महेन्द्र पांडे
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की नई रिपोर्ट, स्टेट ऑफ वर्ल्ड पापुलेशन 2023, के अनुसार इस वर्ष, 2023, के मध्य तक भारत पड़ोसी देश चीन को पछाड़कर दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस रिपोर्ट के अनुसार इसकी निश्चित तारीख तय करना कठिन हैं क्योंकि भारत में जनसंख्या के आंकड़े 2011 के बाद से उपलब्ध नहीं है। इसके बाद वर्ष 2021 में जनगणना होनी थी पर कोविड 19 के कारण यह नहीं की जा सकी थी, और अब लगातार चुनावों और आबादी के धार्मिक ध्रुवीकरण में व्यस्त सरकार जनगणना के बारे में कोई बात नहीं करती।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के मध्य तक भारत की आबादी 1.4286 अरब तक पहुंच जाएगी, जबकि चीन की आबादी 1.4257 तक ही पहुंच पाएगी। जाहिर है भारत की आबादी चीन की तुलना में लगभग 30 लाख अधिक होगी। दुनिया की कुल आबादी 8.045 अरब है। भारत और चीन के बाद जनसंख्या के सन्दर्भ में तीसरे स्थान पर 34 करोड़ आबादी के साथ अमेरिका है। इसके बाद क्रम से इंडोनेशिया, पाकिस्तान, नाइजीरिया, ब्राज़ील, बांग्लादेश और रूस का स्थान है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की भारत में प्रतिनिधि एंड्रिया वोज्नर के अनुसार अब भारत की सामान्य आबादी के बीच भी बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं, पर बढ़ती जनसंख्या चिंता या परेशानी की बात नहीं है, यदि सबके अधिकारों और आकांक्षाओं का सही तरीके से ध्यान रखा जाता है तब यह देश के विकास, तरक्की और आकांक्षाओं का संकेत है।
एंड्रिया वोज्नर ने इतना तो सही कहा है कि भारत में अब आबादी पर चर्चा होने लगी है, पर यह चर्चा किसी चिंता के कारण नहीं बल्कि धार्मिक उन्माद और उग्रवाद के कारण है। तथाकथित तमाम हिन्दू साधु और साध्वियां, जो सत्ताधारी बीजेपी या फिर इसके सहयोगी संगठनों जैसे आरएसएस या वीएचपी से जुड़े हैं, समय-समय पर हिंदुओं को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं, जिससे धर्म पर कोई खतरा नहीं रहे और समाज उन्मादी बना रहे।
सत्ता के गलियारों से या फिर मीडिया में बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या की बात उठती भी है तो भ्रामक आंकड़ों के आधार पर यही बताया जाता है कि हिंदुओं को छोड़कर बाकी सभी धर्मों में आबादी बढ़ती जा रही है।
हमारे देश के शहरों में आबादी के सन्दर्भ में दिल्ली 3 करोड़ आबादी के साथ पहले स्थान पर है। इसके बाद मुंबई में 2 करोड़, कोलकाता में 1.5 करोड़ और बंगलुरु में 1.2 करोड़ आबादी है। दुनिया के लगभग एक-तिहाई देशों में अब जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार उलटी दिशा में चल रही है। पिछले 60 वर्षों के दौरान पिछले वर्ष पहली बार चीन की आबादी में कमी दर्ज की गई है।
वर्ष 2021 में चीन की आबादी 1.413 अरब थी पर वर्ष 2022 में यह 1.412 अरब ही रह गई। जापान में भी जनसंख्या तेजी से कम हो रही है। यही हाल यूरोप के अनेक देशों का है। भारत में आबादी कम तो नहीं हो रही है, पर इसकी वृद्धि दर में कमी आ रही है। वर्ष 2001 की जनसंख्या के अनुसार वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत थी, पर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यह दर 1.2 प्रतिशत ही रह गई।
हमारे देश की एक चौथाई आबादी 14 वर्ष से कम उम्र की है, 68 प्रतिशत आबादी 15 वर्ष से 64 वर्ष के बीच है, और शेष 7 प्रतिशत आबादी 65 वर्ष से अधिक उम्र की है। हमारे देश में 15 वर्ष से 24 वर्ष के आयुवर्ग में 25.4 करोड़ युवा हैं और हमारे प्रधानमंत्री समय-समय पर इसे गर्व से बताते भी हैं।
पर, जाहिर है यह युवा आबादी रोजगार की तलाश में है और हमारे देश में बेरोजगार युवाओं की संख्या दुनिया के किसी भी देश से अधिक है। रोजगार के सन्दर्भ में महिलायें हमारे देश में दुनिया में सबसे अधिक पिछड़ी हैं। दुनिया के 20 देशों, जिनमें रोजगार-प्राप्त महिलाओं की संख्या सबसे कम है, भारत भी शामिल है। वर्ष 2004 में देश के कुल रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 35 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, पर वर्ष 2022 में यह 25 प्रतिशत ही रह गई।
आबादी के सन्दर्भ में भले ही भारत पहले स्थान पर पहुंच गया हो पर क्षेत्रफल के सन्दर्भ में हम सातवें स्थान पर हैं, चीन तीसरे स्थान पर है। भारत में प्रति वर्गकिलोमीटर आबादी का घनत्व 480.5 है, पाकिस्तान में 312 है और चीन में महज 151.3 है। हमारे देश में प्रतिव्यक्ति भूमि की उपलब्धता औसतन 2081 वर्ग मीटर है, जबकि अमेरिका में 26900 वर्गमीटर, चीन में 6600 वर्गमीटर और पाकिस्तान में 3210 वर्गमीटर है। वर्ष 1970-71 में हरेक किसान के पास औसतन 2.28 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, पर वर्ष 2015-16 में यह 1.08 हेक्टेयर ही रह गई।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने पिछले वर्ष कहा था कि हमें जनसंख्या की विविधता पर गर्व होना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव नहीं पड़े। दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र एशिया में हैं। पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया की आबादी 2.3 अरब है, जो वैश्विक आबादी का 29 प्रतिशत है।
दूसरे स्थान पर केन्द्रीय और दक्षिण एशिया है, जहां की कुल आबादी 2.1 अरब है और यह वैश्विक आबादी का 26 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक दुनिया में 8 देशों में सबसे तेजी से आबादी बढ़ रही होगी, इनके नाम हैं – डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, ईजिप्ट, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और तंजानिया।
दुनिया के 46 सर्वाधिक पिछड़े देशों में वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक है और इन देशों की आबादी वर्ष 2022 से 2050 के बीच दुगुनी हो जाएगी। दुनिया में 61 ऐसे देश भी हैं जहां की जनसंख्या वृद्धि दर 1 प्रतिशत से भी कम है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक दुनिया की आबादी 8.5 अरब और वर्ष 2050 तक 9.7 अरब पहुंच जाएगी।
इस दौर में जनसंख्या की वृद्धि दर वर्ष 1950 के बाद से सबसे कम है, वर्ष 2020 में यह दर 1 प्रतिशत से भी कम थी। कोविड 19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर औसत उम्र सीमा को कम कर दिया है। वर्ष 2019 में औसत उम्र सीमा 72.8 वर्ष थी, जो वर्ष 2021 में 71 वर्ष पर ही सिमट गई। वर्ष 1950 के बाद से हरेक महिला के जीवनकाल में पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या में भी तेजी से कमी आई है। वर्ष 1950 में यह दर 5 थी, जो वर्ष 2021 तक 2.3 रह गई। वर्ष 2050 के लिए यह पूर्वानुमान 2.1 है।
हमारे देश में आबादी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली है, जाहिर है इसका असर प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ेगा। अभी ही हम पानी की समस्या से जूझ रहे हैं, साफ हवा देश में कहीं नसीब नहीं है और जंगल तेजी से काटे जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भविष्य की आबादी के लिए हम आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में सक्षम हैं – पर अफसोस यह है कि इससे परे सरकारी स्तर पर यह चर्चा की जाती है कि इसमें से कितने हिन्दू और कितने मुस्लिम होंगे।
संयुक्त राष्ट के आकलन के अनुसार वर्ष 2033 तक देश की आबादी 154.8 करोड़ तक पहुँच जाएगी, तब जनसंख्या का घनत्व 520.5 प्रति वर्ग किलोमीटर पहुंच जाएगा और प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता 1921 वर्ग मीटर ही रह जाएगी। आश्चर्य यह है कि आबादी के सन्दर्भ में पहले स्थान पर पहुंचने का श्रेय मंत्रियों, संतरियों, मीडिया और अंधभक्तों ने प्रधानमंत्री मोदी को नहीं दिया, वर्ना पिछले महीने चीतों के बच्चों और देश में बाघों की बढ़ती संख्या का श्रेय मोदी जी को ही दिया गया था।