आगरा। अगर आप आगरा में हैं तो आपको आवारा जानवरों से बचाव के लिए तैयार रहना होगा। उल्लेखनीय है कि आगरा कुत्ता, बिल्ली या फिर बंदर काट ले तो जिला अस्पताल के भरोसे मत रहिए। ऐसा खुद अस्पताल तस्दीक कर रहा है। यहां 31 जुलाई से एंटी रैबीज वैक्सीन खत्म हो गई है। बरसात के मौसम में इन जंगली जानवरों के हमले तेज हो रहे हैं और जिला अस्पताल में एंटी रैबीज इंजेक्शन खत्म हो गए हैं। एंटी रैबीज वैक्सीन का अभाव मेडिकल स्टोर्स पर भी देखने को मिल रहा है। वैक्सीन के अभाव के चलते इंजेक्शन की वायल महंगे दामों में बेची जा रही है। जनपद में 45 लाख की आबादी में खतरे की घंटे की बज रही है। कुत्ता, बिल्ली और बंदर के काटने के लिए जिला अस्पताल में एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। जनपद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इन वैक्सीन की कोई व्यवस्था नहीं है। हाल ही के दिनों में जनपद में जंगली जानवरों के हमले तेज हो गए हैं। शहर ही नहीं देहात क्षेत्रों में भी इन जंगली जानवरों के काटने से लोग परेशान हैं। वैक्सीन लगाने के लिए जिला अस्पताल में चक्कर काट रहे हैं। लेकिन, जिला अस्पताल में वैक्सीन खत्म होने का नोटिस चस्पा कर दिया है। पिछले कई दिनों से अस्पताल में वैक्सीन की कमी देखने को मिल रही है। वैक्सीन खत्म होने पर लोग प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल स्टोर्स पर भटकने को मजबूर हैं।
उल्लेखनीय है कि बंदरों के आतंक से शहरवासी परेशान हैं। वहीं कुत्ते भी लोगों को निशाना बना रहे हैं। शहर की बात करें तो मेडिकल कॉलेज, कलेक्ट्रेट, शाहगंज, बोदला, सिकंदरा, दयालबाग, ईदगाह, आगरा छावनी सहित कई स्थानों पर बंदरों के झुंड लोगों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं। करीब 12 हजार बंदर शहर की जनता पर भारी पड़ रहे हैं। वहीं तीन हजार के करीब आवारा कुत्ते भी लोगों को आए दिन निशाना बना रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि यदि किसी को कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंदर एंटी रैबीज वैक्सीन का इंजेक्शन लगवाना जरूरी है। अन्यथा व्यक्ति रैबीज रोग की चपेट में आ सकता है। जानवरों के डॉ. संजीव नेहरू का कहना है कि वहीं किसी घाव पर गलती से कुत्ते की लार गिर जाती है तो उससे भी रैबीज हो जाता है। एक बार यदि मरीज रैबीज की चपेट में आ गया तो उसका कोई ईलाज नहीं हैं। हालांकि उपचार के माध्यम से मरीज को कुछ राहत प्रदान कि जा सकती है। रैबीज रोग 19 वर्षों तक रोगी को अपनी गिरफ्त ले सकता है।
उल्लेखनीय है कि कुत्ते, बिल्ली और अन्य जंगली जानवरों के काटने से रैबीज व्यक्ति के शरीर में फैलने लगता है। इसके अलावा पालतू जानवर के थूंकने और छींकने से भी यह संक्रमित वायरस हवा के संपर्क में आकर व्यक्ति को परेशान करता है। रैबीज दो तरह का होता है, उग्र रैबीज और पैरालिटिक रैबीज। उग्र रैबीज से पीड़ित लोग अति सक्रिय, उत्साहित और अनियमित व्यवहार करने लगते हैं। वहीं पैरालिटिक रैबीज में रोगी के शरीर पर धीरे धीरे असर दिखाता है। व्यक्ति अंपग होने के साथ ही कोमा में जा सकता है। इसके अंतिम चरण तक पहुंचने पर रोगी का मृत्यु भी हो सकती है। वहीं आगरा का प्रशासन जैसे किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है।