’ की कहानी मोटे तौर पर आप सब जानते हैं। नब्बे के दशक में जो पीढ़ी इतनी समझदार हो चुकी थी कि रोज़ अख़बार पढ़ती हो, उसे ‘द बिग बुल’ की कहानी का बहुत गहरा नहीं, मगर सतही अंदाज़ा ज़रूर होगा। कम से कम 5000 करोड़ के उस घोटाले के बारे में तो ज़रूर जानते होंगे, जो इस फ़िल्म की कहानी की मुख्य प्रेरणा है।
‘द बिग बुल’ मूल रूप से मुंबई की एक चॉल में रहने वाले गुजराती हेमंत शाह के फर्श से अर्श और फिर अर्श से वापस फर्श पर पहुंचने की कहानी है। हेमंत भी वैसे ही है, जैसे भारत के किसी निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का कोई बड़ा बेटा होता है। परिवार की ज़िम्मेदारियों का बोझ कोई छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए मजबूर तो कर देता है, मगर उन सपनों का क्या, जो उसने अपने लिए देखे हैं। आख़िर कब तक वो अपने ख़्वाबों को किसी ऐसी नौकरी के लिए कुर्बान करता रहेगा, जिससे अपनी प्रेमिका के पिता की शर्तों को भी पूरा ना कर सके और फिर दिमाग़ दौड़ने वाला हो तो ख़्वाहिशों पर लगाम कैसे लगे!
हेमंत को अपने सपनों की ताबीर शेयर बाज़ार में नज़र आती है। मगर, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का प्रतिष्ठित ‘दलाल’ बनने के लिए भरी हुई जेब के साथ दिखाने के लिए सूट-टाई भी चाहिए होता है। साधारण शर्ट-पैंट पहनने वाले आदमी को भला कौन पैसा देगा? बैंक भी नहीं! बस यहां हेमंत का दिमाग़ चलता है। बैंकिंग सिस्टम के कुछ छेदों को तलाशकर वो अपनी ज़िंदगी तराशने निकलता है। हेमंत की नज़रों में यह ग़ैरक़ानूनी नहीं है, क्योंकि इन छेदों को बंद करने के लिए तब तक कोई क़ानून नहीं था।
हेमंत स्टॉक एक्सचेंज का सबसे बड़ा ब्रोकर बन जाता है। अजी, ब्रोकर क्या बनता है, पूरा स्टॉक एक्सचेंज ही उसके इशारे पर नाचने लगता है। बड़े-बड़े बिज़नेसमैन अपने शेयर के भाव बढ़वाने के लिए हेमंत ‘भाई’ की शरण में पहुंचते हैं। उभरते और दमकते चेहरे सियासत को भी आकर्षित करते हैं। सियासी साथ मिलने से हेमंत भाई का इक़बाल और बुलंद होता है। इतना बुलंद कि हेमंत भाई अब देश के पहले बिलियनरे यानी अरबपति बनने का ख़्वाब देखने लगते हैं, मगर हेमंत शाह के सोने की चमक कई आंखों को चुभती है और यही आंखें उसे नीचे गिराने का काम करती हैं।
अति-आत्मविश्वासी और रफ़्तार का शौक़ीन हेमंत शाह अपनी अकड़ में छोटे भाई वीरेन शाह की चेतावनियों को भी नज़रअंदाज़ करता चला जाता है। वीरेन, हेमंत की रफ़्तार थामने के लिए एक ऐसा क़दम उठाता है, जो उसके अंत का आरम्भ बन जाता है। आख़िरकार, हेमंत हर तरफ़ से घिरने लगता है। बैंकिंग सिस्टम के जिन छेदों का इस्तेमाल हेमंत ने अपनी तिजोरी भरने के लिए किया, वो पकड़ में आ जाता है और यहीं से उसके पतन की कहानी शुरू हो जाती है, जो गुमनाम मौत पर जाकर ख़त्म होती है।
‘द बिग बुल’ की कथा-पटकथा कूकी गुलाटी और अर्जुन धवन ने लिखी है। कथा में तो कुछ नया नहीं है, मगर पटकथा के साथ लेखकों ने खेल खेला है। हेमंत शाह की कहानी को सेलिब्रेटेड बिज़नेस जर्नलिस्ट मीरा राव के नैरेशन के रूप में दिखाया है, जो हेमंत की सलाह पर उसकी बायोपिक ‘द बिग बुल’ लिखती है और 2020 में एक कार्यक्रम में मैनेजमेंट के स्टूडेंट्स को सुनाती है।
मीरा राव ही वो जर्नलिस्ट है, जिसने हेमंत शाह के घोटाले से पर्दा उठाया था। ‘द बिग बुल’ की पटकथा शुरुआती दृश्यों में थोड़ा चकरा देती है, क्योंकि बहुत तेज़ी से कालखंड बदलती है। नब्बे से अस्सी के दशक में पहुंचती और वापस आती है। मगर, जैसे-जैसे हेमंत शाह का गेम शुरू होता है, कहानी दर्शक को पकड़ लेती है।
हेमंत शाह के किरदार की पूरी यात्रा को अभिषेक बच्चन ने दिल से जीया है। आर्थिक तंगी के मारे हेमंत शाह से लेकर देश के सबसे अमीर लोगों में शामिल होने वाले हेमंत शाह के किरदार के ग्राफ को अभिषेक ने अपनी शारीरिक भाषा और हाव-भाव से जीवंत किया है। इस किरदार के शांत स्वभाव, शातिर दिमाग़ और सामने वाले को भेदती आंखों को अभिषेक ने अपना बना लिया है।
मीरा राव के किरदार में इलियाना डिक्रूज़ जंची हैं। हेमंत शाह की पहले प्रेमिका और फिर पत्नी के किरदार में निकिता दत्ता ख़ूबसूरत लगी हैं, मगर अभिषेक के साथ उनकी उम्र का फ़ासला अखरता है। हेमंत के छोटे भाई वीरेन शाह के रोल में सोहम शाह ने अच्छा काम किया है। इस कहानी में उनका किरदार बेहद अहम है।
हेमंत और वीरेन की मां के किरदार में सुप्रिया पाठक के दृश्यों को थोड़ा और इंटेंस बनाया जा सकता था। ‘द बिग बुल’ आर्थिक-थ्रिलर फ़िल्म है, जिसमें गाने फ़िल्म की रवानगी को प्रभावित करते हैं। अब समय आ गया है कि बॉलीवुड को हर कहानी के बीच में गानों को ठूसने के चलन और लालच से बचना चाहिए।
‘द बिग बुल’ की एक और बात तो खटकती है, इसका मैसेज। फ़िल्म को सोशल मीडिया में यह कहकर प्रचारित किया गया कि ‘कल से बड़ा सोचो।’ मगर, जब ‘द बिग बुल’ ख़त्म होती है, तो ज़हन में सवाल उठता है- बड़ा सोचने की कीमत क्या गुमनाम मौत के रूप में चुकानी होगी? बड़ा सोचने पर हेमंत शाह की तरह अंजाम भला कौन चाहेगा? ख़ैर, फ़िल्म ही तो है। ज़्यादा सीरियसली मत लीजिए।
‘द बिग बुल’ स्टॉक एक्सचेंज घोटाले के मास्टरमाइंड को विलेन के बजाय मानवीय दृष्टिकोण से देखने के लिए मजबूर करती है। फ़िल्म का क्लाइमैक्स आपको इस सवाल के साथ छोड़ जाता है कि हेमंत शाह हीरो था या विलेन या इन दोनों के बीच कोई ऐसा शख़्स, जो बस अच्छी ज़िंदगी चाहता था।
कलाकार- अभिषेक बच्चन, इलियाना डिक्रूज़, निकिता दत्ता, सोहम शाह, सुप्रिया पाठक, महेश मांजरेकर, सौरभ शुक्ला, राम कपूर आदि।
निर्देशक- कूकी गुलाटी
निर्माता- अजय देवगन, आनंद पंडित।
स्टार- *** (3 स्टार)