आदेशों के बावजूद भी नहीं पा रही फर्जी उर्दू शिक्षकों पर कार्यवाही
जिला प्रशासन शिक्षा विभाग ने अपने आदेशों को भी नहीं करा पा रहा कम्पलान्इस
शिक्षा विभाग के अधिकारी फर्जी शिक्षकों का कर रहे दोहन
ललितपुर। शिक्षा विभाग प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश बाद भी कोई फर्जी उर्दू शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर रहा है, तो वहीं प्रशासनिक अधिकारी भी अपने आदेशों का पालन नहीं करा पा रहे हैं। यही कारण है कि वर्षों से चल रही जाँच का कोई निष्कर्ष पर नहीं निकल पा रहा है। पूर्व में शिक्षा विभाग के बाद फर्जी उर्दू शिक्षकों को जिला प्रशासन ने भी एक माह का समय दे दिया था। 31 दिसम्बर को समाप्त होने वाली जाँच को समयावधि 31 जनवरी बड़ा दी गयी थी। चूँकि पूरी भर्ती प्रक्रिया पूर्ण से तृटि पूर्ण हैं, लेकिन विभाग व प्रशासन इनके खिलाफ कार्यवाही से बच रहे हैं। जबकि सभी जानते हैं, कि सभी 12 शिक्षक गलत तरीके से भर्ती किये गये हैं। लिहाजा इनकी सेवा समाप्त कर नये सिरे से भर्ती होनी चाहिए। परन्तु शिक्षकों पर अगर विभाग कार्यवाही करेगा, तो प्रक्रिया में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ भी विभाग को कार्यवाही करनी पड़ेगी, इसलिए सभी चुप्पी साधे हुये है।
उल्लेखनीय है कि शासन के द्वारा वर्ष 1995 में उर्दू भर्ती के आदेश जारी किया गया। शासन द्वारा 124 शिक्षकों की भर्ती का आदेश जारी किया गया। जबकि तत्कालीन डाइट प्राचार्य ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर अवगत कराया कि जनपद में उर्दू शिक्षत आवेदकों की संख्या कम है। इसके बाद जिलाधिकारी के आदेश पर जनपदस्तर पर 58 पद अनुमोदन किया गया। 5 अगस्त 1995 को विज्ञप्ति जारी किया गया। साथ ही 20 अगस्त 1995 को आवेदन लेने की अन्तिम तिथि निर्धारित की गयी। 10 सितम्बर से भर्ती प्रक्रिया प्रारम्भ की गयी। शासनादेशानुसार 30 सितम्बर को प्रक्रिया पूर्ण की जानी थी। नियत तिथि तक 46 शिक्षकों की नियुक्ति की गयी। जिसमें दो शिक्षक आरक्षित वर्ग के शामिल रहे। बाकि बचे पदों को आरक्षित वर्ग के बताते हुये सुरक्षित रखने की बात कही गयी। इसके बाद वर्ष 1996 को बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा 6 शिक्षकों की भर्ती की गयी। इसके बाद 12 आवेदकों ने न्याय के लिए न्यायालय की शरण ली।
न्यायालय ने उक्त शिक्षकों को भर्ती प्रक्रिया में शामिल करने के आदेश दिये। इसके बाद तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी ने शासन को पत्र जारी लिखा, कि चूँकि भर्ती प्रक्रिया को एक वर्ष से अधिक समय हो चुका है, इसलिए अब इन्हें बिना किसी नयी भर्ती के शासनादेश के बगैर शामिल नहीं जा सकता है। शिक्षा विभाग का खेल यही समाप्त नहीं हुआ। मार्च 1997 में शिक्षा विभाग ने 6 उर्दू शिक्षकों भर्ती कर लिया। साथ ही विभिन्न शिकायतों पर शासन को गुमराह करते रहे। जब आवेदकों ने सूचना के अधिकार के तहत शिक्षा विभाग से मार्च 1997 में भर्ती के सम्बन्ध में शासनादेश की माँग की गयी तो वह ऐसा कोई आदेश नहीं दे पाये। साथ ही वर्ष 1997 में भर्ती शिक्षकों में कई तो ऐसे थे, जिन्होंने वर्ष 1996 में इण्टर उर्दू से उत्र्तीण की, इसलिए पूर्व की भर्ती प्रक्रिया में उनका शामिल होना सिद्ध नहीं होता है। इसकी शिकायत जब जिला प्रशासन से की गयी, तो जिलाधिकारी द्वारा जाँच टीम गठित की गयी।
अपर जिलाधिकारी ने विगत 27 मई को जिलाधिकारी को सौंपी जाँच रिपोर्ट में स्पष्ट किया, कि उर्दू शिक्षक के रूप में भर्ती शिक्षका हबीबा बानों ने भर्ती के दौरान अपने द्वारा फर्जी पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र लगाया है। हालाँकि उसकी भर्ती सामान्य क्षेणी की मैरिट के आधार हुई थी। जाँच के दौरान शिक्षका ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि उसके द्वारा भर्ती के दौरान फर्जी पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया। जाँच रिपोर्ट में फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के आरोप की पुष्टि होने के कारण शिक्षका की नियुक्ति रद्द करते हुये, उसके खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही संस्तुती की गयी।
जिलाधिकारी ने अपर जिलाधिकारी जाँच रिपोर्ट पर बेसिक शिक्षा अधिकारी के एक लिए आदेशित किया। लेकिन जिलाधिकारी आदेशों के बावजूद भी बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा देाषी शिक्षका के खिलाफ कोई कार्यवाही अमल में नहीं लायी गयी। तो वहीं पूरी भर्ती प्रक्रिया बिना शासनादेश के तहत की गयी, इसलिए इस प्रक्रिया में भर्ती सभी शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही विभाग को अमल में लानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। तो वहीें प्रशासन द्वारा कार्यवाही करने की वजाय जाँच प्रक्रिया को लम्बा किया जा रहा है। जबकि अभी तक की जाँच में पूरा मामला आईने की तरह साफ है। अब तो ऐसा लग रहा है कि प्रशासन जानबूझकर किसी निर्णय पर पहुंचना नहीं चाहता है। अगर पहुंचाना चाहता तो अभी तक दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो गयी होती। यही नहीं शिक्षा निदेशक विजय किरण आनन्द के पास भी पूरा प्रकरण है, लेकिन उनके आदेशों को भी शिक्षा विभाग के अधिकारी दरकिनार कर रहे हैं।