पटना। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अचानक से लालू यादव और कांग्रेस से नाता तोड़ा लिया था और फिर से बीजेपी के साथ जाकर फिर से सरकार बना ली और नौवीं बार मुख्यमंत्री बन गए है लेकिन उनको अभी बहुमत साबित करना होगा।
स्थानीय मीडिया की माने तो 12 फरवरी को उन्हें विधानसभा में बहुमत हासिल करना है। ऐसे में एनडीए और आरजेडी के विधायक पटना में मौजूद है लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अपने विधायको को वहां से वापस बुला लिया और हैदराबाद में शिफ्ट कर दिया है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के सभी विधायकों को विश्वास प्रस्ताव से एक दिन पहले पटना लाया जायेगा।
आखिर विधायकों के टूटने की आशंका के पीछे कोई बड़ा सियासी खेल भी होने की बात कही जा रही है। तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार के पाला बदलने पर तीखा हमला बोला था और कहा था कि अभी खेल होना बाकी है। दूसरी तरफ कांग्रेस अपने विधायकों को टूटने से बचाना चाहती है क्योंकि इससे पहले मध्यप्रदेश और गोवा से लेकर मणिपुर तक कांग्रेस के विधायक टूट चुके और उसकी सरकार जाती रही है। इतना ही नहीं पार्टी तक टूट जाती है।
इस वजह से कांग्रेस इस बार सावधानी बरत रही है। उसने पहले झारखंड ने अपने विधायकों को एकजुट रखा और अब वो बिहार में अपने विधायकों को टूटने से बचाना चाहती है।
इसके अलावा बीजेपी ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपने दल में शामिल कराने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया है, जो दूसरे दलों को अपने दल में शामिल करने के लिए लगा रहता है।
इस वजह से कांग्रेस अपने दल को बचाने के लिए इस तरह का कदम उठाती है। अगर बिहार की स्थिति पर गौर करे तो नीतीश कुमार बहुमत असानी से साबित कर देंगे क्योंकि संख्या का संकट नहीं है लेकिन कांग्रेस चाहती है कि उसकी पार्टी में किसी तरह की तोडफ़ोड़ न हो।
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस चाहती है उसकी पार्टी बिहार में एकजुट रहे। अपने नेताओं के पाला बदलने से रोकने के लिए अपने विधायकों को दूसरी जगह शिफ्ट करने में विश्वास रखती है।