पश्चिम में सपा ने साधा जाट-मुस्लिम समीकरण; रालोद को आर-पार की चुनौती देने की तैयारी

लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और जयंत चौधरी अलग हो चुके हैं। जयंत बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन NDA के साथ चले गए हैं। उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) पश्चिमी यूपी में I.N.D.I.A का सहारा थी। अखिलेश ने तो उनको 7 सीटें भी दे दी थी, लेकिन जयंत को अखिलेश का ऑफर पसंद नहीं आया।

जयंत के जाते ही अखिलेश ने भी RLD के खिलाफ बगावती तेवर दिखाए हैं। पश्चिमी यूपी में अखिलेश जाट, मुस्लिम समीकरण साधकर RLD को चुनौती देने उतर चुके हैं। सपा ने पश्चिमी यूपी में फिलहाल 3 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं।

इसमें जाट चेहरे हरेंद्र मलिक को मुजफ्फरनगर सीट से प्रत्याशी बनाया है। वहीं, कैराना और संभल से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। पिछड़ों के अलावा सपा जाट, मुस्लिम का समीकरण साधकर RLD को कड़ी टक्कर देगी।

वेस्ट यूपी की 3 बड़ी सीटों पर सपा ने उतारे प्रत्याशी

2022 के यूपी चुनाव में जयंत और अखिलेश साथ आए थे।
2022 के यूपी चुनाव में जयंत और अखिलेश साथ आए थे।

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सपा ने यूपी में अब तक 31 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की है। इसमें पश्चिमी यूपी की 3 सीटों पर भी पार्टी अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। मुजफ्फरनगर से सपा के पुराने नेता और जाट चेहरा हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बनाया है।

वहीं, संभल लोकसभा सीट से पार्टी ने मुसलमान चेहरा वर्तमान सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को दोबारा प्रत्याशी बनाया है। कैराना से वर्तमान विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को उतारा है।

इकरा भी मुसलमानों में काफी चर्चित चेहरा हैं। तीनों प्रत्याशी राजनीति के पुराने जानकार और खानदानी तौर पर पॉलिटिक्स से जुड़े हुए हैं। जिनका अपना क्षेत्र में मजबूत वोट बैंक है।

मुजफ्फरनगर सीट पर चला जाट दांव

हरेंद्र मलिक जाट महासभा से लेकर बिरादरी और खाप में चर्चित चेहरा हैं।
हरेंद्र मलिक जाट महासभा से लेकर बिरादरी और खाप में चर्चित चेहरा हैं।

एनडीए में गए रालोद के समीकरणों को फेल करने के लिए अखिलेश ने सबसे बड़ा दांव मुजफ्फरनगर सीट पर चला है। यहां से जाट चेहरा और पुराने नेता हरेंद्र मलिक को टिकट दिया है। हरेंद्र मलिक चरथावल से वर्तमान विधायक पंकज मलिक के पिता हैं। वह मुलायम सिंह यादव और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह के जमाने से राजनीति से जुड़े हैं।

हरेंद्र मलिक पूर्व सांसद हैं। खतौली, बघरा से विधायक रहे हैं। 2022 में हरेंद्र मलिक कांग्रेस छोड़कर सपा में आए। हरेंद्र मलिक ने गांव से लेकर जिला और संसद तक राजनीति की है। क्षेत्र में उनका बड़ा प्रभाव माना जाता है। उनका असर जाट वोट बैंक के साथ मुसलमानों में भी है।

इसी मुजफ्फरनगर सीट को लेकर रालोद, सपा में तनातनी हुई थी। सीट न मिलने पर जयंत ने सपा का साथ छोड़ दिया। रालोद के प्रभाव वाली सीट पर अखिलेश ने पुराने जाट चेहरे को टिकट देकर भाजपा और रालोद की परेशानी बढ़ा दी है।

अपने लिए यह सीट चाहते थे जयंत

जयंत खुद मुजफ्फरनगर और बागपत से पत्नी चारु को चुनाव में उतारना चाहते थे।
जयंत खुद मुजफ्फरनगर और बागपत से पत्नी चारु को चुनाव में उतारना चाहते थे।

दरअसल, सपा-रालोद गठबंधन में जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर सीट की मांग कर रहे थे। रालोद लगातार इस सीट पर अपना दावा बनाए हुए थी। लेकिन जयंत के एनडीए में जाने की पुरानी चर्चाओं के बीच अखिलेश यादव मुजफ‌फरनगर सीट पर अपना कैंडिडेट उतारना चाहते थे।

अखिलेश यह सीट कतई रालोद प्रत्याशी को नहीं देना चाहते थे। उन्होंने यह ऑफर दिया कि रालोद के सिंबल पर सपा नेता इस सीट पर चुनाव लड़ेगा। लेकिन जयंत खुद इस सीट से चुनाव लड़ने की मांग कर रहे थे। अपने पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अजीत सिंह की सीट बताकर जयंत मुजफ्फरनगर सीट चाह रहे थे।

अखिलेश अपने जाट नेताओं को मजबूत बनाने के कारण यह सीट देने को राजी नहीं थे। यहीं दोनों दलों में बात बिगड़ी और जयंत ने अलग राह चुन ली। अखिलेश ने जाट बाहुल्य इस सीट पर सपा के जाट नेता के जरिए जाट वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए हरेंद्र मलिक को टिकट दे दिया।

मुलायम सिंह यादव संभल से रहे सांसद

राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क।
राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क।

संभल सपा की पुरानी सीट है। खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव इस सीट पर 2 बार चुनाव जीत चुके हैं। मुलायम सिंह यादव के भाई रामगोपाल यादव भी एक बार संभल से सांसद रहे हैं। हालांकि 2014 में मोदी लहर में ये सीट भाजपा को चली गई।

सत्यपाल सिंह सैनी ने जीत दर्ज कराई। लेकिन डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क इस सीट पर बसपा से सांसद रहे हैं। तुर्क बिरादरी के वोटरों में बर्क की मजबूत पकड़ है। बर्क संसद में सबसे बुजुर्ग सांसद हैं। बर्क खुद 5 बार के सांसद और 4 बार के विधायक हैं। 1996 में बर्क ने सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, जीता। डॉ. बर्क इस सीट पर काफी मजबूत प्रत्याशी माने जाते हैं।

कैराना में विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा को टिकट

डीयू से यूजी और लंदन से पीजी हैं इकरा हसन।
डीयू से यूजी और लंदन से पीजी हैं इकरा हसन।

कैराना सीट पर सपा ने पार्टी के वर्तमान विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को प्रत्याशी बनाया है। इकरा हसन पूर्व सांसद मुनव्वर हसन और तबस्सुम की बेटी हैं। इकरा के दादा अख्तर हसन कैराना में लंबे सियासतदार रहे हैं। अख्तर हसन ने नगरपालिका परिषद चुनाव में सभासद का चुनाव लड़ा और जीते। फिर चेयरमैन का चुनाव जीते।

इसके बाद कैराना लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव जीते। अख्तर के बेटे मुनव्वर हसन यानी इकरा के पिता भी राजनीति में उतरे। इकरा की मां तबस्सुम बेगम कैराना लोकसभा सीट पर 2 बार सांसद चुनी गईं। इकरा के भाई नाहिद हसन कैराना सीट पर सपा के टिकट से लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं।

2022 के चुनाव में इकरा ने अपने भाई नाहिद हसन का पूरा चुनावी मैनेजमेंट इस सीट पर संभाला था। हालांकि 2016 में इकरा यहां से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव 5 हजार वोटों से हार चुकी हैं। पुराने पॉलिटिकल परिवार से ताल्लुक रखने के अलावा इकरा युवाओं में भी चर्चित चेहरा है।

वो दिल्ली के क्वींस मैरी स्कूल से पढ़ी हैं। लेडी श्रीराम से ग्रेजुएट, दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी और इंटरनेशनल लॉ एंड पॉलिटिक्स में लंदन से पीजी हैं। इस सीट पर साढ़े पांच लाख मुस्लिम वोटर हैं जो जीत, हार में अहम भूमिका निभाते हैं।

वेस्ट यूपी में साइकिल दौड़ाना अखिलेश का टारगेट
जयंत से गठबंधन टूटने के बाद वेस्ट यूपी में साइकिल दौड़ाना अब अखिलेश का बड़ा टारगेट है। यही वजह है कि वह एक-एक करके वहां के जिलों का दौरा कर रहे हैं।

अखिलेश बुधवार को मुरादाबाद में थे और गुरुवार को मुजफ्फरनगर में। मुजफ्फरनगर में पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जीत मिली है। बीजेपी की दबदबे वाली इस सीट में सेंध लगाने के लिए अखिलेश कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। इसीलिए मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के बेल्ट में अपनी धाक जमाने के लिए अखिलेश एक-एक कर कई फैसले ले रहे हैं। इसीलिए उन्होंने पूर्व राज्यसभा सांसद और जाट चेहरे हरेंद्र मलिक को यहां से उतारा है।

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