मेडिकल में चैटजीपीटी के इस्तेमाल से क्यों हिचकिचा रहे डॉक्टर्स?

चैटजीपीटी जैसी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सिस्टम रोजमर्रा के इस्तेमाल में आ रही हैं। लेकिन, व्याख्या करने और उसके अनुसार कार्य करने के स्किल की कमी के चलते डॉक्टरों द्वारा उसे अपनाने की संभावना कम है। इसका खुलासा एक स्टडी में किया गया है।

हर दूसरे इंडस्ट्री की तरह, फिजिशियन जल्द ही अपने क्लीनिकल प्रैक्टिस में एआई टूल्स को शामिल करना शुरू कर देंगे, जिससे उन्हें कॉमन मेडिकल कंडीशन के डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

ये टूल्स, जिन्हें क्लिनिकल डिसीजन सपोर्ट (सीडीएस) एल्गोरिदम कहा जाता है, हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स को गाइड करने में काफी मददगार हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, कौन सी एंटीबायोटिक्स लिखनी है या जोखिम भरी हार्ट सर्जरी की सिफारिश करनी है या नहीं।

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक नए पर्सपेक्टिव आर्टिकल के अनुसार, इन नई टेक्नोलॉजी की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि फिजिशियन कैसे कार्य करते हैं। इसके लिए स्किल्स के यूनिक सेट की आवश्यकता होती है, जिसकी वर्तमान में कई लोगों के पास कमी है।

सीडीएस एल्गोरिदम में रिस्क कैलकुलेटर से लेकर सोफिस्टिकेटेड मशीन लर्निंग और आर्टिफिशल-बेस्ड सिस्टम तक सब कुछ शामिल हो सकता है।

उनका इस्तेमाल यह अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है कि अनियंत्रित संक्रमण से कौन से मरीजों के लाइफ-थ्रेटनिंग सेप्सिस में जाने की सबसे अधिक संभावना है या किस थेरेपी से हार्ट पेशेंट में अचानक मृत्यु को रोकने की सबसे अधिक संभावना है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन (यूएमएसओएम) में एपिडेमियोलॉजी और पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और पर्सपेक्टिव के सह-लेखक डैनियल मॉर्गन ने कहा, “इन नई टेक्नोलॉजी में पेशेंट की केयर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता है, लेकिन डॉक्टरों को अपनी मेडिकल प्रेक्टिस में एल्गोरिदम को शामिल करने से पहले यह सीखना होगा कि मशीनें कैसे सोचती और कैसे काम करती हैं।”

जबकि कुछ क्लीनिकल डिसिजन सपोर्ट टूल्स पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड सिस्टम में शामिल किए गए हैं। मेडिकल केयर प्रोवाइडर्स को अक्सर सॉफ्टवेयर इस्तेमाल में मुश्किल लगता है।

यूएमएसओएम में एपिडेमियोलॉजी और पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और पर्सपेक्टिव के सह-लेखक कैथरीन गुडमैन ने कहा, ”डॉक्टरों को मैथ्स या कंप्यूटर एक्सपर्ट होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन्हें इस बात की बेसलाइन समझ होनी चाहिए कि प्रॉबेबिलिटी और रिस्क एडजस्टमेंट के संदर्भ में एक एल्गोरिदम क्या करता है, लेकिन अधिकतर को उन स्किल्स में कभी ट्रेन नहीं किया गया है।”

इस अंतर को संबोधित करने के लिए, मेडिकल एजुकेशन और क्लीनिकल ट्रेनिंग को विशेष रूप से सीडीएस एल्गोरिदम के अनुरूप स्पष्ट कवरेज को शामिल करने की आवश्यकता है।

उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि प्रॉब्बिलिस्टिक स्किल्स को मेडिकल स्कूलों में जल्दी सीखा जाना चाहिए, फिजिशियन को अपने क्लीनिकल डिसिजन लेने में सीडीएस प्रिडिक्शन का गंभीर मूल्यांकन और उपयोग करना सिखाया जाना चाहिए, सीडीएस प्रिडिक्शन की व्याख्या करने का अभ्यास करना चाहिए।

उन्हें सीडीएस-निर्देशित डिसिजन लेने के बारे में पेशेंट के साथ बातचीत करना भी सीखना चाहिए।

(आईएएनएस)

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