बायोसेंसर डेटा से पता चलेगा कब बनाता है दिमाग में सुसाइड करने का विचार

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग ने लोगों में पनप रही सुसाइड प्रवृति को जानने का एक नया तरीका खोजा है। मनोवैज्ञानिकों के पास आए कुछ लोगों पर उन्होंने ये प्रयोग शुरू भी कर दिया है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स बायोसेंसर डेटा के जरिए ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी व्यक्ति के दिमाग में सुसाइड करने का विचार कब और किस स्थिति में बनता है। इसके लिए उन्होंने चुनिंदा लोगों के स्मार्ट फोन में कुछ एप्स डाले हैं और उनके हाथ पर डिजिटल बैंड बांधा है। इससे मनोवैज्ञानिक उन लोगों की दिनभर की गतिविधियां देखेंगे।

लोगों को GPS के माध्यम से ट्रैक कर रहे
केटलिन क्रूज नामक युवती को भी इस प्रयोग में शामिल किया गया है। केटलिन कुछ दिन पहले ही मनोवैज्ञानिक से इलाज कराकर घर गई हैं। अब मनोवैज्ञानिक जीपीएस के माध्यम से ट्रैक कर रहे हैं कि केटलिन घर से बाहर निकलती हैं या नहीं। यदि निकलती हैं तो कितनी देर बाहर रहती हैं। उनकी पल्स रेट कितनी रहती है। किस समय ये बढ़ती या घटती है। डिजिटल बैंड के जरिए केटलिन की नींद पर भी नजर रखी जा रही है। सोते समय कितनी बार उनकी नींद टूटती है।

क्या बताता है GPS और डिजिटल बैंड?
रिसर्च से जुड़े मनोवैज्ञानिक मैथ्यू नॉक कहते हैं कि इन सारी चीजों की जांच-परख करेंगे। इससे हमें यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि सामने वाला सुसाइड के बारे में सोच रहा है। इससे उसे समय रहते बचाया जा सकेगा। नॉक के मुताबिक, यदि किसी की नींद बार-बार टूटती है तो इसका मतलब ये है कि उसका मूड ठीक नहीं है।

यदि GPS से ये पता चलता है कि वह बार-बार घर के अंदर घूम रहा है, इसका मतलब ये है कि उसे गुस्सा आ रहा है। इस तरह से सेंसर रिपोर्ट तैयार होती है, जो बताती है कि व्यक्ति परेशान है या नहीं। इससे सुसाइड रोक सकेंगे।

सवालों की सूची से मनोस्थिति जानने का प्रयास कर रहे
रिसर्चर्स समय-समय पर रोगियों को सवालों की एक सूची भेजते हैं। इसके जरिए ये समझा जाता है कि उन मनोरोगियों को कैसा महसूस हो रहा है। उन्हें कौन सी चीजें ठीक और कौन सी बातें गलत लग रही हैं। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति सुसाइड करता है।

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